13 या 14 फरवरी, कब है शब-ए-बारात, जानें मुसलमान क्यों मनाते हैं

Edited By Updated: 10 Feb, 2025 03:53 PM

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शब-ए-बारात इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे पूरी दुनिया के मुसलमान खास श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं। यह पर्व इस्लामिक कैलेंडर के शाबान महीने की 15वीं रात को मनाया जाता है। इस रात को विशेष रूप से अल्लाह की इबादत की जाती है और गुनाहों...

नेशनल डेस्क: शब-ए-बारात इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे पूरी दुनिया के मुसलमान खास श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं। यह पर्व इस्लामिक कैलेंडर के शाबान महीने की 15वीं रात को मनाया जाता है। इस रात को विशेष रूप से अल्लाह की इबादत की जाती है और गुनाहों की माफी की प्रार्थना की जाती है। शब-ए-बारात का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व समझने के लिए इसके इतिहास और मान्यताओं पर गौर करना जरूरी है। इस्लाम के अनुसार, शब-ए-बारात को "फजीलत की रात" कहा जाता है, क्योंकि इस रात को मुसलमानों की तमाम बुराईयों और गुनाहों की माफी की जाती है। इसे इस्लाम में अत्यधिक पवित्र और मुबारक माना जाता है। यह रात शाबान महीने की 14वीं और 15वीं तारीख के बीच आती है। शब-ए-बारात की रात में विशेष रूप से प्रार्थनाएं और उपवास किए जाते हैं, ताकि खुदा से क्षमा और आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके। इस बार शब-ए-बारात की रात (Kab Hai Shab-e-Barat 2025) 13 फरवरी से 14 फरवरी तक रहेगी। इस बार 13 फरवरी शब-ए-बारात का पर्व मनाया जाएगा।

शब-ए-बारात की धार्मिक मान्यताएं

शब-ए-बारात को लेकर विभिन्न इस्लामिक मान्यताएं प्रचलित हैं। सुन्नी मुसलमानों के अनुसार, इस दिन अल्लाह ने अपने नूर के संदूक को बाढ़ से बचाया था। जबकि शिया मुसलमानों के अनुसार, 15 शाबान को इमाम मुहम्मद अल महदी की पैदाइश हुई थी, और इसलिए यह दिन उनके लिए खास महत्व रखता है। एक हदीस के मुताबिक, पैंगबर मुहम्मद को शाबान की 15वीं तारीख में जन्नतुल बकी का दौरा करते देखा गया था। इसके अलावा, एक और मान्यता है कि शब-ए-बारात की रात में अल्लाह नर्क में यातनाओं का सामना कर रहे मुसलमानों को आदाज करते हैं और उन्हें उनके गुनाहों से मुक्ति दिलाते हैं।

शब-ए-बारात की रात कैसे मनाते हैं मुसलमान?

मुसलमान शब-ए-बारात को पूरी रात जागकर इबादत करते हैं। इस रात की विशेषता है कि महिलाएं अपने घरों में रहकर प्रार्थना करती हैं और पुरुष मस्जिदों में जाकर सामूहिक रूप से इबादत करते हैं। इस दिन को खासतौर पर अल्लाह से माफी और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा-अर्चना के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा, इस दिन का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि मुसलमान इस दिन रोजा रखते हैं, जो कि एक नफिल रोजा होता है, यानी इसे रखना अनिवार्य नहीं है, लेकिन लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार इसे रखते हैं। शब-ए-बारात के दिन मुसलमान अपने मृत पितरों के कब्रों पर भी जाते हैं और वहां साफ-सफाई करते हैं, फूल चढ़ाते हैं, अगरबत्ती जलाते हैं और उनके लिए दुआ करते हैं। इस दिन मुसलमानों के बीच सामूहिक रूप से जकात दी जाती है, ताकि गरीबों और जरूरतमंदों की मदद की जा सके।

शब-ए-बारात की रात का विशेष माहौल

शब-ए-बारात की रात को मुसलमान अपने घरों में मोमबत्तियां और रंग-बिरंगी लाइटें जलाते हैं, जो इस रात के पवित्र और विशेष माहौल को और भी खूबसूरत बना देती हैं। इसके अलावा, इस रात को विशेष पकवान भी तैयार किए जाते हैं, और लोग एक-दूसरे को मिठाइयां और ताजे पकवानों से तवज्जो देते हैं। इस दिन नए कपड़े पहनने की भी परंपरा है और मस्जिदों में सामूहिक प्रार्थनाएं आयोजित की जाती हैं।

 

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