तरनजीत संधू ने अपने दादा तेजा सिंह समुंद्री को दी श्रद्धांजलि

Edited By Updated: 19 Jul, 2022 11:08 AM

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अमरीका में भारतीय राजदूत तरणजीत संधू ने अपने दादा व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के संस्थापक सदस्य सरदार तेजा सिंह समुंद्री को श्रद्धांजलि अर्पित की है। संधू ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि "उनके दादा अग्रजों के खिलाफ लड़ाई में कई मोर्चे लगाए। यही...

नेशनल डेस्क: अमरीका में भारतीय राजदूत तरणजीत संधू ने अपने दादा व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के संस्थापक सदस्य सरदार तेजा सिंह समुंद्री को श्रद्धांजलि अर्पित की है। संधू ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि "उनके दादा अग्रजों के खिलाफ लड़ाई में कई मोर्चे लगाए। यही नहीं उन्होंने पंजाब में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्कूल भी खोले और दो समाचार पत्र भी शुरू किए थे"। आपको यहां बताने जा रहे हैं कि सरदार तेजा समुंद्री सिख इतिहास में ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना छोड़ दी थी। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने उस समय हुई थी, जब अंग्रेजों ने आंदोलन के दौरान उन्हें लाहौर सैंट्रल जेल में रखा था। वह चाहते तो अन्य सिख कैदियों की तरह वह शर्त पर माफी मांग कर जेल से रिहा हो सकते थे लेकिन उन्होंने जेल में ही रहने का विकल्प चुना था।  

सरदार तेजा सिंह समुंद्री का जन्म  20 फरवरी को अमृतसर की तहसील तरनतारन के रायका बुर्ज में हुआ था। कहा जाता है कि उनकी शिक्षा भले ही प्राथमिक स्तर से आगे न बढ़ पाई हो लेकिन उनकी सिखों के धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथों अच्छी खासी पकड़ थी। अपने पिता देवा सिंह के नक्शेकदम पर चलते हुए वह ब्रिटिश सेना की 22 कैवेलरी में "दफादार" के रूप में सेना में शामिल हुए थे, लेकिन उनका सेना से केवल साढ़े तीन साल में मोह भंग हो गया था। पंथ में धार्मिक और सामाजिक सुधार को बढ़ावा देने के लिए खुद को समर्पित करने के लिए वह सेना छोड़ कर अपने गांव लौट आए, जिसे चक 140 जीबी कहा जाता था।

सेना छोड़ने के बाद वह प्रमुख खालसा दीवान के सदस्य बने और खालसा दीवान समुंद्री की स्थापना में मदद की। बच्चों की शिक्षा के लिए उन्होंने पांच स्कूलों की स्थापना भी की। जिनमें उनके गांव में खालसा मिडिल स्कूल और अमृतसर जिले के सरहली में श्री गुरु गोबिंद सिंह खालसा हाई स्कूल भी शामिल थे। खालसा दीवान बार के तत्वावधान में कुछ और स्कूल खोले गए। उन्होंने अकाली आंदोलनों में हिस्सा लिया और वह दैनिक समाचार पत्र "अकाली" संस्थापक सदस्य भी थे। कनाडा से आई वित्तीय सहायता से उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार भी लांच करवाया था, लेकिन जब वह कामयाब नहीं हुआ तो इसे आगे बेच दिया गया। इससे मिली राशि उन्होंने कनाडा ही भिजवा दी थी।

उन्होंने दिल्ली में गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब की चारदीवारी में से एक को गिराने के विरोध में में सार्वजनिक सभाओं का आयोजन किया। उन्हें 1921 की दुखद घटनाओं के बाद ननकाना साहिब गुरुद्वारे के प्रशासन के लिए नियुक्त समिति का सदस्य नामित किया गया था। वह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के संस्थापक सदस्यों में से थे और बाद वे इसके उपाध्यक्ष बने। नवंबर 1921 से जनवरी 1922 तक उन्हें स्वर्ण मंदिर में सरकार के अधीन खजाने चाबियां को लेकर विरोध किया और उन्हें कारावास का सामना करना पड़ा।  13 अक्टूबर 1923 को उन्हें जैतो मोर्चा के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। बताया जाता है कि इस दौरान अकाली दल दो फाड़ हो गया था, क्योंकि अंग्रेजों ने सिख बंदियों के आगे शर्त रखी थी कि जो माफी मांगेंगे उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। इस दौरान उन्होंने जेल में रहने का विकल्प चुना था। 17 जुलाई 1926 को दिल का दौरा पड़ने से सरदार तेजा सिंह की हिरासत में ही मृत्यु हो गई।

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