शनि देव ने चली थी ऐसी चाल, अल्पायु के साथ पैदा हुआ था रावण का पुत्र मेघनाथ!

Edited By Jyoti,Updated: 25 Sep, 2020 02:53 PM

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श्री राम के भावी अर्धांगिनी देवी सीता का अपहरण करने वाले रावण के बारेे में वर्णन मिलता है कि वह परम ज्ञानी था। इसमें कोई एक नहीं बल्कि अनेकों गुण थे।

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श्री राम के भावी अर्धांगिनी देवी सीता का अपहरण करने वाले रावण के बारेे में वर्णन मिलता है कि वह परम ज्ञानी था। इसमें कोई एक नहीं बल्कि अनेकों गुण थे। शास्त्रों में में इस परम भगवान शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ , महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली ,शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकान्ड विद्वान, पंडित एवं महाज्ञानी का दर्जा प्राप्त था। रावण के पिता विश्रवा ऋषि पुलत्स्य के पुत्र थे, परंतु रावण की माता रावण की माता कैकसी थी जो राक्षस कुल की होने के कारण एक राक्षसी थी। जिस कारण रावण को ब्राह्माण की संतान भी माना जाता था और राक्षसी संतान भी। रामायण के अनुसार रावण ने अपनी विद्या तथा ज्योतिष ज्ञान के दम पर सभी 9 ग्रहों को अपने एक स्थिति में बाध्य कर रखा था। जिस कारण सार ग्रह रावण से डरते थे। परंतु कथाओं के अनुसार न्याय के देवता व कर्मफलदाता शनि रावण के खिलाफ थे। सनातन धर्म के विभिन्न ग्रंथों में बाखूबी इस बात का प्रमाण मिलता है कि शनि देव जिस के भी खिलाफ हो जाएं या अपने अशुभ प्रभाव डाल देेते हैं तो उस व्यक्ति का जीवन अलग ही दिा में चला जाता है।
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धार्मिक ग्रंथों में शनि देव, रावण तथा रावण के रपुत्र मेघनाथ से जुड़ा एक बहुत ही दिलचस्प प्रसंग मिलता है। चलिए जानते हैं क्या है वो प्रसंग- 

दरअसल कथाओं के अनुसार जब रावण ने तमाम नवग्रहों को बाध्य कर रखा था तब रावण की पत्नी मंदोदरी मेघनाथ के गर्भ में मेघनाथ था। रावण ने सभी ग्रह को इसलिए अपने निश्चित स्थिति में इसलिए बाध्य कर रखा था कि क्योंकि वो चाहता था कि इनकी शुभ दृष्टि से उसका पुत्र अत्यंत तेजस्वी, शौर्य तथा पराक्रम आदि से युक्त पैदा हो। कथाओं के अनुसार रावण ने ऐसा समस्त ग्रहों का समय साध लिया था जिस समय में जो भी जातक का जन्म हो वह जातक अजेय व दीर्घायु पैदा हो। 

पंरतु पौराणिक किंवदंतियों के अनुसार शनि देव ने रावण की इच्छा के विपरीत जातक अपनी स्थिति में परिवर्तन कर लिया। जिससे रावण अत्यंत क्रोधित हुआ क्योंकि शनि देव के इस साहस के कारण रावण का पुत्र पराक्रमी तो हुआ मगर अल्पायु पैदा हुआ।  रावण ज्योतिष विद्या का प्रकाण्ड विद्वान था। कहते हैं एक बार उसने अपने ज्योतिष ज्ञान के बल से सभी ग्रहों को अपने एक स्थिति में रहने के लिए बाध्य कर दिया था। इस दौरान जब सभी ग्रह रावण के भय से त्रस्त थे। उसी समय कर्मफलदाता शनि रावण के खिलाफ विद्रोह कर रहा था। 
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रावण की पत्नी मंदोदरी जब मेघनाथ को जन्म देने वाली थी। तब रावण ने नवग्रहों को एक निश्चित स्थिति में रहने के लिए बाध्य कर दिया था जिससे उत्पन्न होने वाला पुत्र अत्यंत तेजस्वी, शौर्य, पराक्रम से युक्त होता। रावण ने सभी ग्रहों का ऐसा समय साध लिया था जिस समय में अगर किसी बालक का जन्म हो तो वह अजेय एवं दीर्घायु होता। 

लेकिन जब मेघनाद का जन्म हुआ तो बाकि सभी ग्रहों ने रावण के भय से उसकी आज्ञा का पालन किया लेकिन ठीक उसी समय शनि ग्रह ने अपनी स्थिति में परिवर्तन कर लिया। रावण इससे अत्यंत क्रोधित हो गया। दरअसल शनिदेव के इस साहस के कारण रावण का पुत्र पराक्रमी तो हुआ लेकिन वह अल्पायु पैदा हुआ।  

ऐसी कुछ मान्यताएं प्रचलित हैं, कि रावण ने क्रोध में आकर शनि के पैर पर गदा का प्रहार किया था जिस कारण शनि के पैर में चोट लग गई और वो लंगड़े हो गए। शनि देव का यह विद्रोह रामायण युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से अधर्म का नाश और धर्म की विजय के लिए काम आया। जिसका परिणाम ये हुआ था कि रामायण काल में युद्ध के दौरान मेघनाद लक्ष्मण जी के द्वारा मारा गया था। 

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