Radha Ashtami 2019: मां के गर्भ से नहीं ऐसे प्रकट हुईं थी राधा रानी

Edited By Lata,Updated: 06 Sep, 2019 09:38 AM

radha rani birth story

आज भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर राधा अष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार इस दिन बहुत से लोग दोपहर 12 बजे तक व्रत करते हैं

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आज भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर राधा अष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार इस दिन बहुत से लोग दोपहर 12 बजे तक व्रत करते हैं तो कई लोग पूरा दिन कृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही व्रत का पालन करते हैं। बता दें कि कृष्ण जी के जन्म के 15 दिनों बाद राधा रानी का जन्म हुआ था। राधा जी के जन्म को लेकर बहुत 2 कथाएं प्रचलित हैं तो आज हम आपको उनके जन्म से जुड़ी कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। 
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धार्मिक कथाओं के अनुसार मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल गांव में वृषभानु एवं कीर्ति की पुत्री के रूप में राधा रानी ने जन्म लिया था। राधा रानी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि राधा जी माता के पेट से पैदा नहीं हुई थी उनकी माता ने अपने गर्भ में को धारण कर रखा था उसने योग माया कि प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया। परन्तु वहां स्वेच्छा से श्री राधा प्रकट हो गई। श्री राधा रानी जी कलिंदजा कूलवर्ती निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतीर्ण हुई उस समय भाद्र पद का महीना था, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल 12 बजे और सोमवार का दिन था। उस समय राधा जी के जन्म पर नदियों का जल पवित्र हो गया सम्पूर्ण दिशाएं प्रसन्न निर्मल हो उठी और इनके जन्म के साथ ही इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा। वृषभानु और कीर्ति ने बड़ा सुंदर उत्सव मनाया और अपनी पुत्री के कल्याण की कामना से आनंददायिनी दो लाख उत्तम गौए ब्राह्मणों को दान में दी।
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बता दें कि राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बडी थीं। लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दुःखी रहते थे।
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कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है। तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है। अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, वे एक टक कृष्ण जी को देखती है, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई। 
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इस तरह सुंदर राधा जी के जन्मोत्सव की कथा है। जो हमारी किशोरी जी के यश का गान किया जाता है उस पर भगवान श्री कृष्ण साक्षात कृपा करते है और जो इनके प्रेम में डूबा रहता है वो सदैव ही निकुंज वास का अधिकारी बन जाता है।

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