शिव पूजा में न करें श्रीहरि की इस प्यारी वस्तु का प्रयोग

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Nov, 2019 07:29 AM

do not use this lovely object of shrihari in shiva worship

सभी देवी-देवताओं को शंख से जल चढ़ाना शुभ माना जाता है लेकिन भगवान भोलेनाथ पर शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है। हिन्दू धर्म के लोग अपनी-अपनी आस्था के अनुसार अपने इष्ट देव को मानते हैं।

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सभी देवी-देवताओं को शंख से जल चढ़ाना शुभ माना जाता है लेकिन भगवान भोलेनाथ पर शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है। हिन्दू धर्म के लोग अपनी-अपनी आस्था के अनुसार अपने इष्ट देव को मानते हैं। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार पांच प्रमुख देवता हैं विष्णु, गणेश, सूर्य, शिव और शक्ति। जो शक्तियों के अलग-अलग रूप हैं।

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हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता हैं। भगवान शिव के 108 नाम हैं। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि और अंत हैं। यहीं नहीं वह संगीत के आदि सृजनकर्ता भी हैं और नटराज के रूप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। कोई भी प्रार्थना, पूजा-पाठ, आराधना, मंत्र, स्रोत और स्तुतियों का फल तभी प्राप्त होता है जब आराधना विधि-विधान और शास्त्रोक्त तरीकों से की जाए। शिव उपासना में शंख का प्रयोग वर्जित माना गया है। भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं होता। इन्हें शंख से न तो जल अर्पित किया जाता है और न ही शंख बजाया जाता है।

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पुरातन कथा के अनुसार एक समय श्री राधा रानी गोलोक धाम से कहीं बाहर गई हुई थीं। भगवान श्री कृष्ण अपनी सखी विरजा के साथ विहार कर रहे थे। संयोगवश उसी समय श्री राधा रानी वहां आ गई। सखी विरजा को अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण के साथ देख कर श्री राधा रानी को बहुत क्रोध आया। क्रोध में उन्होंने कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जिससे विरजा को बहुत लज्जा महसूस हुई। लज्जावश विरजा ने नदी का रूप धारण कर लिया और वह नदी बनकर बहने लगीं।

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श्री राधा रानी के क्रोध भरे शब्दों को सुन कर भगवान श्री कृष्ण के मित्र सुदामा को बहुत बुरा लगा। उन्होंने श्री राधा रानी से ऊंचे स्वर में बात की। जिससे क्रोधित श्री राधा रानी ने सुदामा को दानव बनने का श्राप दे दिया। आवेश में आए सुदामा ने भी हित-अहित का विचार किए बिना श्री राधा रानी को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

श्री राधा रानी के श्राप से सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना। दंभ के पुत्र शंखचूर का वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है। यह अपने बल के आवेश में तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा और साथ ही सभी साधु-संतों को सताने लगा।

साधु-संतों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने शंखचूर का वध कर दिया। शंखचूर श्री विष्णु और देवी लक्ष्मी का परम प्रिय भक्त था। भगवान विष्णु ने इसकी हड्डियों से शंख का निर्माण किया इसलिए विष्णु एवं अन्य देवी-देवताओं को शंख से जल अर्पित किया जाता है। भगवान विष्णु को शंख इतना प्रिय है कि शंख से जल अर्पित करने पर भगवान विष्णु अति प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन भगवान शिव की पूजा में शंख का न तो प्रयोग होता है और न ही जल दिया जाता है और न भगवान शिव की पूजा में शंख बजाया जाता है क्योंकि भगवान शिव ने शंख चूर का वध किया था इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है।

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