Edited By Anu Malhotra,Updated: 08 Nov, 2025 11:14 AM

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने शुक्रवार को कहा कि बैंकों पर लागू अधिग्रहण वित्तपोषण संबंधी प्रतिबंधों को हटाने का कदम रियल इकोनॉमी को मजबूती देने में मदद करेगा। पिछले महीने ही RBI ने बैंकों को अब कंपनियों के अधिग्रहण के लिए...
नेशनल डेस्क: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने शुक्रवार को कहा कि बैंकों पर लागू अधिग्रहण वित्तपोषण संबंधी प्रतिबंधों को हटाने का कदम रियल इकोनॉमी को मजबूती देने में मदद करेगा। पिछले महीने ही RBI ने बैंकों को अब कंपनियों के अधिग्रहण के लिए फंडिंग की अनुमति दी और IPO में शेयर खरीदने के लिए लोन की सीमा बढ़ा दी। यह कदम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में बैंकिंग लोन और निवेश को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा संकेत है।
सुरक्षा के साथ नई आज़ादी
हालांकि नए नियमों के साथ कुछ सुरक्षा शर्तें भी जुड़ी हैं। बैंक अब किसी भी डील का केवल 70% तक ही लोन दे सकते हैं और लोन तथा निवेश के बीच एक संतुलित अनुपात बनाए रखना अनिवार्य होगा। इसका उद्देश्य बैंकों को जोखिम से सुरक्षित रखना और साथ ही ग्राहकों को बिजनेस अवसरों का लाभ उठाने का मौका देना है।
अधिग्रहण में अब आसानी
पहले कंपनियों को किसी बिजनेस या कंपनी का अधिग्रहण कराने के लिए बैंक से लोन लेना मुश्किल था, क्योंकि कई तरह की पाबंदियां थीं। अब इन रोकों को हटाने के बाद कंपनियां आसानी से फंड लेकर मर्जर या अक्विजिशन कर सकेंगी। इसका असर निवेश बढ़ने, नए प्रोजेक्ट्स शुरू होने और समग्र आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के रूप में देखा जा सकता है।
बोर्डरूम के फैसलों में रेगुलेटर का दखल नहीं
SBI के बैंकिंग और इकॉनॉमिक्स कॉन्क्लेव में बोलते हुए RBI गवर्नर ने यह स्पष्ट किया कि कोई भी रेगुलेटर बोर्डरूम के फैसले की जगह नहीं ले सकता, और न ही ऐसा करना चाहिए। खासकर भारत जैसे देश में, जहां हर लोन, डिपॉज़िट और ट्रांजैक्शन की अपनी अलग विशेषताएं होती हैं। उनका कहना था कि नियामित संस्थाओं को प्रत्येक केस की अनूठी परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेने की आज़ादी होनी चाहिए, बजाय इसके कि सभी पर एक ही नियम लागू हो।
मजबूत और लचीली बैंकिंग व्यवस्था
संजय मल्होत्रा ने यह भी कहा कि निगरानी से जुड़ी कार्रवाइयों ने अस्थिर या अस्थायी तेजी को नियंत्रित करने और एक मजबूत बैंकिंग व्यवस्था तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। RBI के पास रिस्क वेट्स, प्रोविजनिंग नॉर्म्स और काउंटर-साइक्लिकल बफ़र्स जैसे उपकरण हैं, जिनकी मदद से उभरते जोखिमों को नियंत्रित किया जा सकता है।