Skanda Purana: भगवान शिव के मुख से जानें, श्रावण मास में क्या करना चाहिए !

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Jul, 2024 10:56 AM

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कलयुग में पंच देवों को प्रमुखत: पूजा जाता है। मध्यकाल में तथा भारत के इतिहास के प्राचीनकाल में शैव, शाक्त, वैष्णव, गोरखपंथी, दादुपंथी, कबीरपंथी आदि नानाविध मत मतान्तर थे।

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Skanda Purana: कलयुग में पंच देवों को प्रमुखत: पूजा जाता है। मध्यकाल में तथा भारत के इतिहास के प्राचीनकाल में शैव, शाक्त, वैष्णव, गोरखपंथी, दादुपंथी, कबीरपंथी आदि नानाविध मत मतान्तर थे। कालान्तर में विभेद की खाई अनुयायियों ने स्वयं ही पाट दी। आज बहुदेववादी व्यवस्था भारत में सनातन मत में सर्वमान्य है। शैव परम्परा के अनुयायियों के लिए पूर्व में श्रावण का महीना अति महत्वपूर्ण होता था। आज सभी मतानुयायी भगवान शिव की आराधना करते हैं। भगवान शिव की आधरना का एक खास महीना है श्रावण का महीना। यह वह महीना है जिसमें प्रत्येक दिन की उपासना व व्रत विधान भगवान को प्रसन्न करता है। 

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श्रावण मास में स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव के लिंगों का करोड़ अथवा लाख अथवा हजारों की संख्या में निर्माण करवाना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। हालांकि उक्त संख्या में निर्माण बहुत कठिन है मगर विकल्प के तौर पर भक्तों द्वारा सामूहिक प्रयासों से कम से कम सौ लघु से लेकर मध्यम अथवा वृहद आकार के शिवलिंग तैयार करवा करके उनका धूमधाम से पूजन करना चाहिए, मास पर्यन्त। अंतिम दिन यज्ञ अथवा हवन का आयोजन कर ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। 

स्कंद पुराण में भगवान शिव ने सनत कुमार से संवाद करते हुए यह बतलाया कि अगर कोई भक्त जीवन में एक बार एक शिव मंदिर का निर्माण करवा के उसे पूजन आदि के लिए जन सामान्य को समर्पित कर देता है तो वह अत्यंत पुण्य फल का भागी बन जाने सहित अकाल मृत्यु के खतरे से बच जाता है। श्रावण मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है। इस कारण से इसे श्रावण मास कहा जाता है। उपासक को महीने भर की घोर तपस्या से सिद्धि प्राप्त हो जाती है इसलिए यह श्रावण संज्ञा वाला है। इसका एक नाम नभा भी है। 

स्कन्द पुराण में उल्लेखित भगवान शिव सनत कुमार संवाद में भगवान शिव श्रावण मास की महिमा समझाते हुए सनत् कुमार को यह बतलाते हैं कि श्रावण मास में भक्त को नियमपूर्वक व्रत कर पूरे महीने रुद्राभिषेक करना चाहिए। भक्त को अपनी प्रिय वस्तु का परित्याग कर देना चाहिए। पुष्पों, फलों, धान्यों, तुलसी की मंजरी तथा तुलसी दलों सहित बिल्व पत्रों से मेरी पूजा करनी चाहिए।

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भगवान शिव ने सनत कुमार को आगे यह बताया कि मेरे लिए अत्यंत प्रिय पंचामृतभिषेक करना चाहिए। भक्त भूमि पर सोए, ब्रह्मचारी रहे, सत्यवचन बोले, पूरे महीने व्रत करें। फलाहार अथवा हविष्यान्न ग्रहण करे, पत्ते पर भोजन करे, शाक का पूर्ण रूप से परित्याग कर दे, प्रात:काल स्नान करें, एकाग्रचित होकर तथा जितेन्द्रिय रहकर मेरी (शिव की) पूजा करे। मेरे षडक्षर मंत्र का जाप करें (ॐ नम: शिवाय) पुरुषसूक्त का पाठ करें, गृह यज्ञ अथवा होम करें। प्रतिदिन अन्य उपादानों सहित मेरे लिंग पर दूर्वादल भी चढ़ाए। श्रावण के प्रथम सोमवार से साढ़े तीन महीने तक ‘रोटक’ नामक व्रत करें, कुशों से वृषभ का पूजन करें, नागों का पूजन करें, उन्हें दूध पिलाएं, मौन व्रत धारण रखें, इस मास में स्फटिक, पाषाण, मूर्त का मरकतमणि, पिष्ट चंदन, नवनीत, बर्फ से मेरे (शिव) शिवलिंग का निर्माण कर पूजन करें। समिधा, चरु, तिल, धृत से मेरा (शिव) होम करे। धूप, गंध, पुष्प, नैवेद्य से मेरा पूजन करें तथा सहस्त्र नाम का पाठ करें। सहस्त्र नाम का पाठ करते समय मालती, मल्लिका, श्वेत पुष्पों को अर्पित करें। सोमवार मुझे अत्यंत प्रिय है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम सोमवार का व्रत किया था।
  
रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रु गिरने से हुई थी इसलिए रुद्राक्ष भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। रुद्राक्ष कई मुखों वाले होते हैं। स्वरुचि के अनुसार 108 मनकों की माला गले में शिव को प्रसन्न करने के लिए धारण करें। सनत् कुमार को भगवान शिव ने रुद्राक्ष इस प्रकार से धारण करने की प्रक्रिया बताई थी। यह स्कंद पुराण में वर्णित है। कंठ में 32 रुद्राक्ष, सिर में 22, दोनों कानों में 12, दोनों हाथों में 24, दोनों भुजाओं में 8-8 ललाट पर 1, शिखा के अग्र भाग में 1 रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। उक्त प्रक्रिया केवल उपासना करते समय अपनानी है। वैसे सामान्य काल में 108 मनकों वाली माला धारण कर सकते हैं। 
 
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श्रावण मास में भगवान शिव के उवाच के अनुसार उनकी पूजा के अलावा औदुम्बर व्रत, सुवर्ण गौरी व्रत, दूर्वागणपति व्रत, नाग व्रत, सूपौदन व्रत, शीतला सप्तमी व्रत, पवित्रारोपण व्रत, आशाव्रत, श्री हरि की पूजा, कामदेव की पूजा, संकटनाशन व्रत, पोला नामक वृषव्रत आदि करने से भी भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।  

श्रावण मास में शिवलिंग के पूजन हेतु कांवड़ लेने भक्तजन अपने आसपास की नदियों, तालाब आदि पर पैदल यात्रा करके वहां से जल भर कर लाते हैं तथा शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। यह एक उच्चकोटि की धार्मिक परम्परा है। 

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पारद शिवलिंग का अलग ही वजूद है क्योंकि पारे जैसी धातु को बांधना अत्यंत कठिन है। पारा स्वभाव से ही चंचल होता है। भारत देश में कई स्थानों पर पारद शिवलिंग हैं। पारद शिवलिंग का पूजन सामान्य से हजार गुना फल प्राप्त करने जैसा होता है। इसी प्रकार से स्फटिक तथा कुछ विशिष्ट प्रकार के धातुओं के शिवलिंग दुर्लभ होते हैं जो सनातन धर्म की धरोहर हैं। श्रावण के महीने में कुंवारी कन्याएं, शादीशुदा महिलाएं, अविवाहित-विवाहित पुरुष सभी यथा शक्ति पूजन करते हैं। भारत में विशिष्ट ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग महत्व है। ये विशिष्ट शिवलिंग बारह माने गए हैं। इनमें से मात्र एक नेपाल में स्थित है। बाकी ग्यारह शिवलिंग भारत के विभिन्न प्रांतों में अवस्थित हैं। 

वैद्यनाथ नाम के दो शिवलिंग हैं और स्थानीय निवासी उन्हें ज्योतिर्लिंग बताते हैं जो भी हो विशिष्ट हो अथवा सामान्य, भक्तों के भाव की प्रवणता उसको विशिष्ट बना देती है। पूर्व में उल्लेखित विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के अलावा दूध, घी, इमरती जैसी अनेक वस्तुएं भी शिवलिंग पर अर्पित की जाती हैं। 
 

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