Kundli Tv- आखिर क्यों कर्ण को श्रीकृष्ण ने सुनाई अपनी जीवनगाथा?

Edited By Jyoti,Updated: 15 Sep, 2018 10:40 AM

religious story of sri krishna and karna

जब भी महाभारत की गाथा को याद किया जाता है तो कुछ एेसे नाम ज़हन में आते हैं, जैसे कर्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर, दुर्योधन आदि। ये कुछ पात्र एेसे हैं जो उस समय के साथ-साथ आज के समय में भी विशेष चर्चा का विषेय बने हुए हैं।

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जब भी महाभारत की गाथा को याद किया जाता है तो कुछ एेसे नाम ज़हन में आते हैं, जैसे कर्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर, दुर्योधन आदि। ये कुछ पात्र एेसे हैं जो उस समय के साथ-साथ आज के समय में भी विशेष चर्चा का विषेय बने हुए हैं। तो आइए आज हम आपको महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक दानवीर कर्ण से संबंधित एक पौराणिक कथा बताते हैं। इस कथा के द्वारा हम आपको भगवान श्रीकृष्ण और कर्ण के बीच का संवाद बताने जा रहे हैं। 
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पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद दानवीर कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछा मेरी मां ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ? दोर्णाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय नही मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था?

परशुराम जी ने मुझे शिक्षा दी साथ ये शाप भी दिया कि मैं अपनी विद्या भूल जाऊंगा क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय समझते थे। गलती से एक गौ मेरे तीर के रास्ते में आकर मर गई और मुझे गौ वध का शाप मिला? द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया, क्योंकि मुझे किसी राजघराने का उच्च व्यक्ति नही समझा गया। यहां तक कि मेरी मा कुंती ने भी मुझे अपना पुत्र होने का सच तब स्वीकारा जब उनके बाकि के पुत्रों की जान पर बन आई। मुझे जो कुछ मिला दुर्योधन की दया स्वरूप मिला! तो क्या फिर भी ये गलत है कि मैं दुर्योधन के प्रति अपनी वफादारी रखता हूं??
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कर्ण की ये सब बातें सुनकर श्री कृष्ण ने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा, हे कर्ण! मेरा जन्म जेल में हुआ था। मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ उसी रात मुझे मेरे माता-पिता से अलग होना पड़ा। तुम्हारा बचपन रथों की धमक, घोड़ों की हिनहिनाहट और तीर कमानों के साये में गुज़रा और मैने अपने बचपन में गायों को चराया और उनका गोबर उठाया। जब मैं ठीक से चल भी नही सकता था तब से मेरे ऊपर जानलेवा हमले होने शुरू हुए। कोई सेना नही, कोई शिक्षा नही, कोई गुरुकुल नही, कोई महल नही, मेरे खुद के मामा ने ही मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा।
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जब तुम सब अपनी वीरता के लिए अपने गुरु व समाज से प्रशंसा पाते थे उस समय मेरे पास शिक्षा भी नही थी। बड़े होने पर मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला। तुम्हे अपनी पसंद की लड़की से विवाह का अवसर मिला मुझे तो वो भी नही मिली जो मेरी आत्मा में बसती थी।
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मुझे बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था। जरासंध के प्रकोप के कारण मुझे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त मे समुद्र के किनारे बसना पड़ा। दुनिया ने मुझे कायर कहा। अगरदुर्योधन युद्ध जीत जाता तो विजय का श्रेय तुम्हें भी मिलता, लेकिन धर्मराज के युद्ध जीतने का श्रेय अर्जुन को मिला! मुझे कौरवों ने अपनी हार का उत्तरदायी समझा।
PunjabKesariहे कर्ण! किसी का भी जीवन चुनोतियों से रहित नही है। सबके जीवन मे सब कुछ ठीक नही होता। कुछ कमियां अगर दुर्योधन में थी तो कुछ युधिष्टर में भी थीं। सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ से स्वयं निर्धारित करते हैं!

इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है, इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारा अपमान होता है, इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है। फ़र्क़ सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार करते हैं!!
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