दैवीय सम्पत्ति का मालिक बनाएगा भोजन का ये तरीका

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Apr, 2018 12:52 PM

pure diet is also not less than worship

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आहार का सेवन किया जाता है। धार्मिक दृष्टि से आहार शुद्ध और पवित्र होना आवश्यक है।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आहार का सेवन किया जाता है। धार्मिक दृष्टि से आहार शुद्ध और पवित्र होना आवश्यक है। उपनिषदों में कहा गया है कि ‘जैसा अन्न वैसा मन’ अर्थात हम जैसा भोजन करते हैं, उसी के अनुसार हमारा मानसिक विकास होता है।


शुद्ध एवं उचित आहार भगवान की उपासना का एक अंग है। भोजन करते समय किसी भी अपवित्र खाद्य पदार्थ को ग्रहण करना निषिद्ध है। यही कारण है कि भोजन करने से पूर्व भगवान को भोग लगाने का विधान है जिससे कि हम केवल शुद्ध और उचित आहार ही ग्रहण करें। श्रीमद्भगवद् गीता के सत्रहवें अध्याय में भोजन के तीन प्रकारों सात्विक, राजसिक एवं तामसिक का उल्लेख मिलता है। सात्विक आहार शरीर के लिए लाभकारी होते हैं और आयु, गुण, बल, आरोग्य तथा सुख की वृद्धि करते हैं। इस प्रकार के आहार में गौ घृत, गौ दुग्ध, मक्खन, बादाम, काजू, किशमिश आदि मुख्य हैं। राजसिक भोजन कड़वे, खट्टे, नमकीन, गर्म, तीखे व रुखे होते हैं। इसके सेवन से शरीर में दुख, शोक, रोग आदि उत्पन्न होने लगते हैं। इमली अमचूर, नींबू, छाछ, लाल मिर्च, राई जैैसे आहार राजसिक प्रकृति के माने गए हैं। 


तामसिक भोजन किसी भी दृष्टि से शरीर के लिए लाभकारी नहीं होते। बासी, सड़े-गले, दुर्गंध युक्त, जूठे, अपवित्र और त्याज्य आहार तामस भोजन के अंतर्गत माने जाते हैं। मांस, अंडा, मछली, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि आहार तामसिक होते हैं। इनके सेवन से मनुष्य की बुद्धि पर नकारात्मक असर पड़ता है। श्रीमद्भागवद गीता के अनुसार सात्विक भोजन करने वाला दैवी सम्पत्ति का स्वामी होता है जबकि राजसिक और तामसिक भोजन करने वाला आसुरी सम्पत्ति का मालिक होता है।


वास्तु शास्त्र के अनुसार भोजन सदैव पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करते हुए ही करना चाहिए। चूंकि दक्षिण दिशा यम की दिशा होती है इसलिए इस दिशा की ओर मुख करके भोजन करना दोषपूर्ण है, इससे किया गया भोजन तन और मन दोनों को दूषित करता है तथा शक्ति का क्षय करता है। 


अथर्ववेद के अनुसार भोजन हमेशा भगवान को अर्पित करने के बाद ही करना चाहिए। भोजन करने से पूर्व हाथ व पैरों को स्वच्छ जल से अवश्य धो लेना चाहिए। भोजन करते समय मन को प्रसन्न और शांत रखना उचित माना जाता है। भोजन करने के दौरान क्रोध, लोभ, मोह तथा काम का चिंतन करने से किया गया भोजन शरीर को लाभ के बजाय नुक्सान ही पहुंचाता है। भोजन करने से पूर्व गौ ग्रास निकालने, भूखे व्यक्ति के आ जाने पर उसे भोजन कराने, अन्न का दान करने, जीव-जंतुओं को दाना-पानी देने और भोजन के समय भगवान का चिंतन करने एवं उनका नाम जपते हुए संतुष्ट भाव से भोजन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं तथा ग्रह दोषों का शमन होता है।

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