Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Aug, 2022 08:53 AM
संत निरंकारी मिशन के प्रमुख सदगुरू सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि ब्रह्मज्ञान को जीवन का आधार बनाकर निरंकार से जुड़े रहना और मन में उसका प्रतिपल स्मरण करते हुए, सेवा भाव को अपनाकर जीना ही वास्तविक
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नई दिल्ली (ब्यूरो): संत निरंकारी मिशन के प्रमुख सदगुरू सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि ब्रह्मज्ञान को जीवन का आधार बनाकर निरंकार से जुड़े रहना और मन में उसका प्रतिपल स्मरण करते हुए, सेवा भाव को अपनाकर जीना ही वास्तविक भक्ति है। पुरातन संतों एवं भक्तों का जीवन भी ब्रह्मज्ञान से जुड़कर ही सार्थक हो पाया हैं। मिशन की ओर से आयोजित ‘मुक्ति पर्व’ समागम के अवसर पर लाखों की संख्या में एकत्रित विशाल जन-समूह को सम्बोधित करते हुए सत्गुरू माता ने कहा कि ब्रह्मज्ञान को जानना ही मुक्ति नहीं अपितु उसे प्रतिपल जीना ही वास्तविक मुक्ति है। यह अवस्था निरंकार को मन में बसाकर उसके रंग में रंगकर ही संभव है क्योंकि ब्रह्मज्ञान की दृष्टि से जीवन की दशा एवं दिशा एक समान हो जाती है।
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उन्होंने कहा कि जीवन में आत्मिक स्वतंत्रता के महत्व को सदगुरू माता ने उदाहरण सहित बताया कि जिस प्रकार शरीर में जकड़न होने पर उससे मुक्त होने की इच्छा होती है उसी प्रकार हमारी आत्मा तो जन्म जन्म से शरीर में बंधन रूप में है और इस आत्मा की मुक्ति केवल निरंकार की जानकारी से ही संभव है।
जब हमें अपने निज घर की जानकारी हो जाती है तभी हमारी आत्मा मुक्त अवस्था को प्राप्त कर लेती है। उसके उपरांत ब्रह्मज्ञान की दिव्य रोशनी मन में व्याप्त समस्त नकारात्मक भावों को मिटाकर भयमुक्त जीवन जीना सिखाती है और तभी हमारा लोक सुखी एवं परलोक सुहेला होता है। ब्रह्मज्ञान द्वारा कर्मो के बंधनों से मुक्ति संभव है क्योंकि इससे हमें दातार की रजा में रहना आ जाता है। जीवन का हर पहलू हमारी सोच पर ही आधारित होता है जिससे उस कार्य का होना न होना हमें उदास या चिंतित करता है अत: इसकी मुक्ति भी निरंकार का आसरा लेकर ही संभव है।