Updated: 13 Jun, 2025 05:12 PM

यहां पढ़ें कैसी है सीरीज
सीरीज: इन ट्रांजिट (In Transit)
डायरेक्टर : आयशा सूद (Ayesha Sood)
स्टारकास्ट: सहर नाज (Sahar Naaz),अनुभूति बनर्जी (Anubhuti Banerjee),पटरुनी चिदानंद शास्त्री (Patruni Chidanand Shastri),रुमि हरीश (Rumi Harish)
ओटीटी प्लेटफार्म: प्राइम वीडियो (prime vedio)
रेटिंग: 3*
In Transit: इन ट्रांजिट एक संवेदनशील और प्रभावशाली डॉक्यूमेंट्री सीरीज है जो भारत के विभिन्न हिस्सों से नौ ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों की ज़िंदगियों को सामने लाती है। यह सीरीज सिर्फ उनकी लैंगिक पहचान की बात नहीं करती, बल्कि उनके अंदरूनी संघर्षों, सामाजिक अस्वीकृति, आत्म-स्वीकृति और जीवन के प्रति उनके नजरिए को गहराई से उकेरती है। मुंबई, बेंगलुरु, त्रिपुरा, फरीदाबाद से लेकर जमशेदपुर जैसे भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से आए ये किरदार न केवल विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि यह दिखाते हैं कि ट्रांस और नॉन-बाइनरी पहचान कोई शहरी अवधारणा नहीं, बल्कि पूरे भारत में गहराई से मौजूद हकीकत है।
कहानी
पहले एपिसोड में ही दर्शकों को इन सभी नौ लोगों से परिचय मिलता है। उनकी आवाज़ों में आत्मकथा है और उनकी आंखों में संघर्ष की झलक। डॉक्यूमेंट्री जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, हम उनके मानसिक और शारीरिक रूपांतरण की यात्रा में धीरे-धीरे उतरते हैं।
अनुभूति बनर्जी जैसे पात्र, जिन्हें उनके माता-पिता का पूरा समर्थन मिला और जो अब कॉर्पोरेट दुनिया में एक सीनियर पोजिशन पर हैं, समाज में ट्रांसजेंडर लोगों की सफलता की मिसाल हैं।
वहीं, टीना नाज की कहानी गरीबी, सामाजिक अस्वीकार और ग्रामीण परिवेश की जद्दोजहद को उजागर करती है।
आर्यन सोमैया अपने परिवार में झेली गई वर्षों की भावनात्मक हिंसा और खुद को स्वीकारने की जटिलता को साझा करते हैं। एक मार्मिक पल जब वे बताते हैं कि दो दशकों तक उन्होंने अपनी छाती को छूने से भी इनकार किया था।
माधुरी सरोदे शर्मा, जो अपने लंबे समय के पार्टनर से शादी करने वाली पहली ट्रांस महिला हैं, एक ऐतिहासिक और दिल छू लेने वाला उदाहरण पेश करती हैं।
हर एक कहानी में दर्द, स्वीकार्यता की प्यास, और अपने जैसे ही जीने की जिद दिखाई देती है। इनकी जिंदगी, भावनाओं और आत्म-संघर्ष को जिस तरह से कैमरे ने कैद किया है, वह बेहद ईमानदार और निजी अनुभव सा लगता है।

निर्देशन
आयशा सूद ने इन ट्रांजिट’ का निर्देशन गहराई से किया गया है। इसके पीछे की टीम ने न सिर्फ पात्रों की कहानियों को संवेदनशीलता और ईमानदारी से पेश किया है, बल्कि इसे देश के भूगोल, संस्कृति और सामाजिक विविधता के साथ बुनने में भी सफल रही है। कैमरा नाटकीयता से दूर रहकर वास्तविकता की नब्ज पकड़ता है।सीरीज में जिस तरह से ट्रांस और नॉन-बाइनरी लोगों के अनुभवों को दिखाया गया है, वह न तो ज़रूरत से ज्यादा भावनात्मक है और न ही अत्यधिक राजनीतिक बल्कि बहुत मानवीय है।