Death Anniversary Of Lal Bahadur Shastri: ईमानदारी और सादगी की सबसे बड़ी मिसाल थे लाल बहादुर शास्त्री

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jan, 2024 06:55 AM

death anniversary of lal bahadur shastri

एक सामान्य परिवार में जन्म लेकर देश के प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद तक पहुंच कर उसकी गरिमा को चार चांद लगाने वाले, दुग्ध और हरित क्रांति के जनक लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्तूबर, 1904 को मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और...

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Lal Bahadur Shastri Death Anniversary 2024: एक सामान्य परिवार में जन्म लेकर देश के प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद तक पहुंच कर उसकी गरिमा को चार चांद लगाने वाले, दुग्ध और हरित क्रांति के जनक लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्तूबर, 1904 को मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और माता रामदुलारी के घर हुआ। परिवार में सबसे छोटे होने के कारण बालक लाल बहादुर को परिवार वाले प्यार से ‘नन्हे’ कहकर बुलाया करते थे। उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की जिससे ‘शास्त्री’ शब्द लाल बहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया।

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इन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से गरीबों की सेवा में लगाया। स्वाधीनता संग्राम के 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन जैसे महत्वपूर्ण आन्दोलनों में इनकी सक्रिय भागीदारी रही और परिणामस्वरूप कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश सरकार में पुलिस एवं परिवहन मंत्री बने। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में इन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कंडक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद इन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया।

1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल में रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री रहे। रेल मंत्री रहते एक रेल दुर्घटना के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था, जिससे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम हुई।

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इनकी साफ-सुथरी छवि और काबिलियत के कारण ही पं. जवाहरलाल नेहरू की आकस्मिक मौत के बाद 9 जून, 1964 को देश का दूसरा प्रधानमन्त्री बनाया गया। किसानों को अन्नदाता मानने वाले और देश के सीमा प्रहरियों के प्रति उनके अपार प्रेम ने हर समस्या का हल निकाल दिया और ‘जय जवान, जय किसान’ के उद्घोष के साथ उन्होंने देश को आगे बढ़ाया।

शास्त्री जी के नेतृत्व में देश ने पाकिस्तान को 1965 के युद्ध में बुरी तरह हराया जबकि इससे तीन वर्ष पूर्व ही भारत चीन से युद्ध हार चुका था। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। एक साजिश के तहत इन्हें रूस बुलवाया गया, जिसे इन्होंने स्वीकार कर लिया। काफी जद्दोजहद के बाद शास्त्रीजी पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर पाकिस्तान के जीते हुए इलाके उन्हें लौटाने के लिए ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करा लिए गए। उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किए कि वह हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधानमंत्री ही लौटाएगा, वह नहीं। समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद 10/11 जनवरी, 1966 की रात में 1.32 बजे संदिग्ध परिस्थितियों में शास्त्री जी की मौत हो गई। मरणोपरान्त 1966 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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