भगवान जगन्नाथ का नौ दिन का विश्राम हुआ खत्म, आज मौसी के घर से लौटेंगे वापिस

Edited By Updated: 05 Jul, 2025 11:11 AM

lord jagannath will return from his aunt s house today

भगवान जगन्नाथ की नौ दिनों के बाद अपनी मौसी के घर से वापसी करने जा रहे हैं। भगवान अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी देवी गुंडिचा के मंदिर में नौ दिनों का दिव्य विश्राम करने के बाद अपने मूल निवास, श्रीमंदिर पुरी लौट रहे हैं। इस वापसी...

नेशनल डेस्क: भगवान जगन्नाथ की नौ दिनों के बाद अपनी मौसी के घर से वापसी करने जा रहे हैं। भगवान अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी देवी गुंडिचा के मंदिर में नौ दिनों का दिव्य विश्राम करने के बाद अपने मूल निवास, श्रीमंदिर पुरी लौट रहे हैं। इस वापसी यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है, जो हर साल होने वाली रथ यात्रा का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

बाहुड़ा यात्रा क्या है?

'बाहुड़ा' शब्द ओड़िया भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ 'वापसी' होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने विशाल रथों पर गुंडिचा मंदिर से वापस अपने मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। यह यात्रा भी रथ यात्रा की तरह ही भव्य और उत्साहपूर्ण होती है, बस इसकी दिशा विपरीत होती है। भगवान बलभद्र का रथ 'तालध्वज', देवी सुभद्रा का रथ 'दर्पदलन'और भगवान जगन्नाथ का रथ 'नंदीघोष' पहले ही 'दक्षिण मोड़' ले चुके हैं और अब गुंडिचा मंदिर के नकाचना द्वार के पास खड़े हैं।

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यात्रा के दौरान विशेष पड़ाव और अनुष्ठान

परंपरा के अनुसार भगवान रथ खींचे जाने के दौरान रास्ते में अपनी मौसी मां के मंदिर (अर्धासनी मंदिर) में थोड़ी देर रुकते हैं। यहां उन्हें पोड़ा पीठा नाम की एक विशेष मिठाई चढ़ाई जाती है। यह मिठाई चावल, गुड़, नारियल और दाल से तैयार की जाती है और इसे भगवान को अर्पित करना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है।

दिनभर के प्रमुख अनुष्ठान

आज की बाहुड़ा यात्रा की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त में हुई:

  • सुबह 4:00 बजे: मंगला आरती के साथ दिन का आरंभ हुआ.
  • इसके बाद तड़प लगी, रोजा होम, अबकाश और सूर्य देव की पूजा जैसे कई महत्वपूर्ण अनुष्ठान संपन्न हुए.
  • द्वारपाल पूजा, गोपाल बलभ और सकाला धूप जैसे दैनिक अनुष्ठान भी किए गए.
  • सेनापतलगी अनुष्ठान के जरिए भगवानों को उनकी वापसी यात्रा के लिए तैयार किया गया.

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रथों तक भगवानों को लाने की रस्म और छेरा पहंरा

  • दोपहर करीब 12 बजे: 'पहंडी' यानी भगवानों को रथों तक लाने की रस्म शुरू हुई, जिसके दोपहर 2:30 बजे तक पूरी होने की उम्मीद है। इस दौरान लाखों भक्त अपने आराध्य के दर्शन के लिए लालायित रहते हैं।
  • इसके बाद पुरी के गजपति महाराज दिव्यसिंह देव छेरा पहंरा करेंगे। इस रस्म में वे सोने की झाड़ू से रथों की सफाई करते हैं, जो भगवानों के प्रति उनकी श्रद्धा और समानता का प्रतीक है।
  • जब रथों में लकड़ी के घोड़े जोड़ दिए जाएंगे। तब शाम 4:00 बजे से भक्त रथ खींचना शुरू करेंगे। सबसे पहले भगवान बलभद्र का तालध्वज रथ आगे बढ़ेगा. उसके बाद देवी सुभद्रा का दर्पदलन और अंत में भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ चलेगा।

आगे की महत्वपूर्ण तिथियाँ

बाहुड़ा यात्रा के बाद भी कुछ महत्वपूर्ण अनुष्ठान होने हैं:

  • 6 जुलाई: सुनाबेशा का आयोजन होगा, जब भगवान अपने रथों पर स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित होकर भक्तों को दर्शन देंगे। यह एक अत्यंत भव्य और आकर्षक अनुष्ठान होता है।
  • 8 जुलाई: नीलाद्री बिजे अनुष्ठान होगा, जिसके तहत भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने श्रीमंदिर में वापस प्रवेश करेंगे। इसी के साथ इस वर्ष की रथ यात्रा का औपचारिक समापन हो जाएगा।

 

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