Edited By Sarita Thapa,Updated: 19 Jun, 2025 08:24 AM

Motivational Story: एक मन्दिर निर्माण के समय 3 श्रमिक धूप में बैठे पत्थर तोड़ रहे थे। उधर से गुजर रहे एक संत ने उनसे पूछा- क्या कर रहे हैं? एक बोला, महात्मा जी, पत्थर तोड़ रहा हूं। उसके कहने में दुख और बोझ था।
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Motivational Story: एक मन्दिर निर्माण के समय 3 श्रमिक धूप में बैठे पत्थर तोड़ रहे थे। उधर से गुजर रहे एक संत ने उनसे पूछा- क्या कर रहे हैं? एक बोला, महात्मा जी, पत्थर तोड़ रहा हूं। उसके कहने में दुख और बोझ था। भला पत्थर तोड़ना आनन्द की बात कैसे हो सकती है। वह उत्तर देकर फिर बुझे हुए मन से पत्थर तोड़ने लगा।

तभी संत की ओर देखते हुए दूसरे श्रमिक ने कहा-बाबा, यह तो रोजी-रोटी है। मैं तो बस अपनी आजीविका कमा रहा हूं। उसने जो कहा, वह भी ठीक बात थी। वह पहले मजदूर जितना दुखी तो नहीं था, लेकिन आनन्द की कोई झलक उसकी आंखों में नहीं थी। बात भी सही है, आजीविका कमाना भी एक काम है उसमें आनन्द की अनुभूति कैसे हो सकती है?
तीसरा श्रमिक यूं तो पत्थर तोड़ रहा था, पर उसके होंठों पर गीत के स्वर फूट रहे थे। उसने गीत को रोककर संत को उत्तर दिया- बाबा, मैं तो मां का घर बना रहा हूं। उसकी आंखों में चमक थी, ह्रदय में देवी जगदम्बा के प्रति भक्ति हिलोरे ले रही थी। निश्चय ही मां का मंदिर बनाना कितना सौभाग्यपूर्ण है। इससे बढ़कर आनन्द भला और क्या हो सकता है।

इन तीनों श्रमिकों की बात सुनकर संत यह कहते हुए भाव समाधि में डूब गए कि सचमुच जीवन तो वही है, पर नजरिया अलग-अलग होने से सब कुछ बदल जाता है। दृष्टिकोण के भेद से फूल कांटे हो जाते हैं, और कांटे फूल हो जाते हैं। आनंद अनुभव करने का दृष्टिकोण जिसने पा लिया उसके जीवन में आनन्द के सिवा और कुछ नहीं रहता।
