Edited By Prachi Sharma,Updated: 08 Jun, 2025 07:01 AM

अनुवाद एवं तात्पर्य : अर्जुन ने कहा : हे भगवान! हे पुरुषोत्तम! ब्रह्म क्या है? आत्मा क्या है? सकाम कर्म क्या है? यह भौतिक जगत क्या है? तथा देवता क्या है? कृपा करके यह सब मुझे बताइए।
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अर्जुन उवाच
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते॥8.1॥
अनुवाद एवं तात्पर्य : अर्जुन ने कहा : हे भगवान! हे पुरुषोत्तम! ब्रह्म क्या है? आत्मा क्या है? सकाम कर्म क्या है? यह भौतिक जगत क्या है? तथा देवता क्या है? कृपा करके यह सब मुझे बताइए।

इस अध्याय में भगवान कृष्ण अर्जुन के द्वारा पूछे गए, ‘‘ब्रह्म क्या है ?’’ आदि प्रश्नों का उत्तर देते हैं।
भगवान कर्म, भक्ति तथा योग और शुद्ध रूप भक्ति की भी व्याख्या करते हैं। श्रीमद् भागवत में कहा गया है कि परम सत्य ब्रह्म, परमात्मा तथा भगवान के नाम से जाना जाता है। साथ ही जीवात्मा या जीव को ब्रह्म भी कहते हैं। अर्जुन आत्मा के विषय में भी पूछता है, जिससे शरीर, आत्मा तथा मन का बोध होता है। वैदिक कोष (निरुक्त) के अनुसार आत्मा का अर्थ मन, आत्मा, शरीर तथा इंद्रियां भी होता है।

अर्जुन ने परमेश्वर को पुरुषोत्तम या परम पुरुष कह कर संबोधित किया है, जिसका अर्थ यह होता है कि वह ये सारे प्रश्न अपने एक मित्र से नहीं, अपितु परम पुरुष से उन्हें परम प्रमाण मानकर पूछ रहा था, जो निश्चित उत्तर दे सकते थे।
