Edited By rajesh kumar,Updated: 10 Jul, 2021 09:01 PM
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को 17वीं शताब्दी की महारानी संत केतेवन के पवित्र अवशेष एक समारोह में औपचारिक तौर पर जॉर्जिया को सौंपे और कहा कि ऐसी ऐतिहासिक वस्तुएं दोनों देशों के बीच “भरोसे का पुल” हैं। करीब 16 साल पहले यह अवशेष गोवा में मिले थे।
इंटरनेशनल डेस्क- विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को 17वीं शताब्दी की महारानी संत केतेवन के पवित्र अवशेष एक समारोह में औपचारिक तौर पर जॉर्जिया को सौंपे और कहा कि ऐसी ऐतिहासिक वस्तुएं दोनों देशों के बीच “भरोसे का पुल” हैं। करीब 16 साल पहले यह अवशेष गोवा में मिले थे। वह पूर्वी यूरोप और पश्चिम एशिया के बीच स्थित रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश जॉर्जिया के दो दिवसीय दौरे पर हैं।
मेरे पहले दौरे का मकसद इतना पवित्र- जयशंकर
जयशंकर ने सामेबा होली ट्रिनिटी कैथेड्रल में एक समारोह में कहा, “आज एक विशेष दिन है, न सिर्फ जॉर्जिया बल्कि भारत के लिये भी। मुझे संत क्वीन केतेवन के पवित्र अवशेष जॉर्जिया के लोगों को सौंपने का सम्मान मिला है।” उन्होंने कहा, “मैं अपने आपको खुशनसीब मानता हूं कि जॉर्जिया के मेरे पहले दौरे का मकसद इतना पवित्र है।”
महारानी केतेवन 17वीं शताब्दी की जॉर्जियाई महारानी थीं
जयशंकर ने संत महारानी केतेवन के अवशेष तबिलिसी में कैथोलिकोस-पैट्रियार्क ऑफ ऑल जॉर्जियन बिएटीट्यूड इलिया द्वितीय और प्रधानमंत्री इराकली गरिब्श्विली की उपस्थिति में सरकार और जॉर्जिया के लोगों को सौंपे। संत महारानी केतेवन 17वीं शताब्दी की जॉर्जियाई महारानी थीं। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि मध्यकालीन पूर्तगाली दस्तावेजों के आधार पर 2005 में पुराने गोवा के संत आगस्टीन कॉन्वेंट से उनके अवशेष मिले थे।
दोनों देशों के बीच आस्था का पुल
जयशंकर ने कहा, “भारत और जॉर्जिया में कुछ अवशेषों की मौजूदगी हमारे दोनों देशों के बीच आस्था का पुल है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में, हमारे दोनों देशों के नागरिक आध्यात्मिकता और मित्रता के उस पुल को पार करेंगे।” माना जाता है कि यह अवशेष 1627 में गोवा लाए गए होंगे और संत आगस्टीन परिसर में रखे गए होंगे।
उपरोक्त उल्लेखित लोगों ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की पहल पर सीएसआईआर-कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र, हैदराबाद ने डीएनए विश्लेषण किया और इसकी प्रमाणिकता की पुष्टि की। जॉजियाई सरकार के अनुरोध पर भारत ने 2017 में इन अवशेषों को छह महीने के लिये प्रदर्शनी के वास्ते जॉर्जिया भेजा था।