टाटा vs सायरस मिस्त्री विवादः डबल से ज्यादा वैल्यू का दावा, SP ग्रुप की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

Edited By jyoti choudhary,Updated: 09 Dec, 2020 11:33 AM

tata group tells sc sp group s 18 37 stake in tata sons worth rs 80 000 crore

टाटा संस में शापूरजी पालोनजी ग्रुप की 18.4 फीसदी हिस्सेदारी की वैल्यू 80,000 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं है। यह बात सायरस मिस्त्री और टाटा संस के मुकदमे में टाटा का पक्ष रख रहे सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट में कही।

बिजनेस डेस्कः टाटा संस में शापूरजी पालोनजी ग्रुप की 18.4 फीसदी हिस्सेदारी की वैल्यू 80,000 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं है। यह बात सायरस मिस्त्री और टाटा संस के मुकदमे में टाटा का पक्ष रख रहे सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट में कही। टाटा संस में शापूरजी पालोनजी की हिस्सेदारी की वैल्यू को लेकर 8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। शापूरजी पालोनजी के मिस्त्री परिवार ने पहले दावा किया था कि टाटा संस में उनके 18.4 फीसदी हिस्सेदारी की वैल्यू 1.75 लाख करोड़ है।

PunjabKesari

SP ग्रुप की बढ़ सकती हैं मुश्किलें 
वैल्यू के इस फर्क से शापूरजी ग्रुप की मुश्किलें बढ़ सकती है कि क्योंकि यह ग्रुप पहले से ही नकदी संकट से जूझ रहा है। इसके साथ ही 2016 में सायरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से हटाया गया था जिसके बाद से ही दोनों के बीच कानूनी लड़ाई चल रही है। इस साल 29 अक्टूबर को शापूरजी ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट में टाटा ग्रुप से अलग होने का एक प्लान जमा किया था। इस प्लान के मुताबिक, शापूरजी ने नॉन-कैश सेटलमेंट की मांग की थी यानी इस हिस्सेदारी के बदले उन्हें कैश नहीं बल्कि उन सभी कंपनियों में हिस्सेदारी चाहिए थी जिसमें टाटा संस का स्टेक था।

PunjabKesari

ताकि SP ग्रुप की खत्म हो जाए कैश की दिक्कत
अभी तक मिली रिपोर्ट के मुताबिक, टाटा संस ने पूरी हिस्सेदारी खरीदने का प्रस्ताव रखा था ताकि शापूरजी ग्रुप की कैश की दिक्कत खत्म हो जाए। दूसरी तरफ सायरस मिस्त्री यह मांग कर रहे हैं कि टाटा संस के चेयरमैन पद पर उनकी दोबारा नियुक्ति की जाए। हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी थी, "मिस्त्री की नियुक्ति एग्जिक्यूटिव चेयरमैन के तौर पर नहीं हुई थी। ना ही उनके पास माइनॉरिटी शेयरहोल्डर का कोई अधिकार था। यहां तक कि मिस्त्री को पद से हटाने की भरपाई भी पर्सनल लेवल पर की जाएगी ना कि माइनॉरिटी शेयरहोल्डर के तौर पर होगी।"

PunjabKesari

मिस्त्री सिर्फ मार्च 2017 तक एग्जिक्यूटिव चेयरमैन थे
साल्वे ने कहा कि एग्जिक्यूटिव चेयरमैन के तौर पर सायरस मिस्त्री की नियुक्ति मार्च 2017 तक के लिए ही थी। यह जीवन भर के लिए नहीं था। उन्होंने कोर्ट में यह भी कहा कि 1965 से लेकर 1980 के बीच शापूरजी ग्रुप का कोई भी शख्स टाटा संस के बोर्ड में शामिल नहीं था। सायरस मिस्त्री के पिता पालोनजी मिस्त्री को टाटा संस के बोर्ड में नॉन-एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर के तौर पर 1980 में शामिल किया गया था। सायरस मिस्त्री 2006 में टाटा संस से जुड़े।

साल्वे की दलील, मिस्त्री को दी गई थी सिर्फ डेजिगनेशन
साल्वे ने ये भी दलील दी कि मिस्त्री को सिर्फ डेजिगनेशन दिया गया था ना कि पद। उन्होंने कहा, "कई बार कंपनियों में कोई एग्जिक्यूटिव चेयरपर्सन नहीं होता है और कंपनी के सबसे सीनियर डायरेक्टर ही अध्यक्षता करते हैं।" साल्वे ने कहा था कि मिस्त्री की नियुक्ति एग्जिक्यूटिव चेयरमैन के तौर पर नहीं हुई थी और ना ही उनके पास माइनॉरिटी शेयरहोल्डर के अधिकार थे।

साल्वे ने यह भी कहा, "सिर्फ 18 फीसदी स्टेक के साथ मिस्त्री को बोर्ड में एक डायरेक्टर का पद भी नहीं मिल सकता है। जिनके पास 68 फीसदी हिस्सेदारी है वह बोर्ड पर अपना कब्जा रखेंगे।" इससे पहले 18 नवंबर 2019 को NCLAT ने सायरस मिस्त्री को दोबारा चेयरमैन पद देने का फैसला सुनाया था। इस फैसले को टाटा संस ने चुनौती दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने10 जनवरी 2020 को NCLAT के फैसले पर रोक लगा दी थी।
 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!