Kamrunag Lake- देवता को भोग के बाद झील में भेंट किए जाते हैं सोना-चांदी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Jun, 2021 09:35 AM

kamrunag lake

हिमाचल प्रदेश देवभूमि है, यहां के देव स्थानों के दर्शनों की अभिलाषा रखने वाला हर शख्स कमरुनाग जरूर जाना चाहता है। यह महाभारतकालीन स्थल के रूप में विख्यात है। कमरुनाग झील

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Himachal Kamrunag Lake Mystery: हिमाचल प्रदेश देवभूमि है, यहां के देव स्थानों के दर्शनों की अभिलाषा रखने वाला हर शख्स कमरुनाग जरूर जाना चाहता है। यह महाभारतकालीन स्थल के रूप में विख्यात है। कमरुनाग झील हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध झीलों में से एक है। यह झील मंडी घाटी की तीसरी प्रमुख झील है। यहां पर कमरुनाग देवता का प्राचीन मंदिर भी है, जहां जून माह में विशाल मेले का आयोजन होता है। हिमाचल प्रदेश के मंडी नगर से 51 किलोमीटर दूर करसोग घाटी में स्थित कमरुनाग झील समुद्र के तल से लगभग नौ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। देवदार के घने जंगलों से घिरी यह झील प्रकृति प्रेमियों को अभिभूत कर देती है। झील तक पहुंचने का रास्ता भी बहुत सुरम्य है और यहां के लुभावने दृश्यों को देखकर पर्यटक अपनी सारी थकान भूल जाता है।

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Kamrunag Temple in Himachal: कमरुनाग झील के किनारे पहाड़ी शैली में निर्मित कमरुनाग देवता का प्राचीन मंदिर भी है, जहां पत्थर की प्रतिमा स्थापित है। करसोग से शिमला की ओर जाते हुए मार्ग में तत्तापानी नामक खूबसूरत स्थल है। यह स्थल सल्फर युक्त गरम जल के चश्मों के लिए मशहूर है। एक ओर बर्फ की तरह सतलुज का ठंडा जल अगर शरीर को सुन्न कर देता है तो वहीं इस नदी के आगोश से फूटता गरम जल पर्यटकों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है।

हर साल पहली आषाढ़ को कमरुनाग मंदिर में सरानाहुली मेले का आयोजन होता है। मेले के दौरान मंडी जिला के बड़ा देव कमरुनाग के प्रति आस्था का महाकुंभ उमड़ता है। नि:संतान दम्पतियों को संतान की चाह हो या फिर अपनों के लिए सुख-शांति और सुख-सुविधा की मनौती, हर श्रद्धालु के मन में कोई न कोई कामना रहती है जो इसे मीलों पैदल चढ़ाई चढ़ाकर इस स्थल तक पहुंचा देती है।

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दूर-दूर से आए लोग मनोकामना पूरी होने पर झील में करंसी नोट, हीरे जवाहरात चढ़ाते हैं। महिलाएं अपने सोने-चांदी के जेवर झील को अर्पित कर देती हैं। देव कमरुनाग के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि झील में सोना-चांदी और मुद्रा अर्पित करने की यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। यह झील आभूषणों से भरी है। झील में अपने आराध्य के नाम से भेंट चढ़ाने का भी एक शुभ समय है।
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जब देवता को कलेवा लगेगा अर्थात भोग लगेगा, तब ही झील में भेंट डाली जाती है। झील में करंसी, सोना, चांदी व गहने फैंके जाने का रोचक, रोमांचक और हैरतअंगेज नजारा यदि प्रत्यक्ष रूप से देखना हो तो पहली आषाढ़ की सुबह ही यहां पहुंच जाना चाहिए।

स्थानीय लोग कहते हैं कि झील में अरबों के जेवर हैं। झील में अरबों की दौलत होने के बावजूद सुरक्षा का कोई खास प्रबंध नहीं है। यहां पर सामान्य स्थितियों जितनी सुरक्षा भी नहीं है। लोगों की आस्था है कि कमरुनाग इस खजाने की रक्षा करते हैं। देव कमरुनाग मंडी जिला के सबसे बड़े देव हैं। उनके प्रति आस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके मंडी नगर में पहुंचने के बाद ही अन्तर्राष्ट्रीय शिवरात्रि मेले का शुभारंभ होता है।

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Barbarik Story From Mahabharat: महाभारत के युद्ध की गाथा में एक कहानी आती है, बबरीक अथवा बबरू भान जिसे रत्न यक्ष के नाम से भी जाना जाता है, वह अपने समय का अजेय योद्धा था। उसकी भी इच्छा थी कि वह महाभारत के युद्ध में हिस्सा ले। जब उसने अपनी माता से युद्धभूमि में जाने की आज्ञा लेनी चाही तो मां ने एक शर्त पर आज्ञा दी कि वह उस सेना की ओर से लड़ेगा जो हार रही होगी।

जब इस बात का पता श्री कृष्ण को चला तो उन्होंने बबरीक की परीक्षा लेने की ठानी क्योंकि श्री कृष्ण को पता था हर हाल में हार तो कौरवों की ही होनी है। श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का वेष धारण किया और बबरीक से मिलने जा पहुंचे। उसके तरकश में सिर्फ तीन तीर देख कर श्री कृष्ण ने ठिठोली की कि बस तीन ही बाण से युद्ध करोगे। तब बबरीक ने बताया कि यह एक ही बाण का प्रयोग करेगा और वह भी प्रहार करने के बाद वापस उसी के पास आ जाएगा। यदि तीनों बाणों का उपयोग किया तो तीनों लोकों में तबाही मच जाएगी।

PunjabKesari Kamrunag Lakeश्री कृष्ण ने उसे चुनौती दी कि वह  सामने खड़े पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को भेद के दिखाए। जैसे ही बबरीक ने बाण निकाला, कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा दिया। कुछ ही क्षणों में उस बाण ने सभी पत्ते भेद कर जैसे ही श्री कृष्ण के पैर की तरफ रुख किया तो श्री कृष्ण ने जल्दी से अपना पैर हटा दिया। अब श्री कृष्ण ने अपनी लीला रची और दान लेने की इच्छा जाहिर की। साथ ही वचन भी ले लिया कि वह जो भी मांगेंगे, बबरीक को देना पड़ेगा।

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वचन प्राप्त करते ही श्री कृष्ण ने अपना असली रूप धारण किया तथा उस योद्धा का सिर मांग लिया। बबरीक ने एक इच्छा जाहिर की कि वह महाभारत का युद्ध देखना चाहता है तो श्री कृष्ण ने उसका कटा हुआ मस्तक, युद्ध भूमि में एक ऊंची जगह पर टांग दिया, जहां से वह युद्ध देख सके। कथा में वर्णन आता है कि बबरीक का सिर जिस तरफ भी घूम जाता था, वह सेना जीत हासिल करने लग जाती थी। ये देख कर श्री कृष्ण ने उसका सिर पांडवों के खेमे की ओर कर दिया। पांडवों की जीत सुनिश्चित हुई। युद्ध की समाप्ति के बाद कृष्ण ने बबरीक को वरदान दिया कि तुम कलयुग में श्याम खाटू के रूप में पूजे जाओगे और तुम्हारा धड़ (कमर) कमरू के रूप में पूजनीय होगा।

आज खाटू श्याम जी, राजस्थान के सीकर जिले में स्थित हैं और कमर (धड़) यहां पहाड़ी पर देव कमरुनाग के रूप में स्थित है। बाद में जब पांडव यहां से अपनी अंतिम यात्रा के दौरान गुजरे तो वह कमरू से मिलने के लिए रुके।

जब कमरु ने कहा कि उन्हें प्यास लगी है, तब भीम ने अपनी हथेली का वार धरती पर किया और वहां एक झील उभर गई, जो आज कमरुनाग झील के नाम से विख्यात है। पांडवों के पास जो भी गहने थे वो इस झील में फैंककर फूलों की घाटी की ओर प्रस्थान कर गए। आज भी यह परम्परा है, जो भी यहां आता है वह सोना-चांदी, गहने या सिक्के इस झील को अर्पित करता है।

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यहां के पुजारी बताते हैं कि यह झील पाताल लोक तक गहरी है और इसमें कई अरब का खजाना समाहित है। कई बार चोरों ने इसे लूटने की कोशिश भी की। मगर जो भी इस नीयत से आया वह अंधा हो गया और कुछ भी हासिल न कर पाया। पुरानी मान्यताओं के अनुसार एक बार एक ब्रिटिश व्यक्ति ने इस झील से सोना निकालने की कोशिश की थी लेकिन वह इसमें नाकामयाब रहा और काफी बीमार हो गया।

कमरुनाग मंदिर में ठंड के दिनों में जाना काफी मुश्किल होता है। इस वक्त पूरा इलाका बर्फ की मोटी चादर से ढंक जाता है। ऐसे में यहां केवल अनुभवी ट्रैकर ही पहुंचते हैं। मंदिर का आकार काफी छोटा है लेकिन फिर यहां हर साल आने वाले भक्तों की तादाद बढ़ती ही जाती है।

प्रभु कमरुनाग को बड़ा देव भी कहा जाता है तथा इनकी वर्षा के देवता के रूप में भी मान्यता है। सूखे की स्थिति में लोग कुल्लू, चच्योट, मंडी, बल्ह और करसोग आदि स्थानों से यहां आकर अच्छी वर्षा के लिए पूजा-अर्चना करते हैं।

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