Dharmik Concept: जीवरक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं

Edited By Jyoti,Updated: 11 Oct, 2022 11:30 AM

dharmik concept in hindi

घोड़े पर सवार एक युवक कहीं जा रहा था। रास्ते में उसे एक घायल नेवला मिला। युवक को घायल पड़े उस छोटे से जीव को देखकर दया आ गई। वह घोड़े से नीचे उतरा और उसे उठाकर छाया में ले गया। अपने साथ रखे जल से भरी हुई अंजुली से थोड़ा

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घोड़े पर सवार एक युवक कहीं जा रहा था। रास्ते में उसे एक घायल नेवला मिला। युवक को घायल पड़े उस छोटे से जीव को देखकर दया आ गई। वह घोड़े से नीचे उतरा और उसे उठाकर छाया में ले गया। अपने साथ रखे जल से भरी हुई अंजुली से थोड़ा-सा जल नेवले के मुंह में डाला। कुछ देर में नेवले को होश आ गया और वह भागकर झाडिय़ों की तरफ चला गया।

युवक इसे एक सामान्य घटना समझकर भूल गया। कुछ दिनों बाद वही युवक जब वापस लौट रहा था तो रास्ते में उसे एक सर्प मिला। अचानक घोड़े का पैर उसे लग गया और सर्प नाराज होकर घोड़े के पीछ सरपट दौड़ने लगा। वह घोड़े और युवक को बदले की भावना से डस लेना चाहता था। आगे घोड़ा दौड़ रहा था और पीछे तेज चाल से सर्प। दोनों के बीच का फासला निरंतर कम होता जा रहा था, तभी झाड़ियों में से एक नवेला निकला। उसने सर्प पर हमला कर दिया। युवक ने पीछे मुड़कर देखा कि एक नेवला सर्प से लड़ रहा है। प्राण बचने पर युवक ने राहत महसूस की।

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फिर उसे पुरानी घटना याद आई कि यह शायद वही नेवला है जिसके मुंह में उसने जल डालकर प्राण बचाए थे। युवक सोचने लगा-एक तुच्छ प्राणी भी उपकार का बदला चुकाना जानता है। मैंने तो अनजाने में ही इसकी सहायता की थी। भलाई की थी। आज मुझे उसी भलाई का फल मिला-जिसके कारण मेरे जीवन की रक्षा हुई है। इसलिए कहते हैं-जीवरक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं।

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