विशेषज्ञों की चेतावनी: COVID-19 के बाद ‘Air Pollution' भारत का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट

Edited By Updated: 26 Dec, 2025 11:11 AM

experts warn air pollution is india s biggest health crisis after covid 19

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 महामारी के बाद भारत जिस सबसे बड़े स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, वह वायु प्रदूषण है। ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय मूल के श्वसन रोग विशेषज्ञ ने चेतावनी दी है कि यदि तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हालात...

नेशनल डेस्क: स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 महामारी के बाद भारत जिस सबसे बड़े स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, वह वायु प्रदूषण है। ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय मूल के श्वसन रोग विशेषज्ञ ने चेतावनी दी है कि यदि तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हालात साल दर साल और बिगड़ेंगे। विशेषज्ञों ने कहा कि देश में श्वसन संबंधी बीमारियों का एक बड़ा संकट धीरे-धीरे विकराल रूप ले रहा है, जो अभी न तो बड़े पैमाने पर पहचाना गया है और न ही इसके समाधान के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं। ब्रिटेन में कार्यरत कई वरिष्ठ चिकित्सकों ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा कि सांस संबंधी बीमारियों का यह छिपा हुआ संकट धीरे-धीरे गंभीर रूप ले रहा है और आने वाली लहर भारत के लोगों और देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गहरा व दीर्घकालिक असर डाल सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दशक में विश्वभर में हृदय रोग के मामलों में वृद्धि केवल मोटापे के कारण नहीं हुई, बल्कि इसका मुख्य कारण कारों और विमानों सहित शहरी परिवहन से निकलने वाले जहरीले उत्सर्जन हैं। यह समस्या भारत, ब्रिटेन और अन्य देशों के शहरों में विशेष रूप से गंभीर है।

केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को स्वीकार किया कि दिल्ली में लगभग 40 प्रतिशत प्रदूषण परिवहन क्षेत्र से आता है, जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है। उन्होंने स्वच्छ विकल्पों की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हुए जैव ईंधन को अपनाने पर बल दिया। ‘लिवरपूल' के सलाहकार श्वसन रोग विशेषज्ञ एवं भारत की कोविड-19 सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य मनीष गौतम ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, “भारत सरकार का वायु प्रदूषण पर पुनः ध्यान केंद्रित करना जरूरी है। लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह है कि उत्तर भारत में रहने वाले लाखों लोगों के लिए नुकसान पहले ही हो चुका है। हाल में जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे बहुत कम हैं। सांस संबंधी बीमारियों का एक बड़ा संकट धीरे-धीरे हमारे सामने बढ़ रहा है।”

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उन्होंने चेतावनी दी कि वर्षों तक प्रदूषण की जद में रहने के कारण फेफड़ों की स्वास्थ्य आपात स्थिति धीरे-धीरे सामने आ रही है। उन्होंने नीति निर्धारकों से अपील की कि वे सांस संबंधी बीमारियों का समय रहते पता लगाने और उनका इलाज करने पर ध्यान दें और तेजी से काम करने वाले एक ‘कार्यदल' की स्थापना पर विचार करें। चिकित्सकों के अनुसार, दिसंबर में सिर्फ दिल्ली के अस्पतालों में श्वसन संबंधी परेशानियों से जूझ रहे मरीजों की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत वृद्धि देखी गई, जिनमें कई ऐसे मरीज थे जो पहली बार इससे पीड़ित हुए थे और युवा थे। ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाले गौतम ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम के उपाय महत्वपूर्ण तो हैं, लेकिन अब केवल इन्हीं उपायों से काम नहीं चलेगा।

गौतम ने कहा, “भारत ने पहले भी यह उदाहरण पेश किया है कि बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम चलाना संभव है। सरकार के उपायों ने शीघ्र निदान और सुनियोजित उपचार कार्यक्रमों के माध्यम से तपेदिक के प्रभाव को काफी हद तक कम किया है। अब श्वसन रोगों के लिए भी इसी तरह की तत्परता और बड़े पैमाने पर कदम उठाने की आवश्यकता है।” लंदन के ‘सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल' के मानद हृदय रोग विशेषज्ञ राजय नारायण के अनुसार, वायु प्रदूषण और हृदय, श्वसन, तंत्रिका संबंधी सहित कई प्रकार की बीमारियों के बीच “अत्यधिक वैज्ञानिक प्रमाण” मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि यदि इसे समय रहते हल नहीं किया गया, तो यह स्वास्थ्य और आर्थिक बोझ दोनों को और बढ़ा देगा।

नारायण ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘सिरदर्द, थकान, हल्की खांसी, गले में खराश, पाचन संबंधी परेशानी, आंखों में सूखापन, त्वचा पर चकत्ते और बार-बार होने वाले संक्रमण जैसे शुरुआती लक्षण अक्सर मामूली समझकर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं, लेकिन ये गंभीर दीर्घकालिक बीमारी के शुरुआती चेतावनी संकेत हो सकते हैं।'' 

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