प्यार के 35 टुकड़े, सबूत बिखरे-बिखरे: पुलिस के हाथ अब तक खाली, मर्डर वेपन से लेकर मोबाइल तक खड़े हुए कईं सवाल!

Edited By Updated: 29 Nov, 2022 11:53 AM

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दिल्ली के महरौली हत्याकांड में आरोपी आफताब अमीन पूनावाला की गिरफ्तारी को दो सप्ताह से भी ज्यादा समय हो गया है, लेकिन अब भी इस बात का कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है कि शव के जो टुकड़े मिले हैं, वे श्रद्धा वालकर के हैं। ऐसे में, विशेषज्ञों के एक वर्ग ने...

नेशनल डेस्क: दिल्ली के महरौली हत्याकांड में आरोपी आफताब अमीन पूनावाला की गिरफ्तारी को दो सप्ताह से भी ज्यादा समय हो गया है, लेकिन अब भी इस बात का कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है कि शव के जो टुकड़े मिले हैं, वे श्रद्धा वालकर के हैं। ऐसे में, विशेषज्ञों के एक वर्ग ने डीएनए विश्लेषण में देरी होने पर सवाल उठाए हैं।

पूनावाला को मई में वालकर की गला घोंटकर हत्या करने के आरोप में 12 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था। पूनावाला पर शव के 35 टुकड़े करके लगभग तीन सप्ताह तक दक्षिण दिल्ली के महरौली में अपने घर पर 300 लीटर के फ्रिज में रखने और फिर कई दिन तक शहर के अलग-अलग हिस्सों में उन टुकड़ों के फेंकने का भी आरोप है। पुलिस ने 13 नवंबर को कथित तौर पर 12 मानव अंग बरामद करके उन्हें एक प्रयोगशाला भेज दिया था। हालांकि अभी तक उन अंगों का डीएनए अलग करके वालकर के परिवार के सदस्यों के डीएनए से मिलान नहीं किया गया है। 

इस मामले की जानकारी रखने वाले अधिकारी फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं। रोहिणी में स्थित फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में सहायक जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) डॉक्टर रजनीश कुमार सिंह ने कहा, “हम शव के बरामद हुए अंगों के बारे में कुछ भी नहीं बता सकते क्योंकि हम ऐसे मामलों में काफी गोपनीयता बरतते हैं।” शीर्ष फोरेंसिक विशेषज्ञों ने कहा कि डीएनए विश्लेषण में देरी क्यों हो रही है, यह समझ से परे है। उनके अनुसार, विशेषज्ञों को किसी शव की शिनाख्त के लिए आदर्श रूप से 24 घंटे से अधिक समय नहीं लेना चाहिए, भले ही वह छह महीने पुराना हो।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में आनुवंशिकी के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे का मानना है कि एक साल पुराने मानव अवशेष से डीएनए निकालने के लिए 24 घंटे का समय काफी है, भले ही उसे संरक्षित न रखा गया हो। चौबे उस टीम का हिस्सा थे जिसने 2021 में डीएनए विश्लेषण के जरिए जॉर्जिया की रानी केतेवन की हत्या के 400 साल पुराने रहस्य से पर्दा हटाया था। उन्होंने कहा, “छह महीने या एक साल के बाद हमें शव पर मांस नहीं मिल सकता, लेकिन हड्डियों के अंदर पाया जाने वाला एक ऊतक अस्थि मज्जा (बोन मैरो) एक साल से अधिक समय तक बरकरार रहता है और यह डीएनए को अलग करने की प्रक्रिया आसान बनाता है।” उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि जब इतने बड़े मामले में इतना समय लग सकता है, तो अपेक्षाकृत कम चर्चित मामलों में कितना वक्त लगता होगा। 

चौबे ने कहा, “देरी होना दुर्भाग्यपूर्ण है और मैं सरकार को प्रस्ताव देता हूं कि देश के शीर्ष डीएनए विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक विशेष कार्यबल बनाया जाना चाहिए।” केंद्र सरकार के तहत आने वाले सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक और निदेशक डॉ. के. थंगराज ने कहा कि संपूर्ण विश्लेषण “नमूनों की गुणवत्ता, जैविक अवशेषों से डीएनए अलग करने, उपयुक्त डीएनए मार्कर के चयन और सबसे महत्वपूर्ण बात, प्रशिक्षित कर्मचारियों पर निर्भर करता है।” 

दूसरी ओर, फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल), रोहिणी के एक सूत्र ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि प्रयोगशाला में डीएनए विशेषज्ञों की कमी है और फिलहाल प्रयोगशाला में आधे कर्मचारी ही इसके लिए प्रशिक्षित हैं। सूत्र ने बताया, “लगभग 20 डीएनए विशेषज्ञ हैं, जो सात टीम में काम करते हैं, लेकिन काम के बोझ को देखते हुए मौजूदा संख्या आवश्यक संख्या से 50 प्रतिशत कम है।” एफएसएल, रोहिणी के डॉ. रजनीश कुमार सिंह ने स्वीकार किया कि प्रयोगशाला में अधिक विशेषज्ञों की आवश्यकता है। हालांकि, उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय फोरेंसिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं।
 

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