पुरुषों के समान हिस्सा न मिलने का दावा करने वाली महिला की याचिका पर सुनवाई करेगा न्यायालय

Edited By Parveen Kumar,Updated: 17 Mar, 2023 11:29 PM

court to hear plea of  woman who claims not getting equal share as men

उच्चतम न्यायालय एक मुस्लिम महिला की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई के लिए शुक्रवार को सहमत हो गया, जिसमें दावा किया गया है कि शरीयत कानून के तहत महिलाओं को पुरुषों की तुलना में समान हिस्सा नहीं दिया जाता है और यह ‘भेदभावकारी' एवं संविधान के तहत मिले...

नेशनल डेस्क : उच्चतम न्यायालय एक मुस्लिम महिला की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई के लिए शुक्रवार को सहमत हो गया, जिसमें दावा किया गया है कि शरीयत कानून के तहत महिलाओं को पुरुषों की तुलना में समान हिस्सा नहीं दिया जाता है और यह ‘भेदभावकारी' एवं संविधान के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है। न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ केरल उच्च न्यायालय के छह जनवरी के फैसले के खिलाफ बुशरा अली की अपील पर सुनवाई कर रही थी।

अली ने दावा किया है कि शरीयत कानून के मुताबिक, बेटी होने की वजह से उन्हें अपने पुरुष समक्षकों की तुलना में आधा हिस्सा दिया गया। पीठ ने याचिकाकर्ता के सात भाइयों और चार बहनों को नोटिस जारी किये हैं। बिजो मैथ्यू ज्वॉय के जरिये दायर याचिका में कहा गया है कि बंटवारे के मामले में 19 जनवरी 1995 का फैसला अली के हक में आया था। ज्वॉय ने कहा कि शीर्ष अदालत ने भी यथास्थिति का आदेश दिया है।

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता निचली अदालत द्वारा पारित अंतिम आदेश से व्यथित हैं, जिसमें याचिकाकर्ता को केवल 4.82 फीसदी संपत्ति आवंटित की गई थी। अली ने कहा उनके पिता ने मृत्यु से पहले कोई वसीयत नहीं बनाई थी और उनके परिवार में पत्नी, सात बेटे और पांच बेटियां हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि संविधान में दिए गए अधिकार के बावजूद मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है।

याची ने कहा कि यहां तक कि 19 जनवरी 1995 के शुरुआती आदेश को चुनौती नहीं दी गई और यह अंतिम निर्णय हो गया और उन्होंने कहा कि शरीयत कानून के तहत संपत्ति का बंटवारा भेदभावपूर्ण है तथा इसे खारिज किया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 की धारा-दो पुरुषों की तुलना में महिलाओं को संपत्ति में समान हक नहीं देती है, जो संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है और संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत निष्प्रभावी है। याचिका में कहा गया है कि इसी तरह का एक मामला अदालत के समक्ष विचाराधीन है।

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