Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Sep, 2023 08:06 AM

एक बार दो ठग राजा के दरबार में पहुंचे और स्वयं को सोने के जेवर नहीं, बल्कि वस्त्र बनाने वाले बताया और राजा की जम कर तारीफ करके उन्हें अपने लिए सोने
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Inspirational Story: एक बार दो ठग राजा के दरबार में पहुंचे और स्वयं को सोने के जेवर नहीं, बल्कि वस्त्र बनाने वाले बताया और राजा की जम कर तारीफ करके उन्हें अपने लिए सोने के वस्त्र तैयार करवाने के लिए राजी कर लिया। ठग बोला, ‘‘आप शरीर से सुडौल हैं, आपके नैन-नक्श बेमिसाल हैं, अगर कमी है तो वेशभूषा की। हम आपको ऐसा परिधान बनाकर देंगे जिसे पहनते ही आप राजाओं के भी राजा दिखने लगेंगे। हम इस काम के माहिर हैं। हम कपड़ा तो बुनते हैं, पर सोने की तारों का, जिसे कोई बादशाह ही बनवा सकता है। हम आपके वस्त्र और दोशाला सोने के बना कर उस पर ऐसी कशीदाकारी करेंगे कि देखने वाले देखते रह जाएंगे।’’

ठगों ने सोने के वस्त्र बनाने के लिए दो कमरे और सोना मांगा। राजा ने अपने प्रधानमंत्री को आदेश दे दिया कि इन्हें जो वस्तु चाहिए जल्द से जल्द मुहैया करवाई जाए। अगले दिन ठग काम शुरू करने से पहले झूठ-मूठ का हवन करने बैठ गए और प्रधानमंत्री के माध्यम से राजा को काम का उद्घाटन करने के लिए बुलावा भेजा तो राजा अपने वजीरों और लाव-लश्कर के साथ आकर बहुत ही सुंदर तथा बढ़िया ढंग से सजाए हुए आसन पर विराजमान हो गया।
एक ठग बोला, ‘‘राजा साहब का इकबाल बुलंद हो और सभी मंत्री अपने राजा जी के विश्वासपात्र बने रहें और इनकी आज्ञा का पालन करते हुए इस राज्य की सीमाओं को और दूर तक ले जाएं। देवों से प्राप्त वरदान से कुछ ही दिनों में तैयार हो जाने वाले इन स्वर्ण वस्त्रों को पहनने पर इन्हें देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होगा और अदृश्य रक्षा कवच मिलेगा।’’
‘‘जब हम स्वर्ण धागों से बुनाई कर रहे हों तो कोई भी अति विशिष्ट व्यक्ति आकर देख सकता है लेकिन इस वस्त्र को बुद्धिमान व्यक्ति ही देख सकता है। बुद्धिहीन को यह कपड़ा नहीं दिखाई देगा’’

धीरे-धीरे उन्होंने खूब सारा सोना ले लिया। जब मंत्री काम देखने आता तो उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, इसलिए उसने यही समझा कि शायद वही मूर्ख होगा तभी तो यह देवताओं के वरदान से बन रहे वस्त्र उसे दिखाई नहीं दे रहे। आखिर वह दिन भी आ गया जब राजा ने स्वर्ण निर्मित वस्त्र पहनकर एक जुलूस के रूप में अपने राज्य की जनता को दिखाने थे। मुनादी भी करा दी गई कि अमुक दिन हमारे राजा जी सोने से बने और रत्नों से जड़ित वस्त्र पहनकर जनता जनार्दन से मिलने और जनता का आशीर्वाद लेने जुलूस के रूप में निकलेंगे। सभी शहर निवासियों सेे अपील है कि वे आकर स्वर्ण वस्त्रों में सजे अपने अपने प्रिय राजा जी के दर्शन कर उन्हें अपना आशीर्वाद दें, परन्तु देवताओं के वरदान प्राप्त कारीगरों द्वारा निर्मित ये वस्त्र केवल बुद्धिमान व्यक्ति ही देख सकता है। इस राज्य की जनता मूर्ख नहीं बुद्धिमान है। ऐसा हमें पूर्ण विश्वास है।
दोनों ठग एक बड़ा ट्रंक लेकर राजा जी के कमरे में पहुंचे, जहां उनको स्वर्ण वस्त्र पहनाकर शोभा यात्रा हेतु तैयार करना था।
ठगों ने ट्रंक खोला जो खाली था परन्तु राजा के मन में तो यह धारणा बन चुकी थी कि मूर्ख होने के कारण उसे ये अलौकिक वस्त्र नजर नहीं आ रहे।

दोनों ठगों ने राजा के शरीर पर केवल अंग वस्त्र छोड़ कर बाकी कपड़े उतरवा दिए और उन्हें सोने के वस्त्र पहनाने का नाटक करने लगे और बोले वाह, बादशाह सलामत वाह आपकी इतनी शोभा बढ़ गई है कि कहीं किसी की नजर न लग जाए।
राजा कक्ष से बाहर आए तो दृश्य देखने वाला था। केवल अंग वस्त्र और ऊपर मुकुट पहने हुए देख कर कोई भी अपनी हंसी रोक न पाता, पर सामने राजा और दूसरी ठगों की कही वह बात कि स्वर्ण वस्त्र केवल बुद्धिमान व्यक्ति ही देख सकता है, सभी झूठमूठ की वाह-वाह करने लगे।
राजा जब जुलूस में निकला तो जनता जनार्दन में बच्चे, बूढ़े, जवान और औरतें सभी शामिल थे। सब उस राजा के निकलते जुलूस का आनंद ले रहे थे। राजा दोनों हाथ हिलाकर धन्यवाद कर रहा था। तभी भीड़ में एक बच्चा बोला, ‘‘राजा नंगा है। नंगे ने मुकुट भी पहना है।’’ उसके साथी बच्चे भी हंस-हंस कर ‘राजा नंगा है’ की आवाजें निकालने लगे।
यह सुनते ही राजा के दिमाग की सभी बंद बत्तियां जल उठीं। वह सारा माजरा समझ गया। उसने महावत को आदेश दिया कि हाथी को जल्दी से महल की ओर ले चलो। राजा ने महल में पहुंचते ही आदेश दिया, ‘‘सोने का कपड़ा बुनने वाले कारीगर नहीं एक नम्बर के ठग हैं। जल्दी पकड़ कर लाओ। इन्हें मैं फांसी पर लटका दूंगा।’’
प्रधानमंत्री ने सैनिकों और पहरेदारों को उन ठगों को पकड़ने का आदेश दिया, पर वे दोनों तो राजा का जुलूस निकलने से पहले ही नदारद हो चुके थे।