जानें, भगवान शिव के गले में पहनी मुण्डों की माला का राज़

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Jun, 2018 11:52 AM

शास्त्रों में देवी सती और भगवान शिव की प्रेम कहानी पूजनीय है। जब अपने पति के मान-सम्मान की रक्षा करते हुए देवी सती ने अपने प्राण त्याग दिए तो भगवान शिव तांडव करने लगे। इस घटनाक्रम के पीछे भगवान शिव की ही लीला थी, वह संसार में शक्तिपीठों को स्थापित...

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शास्त्रों में देवी सती और भगवान शिव की प्रेम कहानी पूजनीय है। जब अपने पति के मान-सम्मान की रक्षा करते हुए देवी सती ने अपने प्राण त्याग दिए तो भगवान शिव तांडव करने लगे। इस घटनाक्रम के पीछे भगवान शिव की ही लीला थी, वह संसार में शक्तिपीठों को स्थापित करना चाहते थे। उन्होंने अपनी प्राणप्रिया को बता रख़ा था कि उन्हें शरीर त्याग करना है। 

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सनातन धर्म में विवाह दो आत्माओं का वह मंगल मिलन है जो जन्म-जन्मान्तरों तक चलता है। चिता की लपटों में पंचीभूत होने के उपरान्त भी विवाह संस्कार के समय बंधी गूढ़ एवं अदृश्य ग्रन्थि सदैव बनी रहती है। देवी सती का दिव्य पति प्रेम आज भी स्त्री जाति के लिए महान आदर्श स्थापित करता है। 

देवर्षि नारद भोले नाथ से मिलने कैलाश पर्वत पर आए और बातों ही बातों में मां पार्वती से पूछा," मां भोले नाथ आपसे निष्कपट प्रेम तो करते हैं न?" 

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मां पार्वती ने उत्तर दिया," हां...हां... वो तो मुझ से बहुत प्रेम करते हैं।"

तब नारद जी तीख़ा प्रहार करते हुए बोले," अगर भोले नाथ आपसे इतना प्रेम करते हैं तो यह बताएं जो भोले नाथ के गले में मुण्डों की माला है, वे किसके मुण्ड हैं?" 

मां पार्वती कुछ समय तो मौन रही, फिर बोली, "देवर्षि न तो मैंने यह बात उनसे कभी पूछी और न ही उन्होंने मुझे बताना अवश्यक समझा।" 

नारद जी व्यंग स्वर में बोले," फिर यह कैसा निष्कपट सहज प्रेम है। जो अपने पति परमेश्वर के रूप का ही आपको ज्ञात नहीं है।" 

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मां इससे पहले कुछ बोल पाती नारद जी हरि नाम का गुनगान करते हुए वहां से चल पड़े। मां के मन में भोले नाथ के प्रति संदेह उत्पन्न हो गया और वह क्रोध में कोपभवन में चली गई। कुछ समय उपरांत भोले नाथ कैलाश लौटे तो मां पार्वती को न पा कर उनके विषय में जानने के लिए गणों से पूछा तो पता चला वह क्रोध में आकर कोपभवन में बैठी हैं।

वह कोपभवन की ओर गए तो मां पार्वती जी की अवस्था देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। बहुत मनुहारि करने पर जब मां पार्वती जी ने रहस्य खोला तो भोले नाथ हंस पड़े और बोले," प्रिय! सबसे पहले यह बताओ कि मेरी अनुपस्थिति में यहां श्री नारद जी तो नहीं आए थे।" 

मां पार्वती बोली," हां... हां... वह तो अभी-अभी यहां से गए हैं।" 

भोले नाथ को समझते देर न लगी की यह सब किया धरा नारद जी का ही है। वह पार्वती जी से बोले," तुम मुण्डों के बारे में जानना चाहती हो न तो सुनों जो मेरे गले में मुण्डों की माला है उसमें से कुछ मुण्ड तो तुम्हारे हैं और कुछ मेरे अन्य प्रेमी भक्तों के हैं। जब-जब तुम्हारा शरीर पात हुआ, तुम से अन्नय प्रेम होने के कारण में तुम्हारे उस मुण्ड को गले में पिरो लेता हूं।" 

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मां पार्वती जी ने गंभीर होकर कहा, मैं तो मरती जन्मती रहती हूं और आप अमर अविनाशी हैं। अगर आप मुझ से इतना प्रेम करते हैं तो मुझे भी अपने समान अमर अविनाथी क्यों नहीं बना लेते। 

भोले नाथ ने पहले तो अपनी अमरता के रहस्य को छिपाना चाहा, फिर सोचा कि अपने प्रिय शिष्य मित्र से भी जब महत्व पुरूष कुछ गोपनिय नहीं रख़ते, यह तो मेरी नित्य प्रेयसी है, ऐसा विचार कर अगले दिन भोले नाथ मां पार्वती को लेकर अमरनाथ तीर्थ पर चले गए और वहां जाकर उन्हें अमर कथा का रसपान करवाया। जिससे वह भी अमरता प्राप्त कर सकें।

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ऐसे होंठ वाले होतें हैं CHARACTERLESS (देखें Video)
 

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