Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Nov, 2025 07:36 AM

हिंदू धर्मग्रंथों में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अत्याचारी मामा कंस का वध किया था। यह घटना न केवल श्रीकृष्ण के जीवन की एक महत्वपूर्ण लीला मानी जाती है, बल्कि धर्म की...
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Kans Vadh Katha: हिंदू धर्मग्रंथों में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अत्याचारी मामा कंस का वध किया था। यह घटना न केवल श्रीकृष्ण के जीवन की एक महत्वपूर्ण लीला मानी जाती है, बल्कि धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक भी है।
भगवान श्रीकृष्ण का पूरा जीवन दिव्य लीलाओं से भरा हुआ था। उनके जन्म से लेकर कंस वध तक हर प्रसंग किसी गूढ़ आध्यात्मिक संदेश से ओत-प्रोत था। श्रीकृष्ण का जन्म भी साधारण नहीं था, वे उस समय जन्मे जब उनकी माता देवकी और पिता वसुदेव कंस द्वारा जेल में बंद थे।
कंस, जो शूरसेन राज्य का राजा था, एक भविष्यवाणी से भयभीत हो गया था। भविष्यवाणी में कहा गया था कि उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र ही उसका वध करेगा। इस डर से कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके छह पुत्रों को जन्म लेते ही मार डाला। सातवें गर्भ में बलराम का और आठवें में स्वयं भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया।

कृष्ण के जन्म के समय चमत्कारिक घटनाएं घटीं, पहरेदार सो गए, जेल के ताले स्वयं खुल गए, और वसुदेव सुरक्षित रूप से नवजात श्रीकृष्ण को यमुना पार नंदबाबा के घर गोकुल पहुंचा आए।
कंस को जब यह समाचार मिला कि कृष्ण गोकुल में जीवित हैं, तो उसने उन्हें मारने के लिए अनेक राक्षस भेजे पूतना, त्रिणावर्त, बकासुर, अघासुर जैसे असुर, लेकिन कोई भी बालकृष्ण की लीला के आगे टिक न सका।
अंततः कंस ने श्रीकृष्ण और बलराम को मथुरा बुलाने की योजना बनाई। उसने उन्हें एक प्रतियोगिता के बहाने आमंत्रित किया, लेकिन उसका असली उद्देश्य था, उन्हें मरवा देना। किंतु हुआ उलटा श्रीकृष्ण ने अपने मामा के अत्याचारों का अंत कर दिया और मथुरा की प्रजा को उसके भय से मुक्त कराया। कंस का वध केवल एक राक्षस के अंत की कथा नहीं है, बल्कि यह संदेश देता है कि अन्याय और अधर्म चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः धर्म की ही विजय होती है।
