महिला आरक्षण पर केसीआर की बेटी कविता की बैठक, 13 विपक्षी दलों के नेता हुए शामिल

Edited By Yaspal,Updated: 15 Mar, 2023 10:23 PM

kcr s daughter kavita s meeting on women s reservation

समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) समेत विपक्ष के 13 राजनीतिक दलों के नेताओं ने संसद के मौजूदा बजट सत्र के दौरान महिला आरक्षण विधेयक पेश किए जाने संबंधी भारत राष्ट्र सेवा (बीआरएस) की नेता के. कविता की मांग का बुधवार को खुलकर समर्थन...

नेशनल डेस्कः समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) समेत विपक्ष के 13 राजनीतिक दलों के नेताओं ने संसद के मौजूदा बजट सत्र के दौरान महिला आरक्षण विधेयक पेश किए जाने संबंधी भारत राष्ट्र सेवा (बीआरएस) की नेता के. कविता की मांग का बुधवार को खुलकर समर्थन किया।

तेलंगाना विधान परिषद में बीआरएस की सदस्य कविता की ओर से आयोजित परिचर्चा में 13 विपक्षी दलों के नेताओं ने भाग लिया और सबने एक स्वर में यह मांग उठाई कि इसी सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया जाए। सपा और राजद ने यह भी कहा कि लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान वाले इस विधेयक में अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।

चर्चा के दौरान कविता ने कहा कि उनका और उनकी पार्टी का स्पष्ट रूप से मानना है कि विधायिका में महिलाओं को आरक्षण देने के साथ ही ‘‘कोटा के भीतर कोटा'' का प्रावधान भी होना चाहिए। सपा सांसद एसटी हसन, राजद सांसद मनोज झा, शिवसेना (उद्धव) की प्रियंका चतुर्वेदी, आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विनय विश्वम, द्रमुक की टी. सुमथि और आरएसपी के एन.के. प्रेमचंद्रन ने इस परिचर्चा में भाग लिया। हसन और झा ने कहा कि महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था में एससी और ओबीसी वर्गों की महिलाओं को अलग से आरक्षण मिलना चाहिए।

कविता ने महिला आरक्षण के विषय पर पिछले दिनों जंतर-मंतर पर एक दिन का अनशन किया था। महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है। 12 सितंबर 1996 को सबसे पहले संयुक्त मोर्चा सरकार ने इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया था। अ

टल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने भी इस विधेयक को लोकसभा के पटल पर रखा था, लेकिन यह तब भी पारित नहीं हो सका था। मई 2008 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की पहली सरकार ने एक बार फिर महिला आरक्षण विधेयक पेश किया, जिसे राज्यसभा ने एक स्थाई समिति के पास भेज दिया। साल 2010 में राज्यसभा ने महिला आरक्षण विधेयक पर मुहर लगा दी, जिसके बाद इसे लोकसभा की मंजूरी के लिए भेजा गया। इसके बाद से यह विधेयक ठंडे बस्ते में है।

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