Edited By Prachi Sharma,Updated: 22 Nov, 2023 08:19 AM
कोई भी धर्म हो हर धर्म में अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। मांस का भोजन भी इसी तरह हिंसा से प्राप्त होता है। शास्त्रों में हिंदुओं के
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Chanakya Niti: कोई भी धर्म हो हर धर्म में अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। मांस का भोजन भी इसी तरह हिंसा से प्राप्त होता है। शास्त्रों में हिंदुओं के लिए मांस खाना बड़ा पाप माना जाता है। महाभारत में भी ऐसे कई श्लोकों का जिकर किया है जिसमें मांस न खाने का सन्देश दिया है। जो व्यक्ति जीवों पर दया न करें और अपने स्वाद के लिए जीव की हत्या करता ऐसा व्यक्ति पाप का भागी और अधर्म को फैलाने वाला होता है।
जो व्यक्ति दूसरों का मांस खाकर अपने शरीर का मांस बढ़ाता है, उससे बढ़कर नीच और निर्दयी मनुष्य दूसरा कोई नहीं है। मांस न तो घास से, न तो लकड़ी से या फिर न तो पत्थर सो पैदा होता है। मांस किसी प्राणी की हत्या करने पर ही मिलता है। इसलिए मांस खाने हिंदू धर्म में सबसे बड़ा पाप माना जाता है। जो व्यक्ति मांस का त्याग कर देता है, वह व्यक्ति सब जीवों में आदरणीय, सब जीवों का विश्वसनीय और सदा साधुओं से सम्मानित होता है। जैसे हर व्यक्ति को अपना प्राण प्रिय होता है वैसे ही सभी प्राणियों को अपने-अपने प्राण प्रिय होते हैं। इसलिए मांस का त्याग करके अपने आपको पाप का भागी बनने से रोकना चाहिए।
मांस भक्षणमयुक्तं सर्वेषाम्।
भावार्थ: मांस खाने वाला व्यक्ति हिंसा का पक्षधर होता है। ऐसा व्यक्ति जीवों पर दया न करके अपने स्वाद के लिए जीव हत्या जैसा जघन्य कृत्य करता है। वह पाप का भागी और अधर्म को फैलाने वाला होता है। आचार्य चाणक्य के अनुसार जो लोग अपनी ख़ुशी के लिए दूसरों को दुःख पहुचांते हैं, कर्म के हाथों उनको कोई नहीं बचा सकता अर्थात कर्मों का फल तो अवश्य मिलता है। चाहे फिर को इस जन्म में भुगतना पड़े या फिर दूसरे जन्म।