Srimad Bhagavad Gita: इंद्रिय वस्तुओं की लालसा को छोड़ना

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Dec, 2022 06:58 AM

srimad bhagavad gita

श्री कृष्ण कहते हैं कि ‘इन्द्रियों के द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले व्यक्ति से इन्द्रिय वस्तुएं दूर हो जाती हैं, लेकिन रस (लालसा) नहीं और लालसा तभी समाप्त होती है जब व्यक्ति सर्वोच्च को प्राप्त करता है।

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Srimad Bhagavad Gita: श्री कृष्ण कहते हैं कि ‘इन्द्रियों के द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले व्यक्ति से इन्द्रिय वस्तुएं दूर हो जाती हैं, लेकिन रस (लालसा) नहीं और लालसा तभी समाप्त होती है जब व्यक्ति सर्वोच्च को प्राप्त करता है।’ इंद्रियों के पास एक भौतिक यंत्र और एक नियंत्रक है। मन सभी इंद्रियों के नियंत्रकों का एक संयोजन है। श्री कृष्ण हमें उस नियंत्रक पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह देते हैं जो लालसा को बनाए रखता है।

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श्री कृष्ण ‘रस’ शब्द का प्रयोग करते हैं। जब पके हुए फल को काटा जाता है, तब तक रस दिखाई नहीं देता, जब तक उसे निचोड़ा न जाए। दूध में मक्खन के साथ भी ऐसा ही है। इसी तरह ‘रस’ इंद्रियों में मौजूद आंतरिक लालसा है। अज्ञान के स्तर पर, इन्द्रियां इन्द्रिय विषयों से जुड़ी तथा दुख और सुख के ध्रुवों के बीच झूलती रहती हैं। अगले चरण में, बाहरी परिस्थितियों, जैसे पैसे की कमी या डाक्टर की सलाह के कारण मिठाई जैसी इंद्रिय वस्तुएं छोड़ दी जाती हैं लेकिन मिठाई की लालसा बनी रहती है। बाहरी परिस्थितियों में नैतिकता, ईश्वर का भय या कानून का डर या प्रतिष्ठा का ख्याल, बुढ़ापा आदि शामिल हो सकते हैं। श्री कृष्ण अंतिम चरण के बारे में संकेत दे रहे हैं, जहां लालसा पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है।

श्रीमद्भागवतम (11:20:21) में श्री कृष्ण एक व्यावहारिक सलाह देते हैं, जहां वह इंद्रियों की तुलना जंगली घोड़ों से करते हैं, जिन्हें एक प्रशिक्षक द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो उनके साथ कुछ समय के लिए दौड़ता है।

जब प्रशिक्षक घोड़ों को पूरी तरह समझ लेता है, तो उसके बाद वह अपनी इच्छा के अनुसार उनकी  सवारी करने लगता है। यहां ध्यान देने योग्य दो मुद्दे हैं कि प्रशिक्षक एक बार में घोड़ों को नियंत्रित नहीं कर सकता क्योंकि वे उस पर हावी हो जाएंगे। इसी तरह, हम इंद्रियों को एकदम नियंत्रित करना शुरू नहीं कर सकते, हमें कुछ समय के लिए उनके व्यवहार के अनुसार चलने की जरूरत है, जब तक कि हम उन्हें समझ नहीं लेते और धीरे-धीरे उन्हें नियंत्रण में नहीं लाते।

दूसरे, जब हम इंद्रियों के प्रभाव में हैं तो उस समय भी जागरूकता से रहना है कि हमें इन्द्रियों को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। जागरूकता और लालसा एक साथ मौजूद नहीं हो सकतीं। जागरूकता में हम लालसाओं की चपेट में नहीं आ सकते क्योंकि ऐसा अज्ञानता में ही होता है।

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