Maharana Pratap Jayanti: महलों में रहने वाले क्यों जीएं भीलों की तरह...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 May, 2023 07:13 AM

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स्वतंत्रता की प्रथम ज्योति प्रज्वलित करके भारत के गौरवशाली, अतीत की रक्षा के लिए एवं देशवासियों को दासता के जीवन से छुटकारा दिलाकर स्वाभिमान के लिए मर-मिटने का पाठ पढ़ाने वाले स्वतंत्रता देवी के

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Maharana Pratap Jayanti 2020: स्वतंत्रता की प्रथम ज्योति प्रज्वलित करके भारत के गौरवशाली, अतीत की रक्षा के लिए एवं देशवासियों को दासता के जीवन से छुटकारा दिलाकर स्वाभिमान के लिए मर-मिटने का पाठ पढ़ाने वाले स्वतंत्रता देवी के अनन्य भक्त महाराणा प्रताप ने कहा था कि, ‘‘परतंत्र बनकर महलों में निवास और चांदी के पात्रों में भोजन करने से, कहीं अच्छा है जंगलों में भूमि शयन और फूल-फल पादपों और घास की रोटियां जिनमें स्वतंत्रता की सुगंध तो विद्यमान है।’’

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इसी महान स्वतंत्र दीप से आलोकित हुआ छत्रपति शिवाजी का अंत:करण और अपने जीवन भर मराठा राज्य के लिए लड़ती रही महान वीरांगना झांसी की रानी ने भी इसी इतिहास को पढ़कर जीवन के अंतिम क्षणों तक ब्रिटिश हुकूमत से युद्ध किया और ब्रिटिश सरकार के जोर जुल्म के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं किया।

इसी प्रेरणा से ही प्रेरित होकर वर्तमान स्वतंत्रता के प्रणेता के रूप में सर्वप्रथम श्री खुदीराम बोस ने देश की बलिवेदी का नमन किया, फिर असंख्य देशभक्तों ने इस स्वतंत्रता की वेदी पर अपने को बलिदान करते हुए कहा, ‘‘सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुएं कातिल में है।’’

इस पंक्ति में रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, सरदार भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस आदि खड़े हैं। हम विस्मृत नहीं कर सकते बहादुरशाह जफर को जिनके शब्द थे कि, ‘‘बागियों में जब तलक ताकत है एक ईमान की, तख्त लंदन तक चलेगी तेग हिंदोस्तान की।’’

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ये सब स्वतंत्रता प्रेमी महाराणा प्रताप से ही प्रेरित थे और इस बात से कदापि इंकार नहीं किया जा सकता कि स्वतंत्रता की भावना जाग्रत करने का श्रेय ‘राणा’ को ही जाता है। जिन्होंने विदेशी मुगलिया शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता का पहला बिगुल बजाया था। ‘हल्दी घाटी’ का युद्ध उसी प्रकार विदेशी शासन के विरुद्ध था जिस प्रकार भारत का स्वतंत्रता संग्राम। ‘हल्दी घाटी’ का युद्ध किसी जाति अथवा वर्ग विशेष के विरुद्ध न होकर एक विदेशी हुकूमत के विरुद्ध था और उस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नायक था ‘प्रणवीर, राणा प्रताप’। हल्दी घाटी और स्वतंत्रता संग्राम दोनों विदेशी सत्ता के विरुद्ध हुए चाहे वह मुगलिया हुकूमत हो अथवा अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध। इस प्रकार यह र्निविवाद सत्य है कि राणा प्रताप ही इस देश के प्रथम स्वतंत्रता के प्रेरणा स्रोत थे।

‘अकबर’ यदि बेलगाम का तुरंग था तो चढऩे का राणा बेलगाम का सवार था। राणा ने भारत की सोयी हुई हिंदू जाति को उस समय जगाया था जब हम परतंत्रता के गर्त में गिर चुके थे, हमारा गौरव दिशाहीन होकर नष्ट हो रहा था।

प्रताप पराक्रम (हल्दी घाटी)
चीघते थे हाथी हय हींसते थे बारबार
बैरियों में हल्ला सुन रल्ला मच जाता था
कट-कट रुण्ड, मुंड-झुंड झक मारते थे
झट्ट-पट्ट वीरता का झंडा गड़ जाता था।
हेकड़ों की हेकड़ी दबा के दुम भागती थी
मुगलों का सारा मदमान झड़ जाता था
लेकर स्वतंत्रता की तेज तलवार जब,
प्रणवीर प्रबल प्रताप अड़ जाता था।

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उस महान स्वतंत्रता प्रेमी ने हल्दी घाटी के युद्ध में जो पराक्रम दिखाया वह स्मरणीय, वंदनीय तथा अभिनंदनीय है।

उस विभूति ने महल, अटारी, राजपाट, स्वर्णपात्र छोड़ कर सपरिवार जंगलों में रहकर घास-फूस की रोटियां, फल पत्र खाकर दिन बिताए थे और प्रतिज्ञा की थी कि जब तक देश को स्वतंत्र नहीं कर लूंगा, भीलों की तरह जीवन बिताऊंगा।

प्रताप-प्रतिज्ञा
जंगलों में घूमूंगा, पहाड़ों पै करूंगा वास, जीवन की घाटियों में ऊधम मचाऊंगा।
खाने को भोजन नसीब यदि होगा नहीं, पादपों के फूल पत्र बीन-बीन खाऊंगा।
हाथ में रहेगा हथियार यदि न कोई तो खाली नखों से शत्रु आसन डिगाऊंगा।
भूखे प्राण त्याग दूंगा, बस्ती छोड़ दूंगा और हस्ती मेट दूंगा, पर शीश न झुकाऊंगा।।
चाहे भील वीर भारी बांकुरे लड़ाकू, रणक्षेत्र में दिखाएं पीठ जीवन में ख्वार हो।
विश्व की विभूति सारी शक्तियां हों एक ओर, एक ओर चेतक और मेरी तलवार हो।
देशभक्ति के प्रेरणा स्रोत तुम्हें शत्-शत् नमन।

PunjabKesari kundli

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