दिल्ली: एक धमाका हुआ चारों और मच गई चीख पुकार, देखें दर्दनाक तस्वीरें

Edited By Anil dev,Updated: 05 Jan, 2019 09:49 AM

factory blast municipal corporation

मोती नगर के सुदर्शन पार्क क्षेत्र में चल रही अवैध फैक्ट्री के ब्लास्ट मामले में दक्षिणी नगर निगम की ओर से घोर लापरवाही सामने आई है। निगम अधिकारियों की मिलीभगत के कारण ही यह जानलेवा हादसा हुआ है।

नई दिल्ली(नवोदय टाइम्स): मोती नगर के सुदर्शन पार्क क्षेत्र में चल रही अवैध फैक्ट्री के ब्लास्ट मामले में दक्षिणी नगर निगम की ओर से घोर लापरवाही सामने आई है। निगम अधिकारियों की मिलीभगत के कारण ही यह जानलेवा हादसा हुआ है। क्योंकि निगम अधिकारी ने अपने यहां सीलिंग की कार्रवाई में सिर्फ हादसे वाली इमारत के पास बने शौचालय को ही सील किया था, जबकि डीएसआईडीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इस पूरी इमारत पर अवैध फैक्ट्री के आरोप में कार्रवाई की जानी थी, जो नहीं की गई। आखिर ऐसी क्या वजह थी जो डीएसआईडीसी से रिपोर्ट के बाद भी निगम अधिकारियों ने इस फैक्ट्री को बंद नहीं करवाया। ये बात काबिलेजिक्र है कि डीएसआईडीसी ने दक्षिणी नगर निगम को करीब 10 हजार फैक्ट्रियों की सूची भेजी थी, जो रिहायशी इलाके में संचालित की जा रही है। 

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सीलिंग के नाम पर 160 ही फैक्ट्रियों पर कार्रवाई की, जबकि अन्य का कुछ पता नहीं है। हालांकि निगम अधिकारियों का कहना है कि अभी सूची के हिसाब से फैक्ट्रियों को चिन्हित किया जा रहा है।  नोटिस भेजने के बाद भी चल रही थी फैक्ट्री: दक्षिणी निगम की ओर से फैक्ट्री को खाली करने के लिए 21 दिसम्बर 2018 को नोटिस जारी किया गया था, बावजूद उसके फैक्ट्री को सील नहीं किया गया था। निगम के नोटिस के बावजूद फैक्ट्री मालिक धड़ल्ले से फैक्ट्री चला रहा था। नोटिस मिलने के बावजूद फैक्ट्री को खाली करने की दिशा में फैक्ट्री मालिक और नगर निगम की ओर से कोई प्रयास नहीं किया गया। अभी भी हजारों फैक्ट्रियां अकेले दक्षिणी निगम के क्षेत्र में चल रही हैं। डीएसआईडीसी की सूची के मुताबिक मौजूदा हालात में दक्षिणी नगर निगम के वेस्ट जोन में 6527, नजफगढ़ जोन में 828, सेंट्रल जोन में 1868 और साउथ जोन में 800 फैक्ट्रियां रिहायशी इलाके में संचालित की जा रही हैं।

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न लाइसेंस न एनओसी, रामभरोसे फैक्ट्री
मोती नगर में जिस फैक्ट्री में हादसा हुआ है, उस फैक्ट्री के पास न तो निगम की ओर से दिया जाने वाला लाइसेंस था और न ही फायर विभाग की ओर से दी जाने वाली एनओसी थी। रिहायशी इलाके में चल रही इस फैक्ट्री में सुरक्षा के लिए अपनाए जाने वाले मानदंडों की धज्जियां उड़ाई जा रही थी। फैक्ट्री में कोई आपातकालीन द्वार नहीं था। जहां मजदूर काम कर रहे थे, वहां फायर एक्स्टिंग्यूशर या रेत की व्यवस्था नहीं की गई थी। 

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आग ताप रहे लोगों पर गिरी दीवार
फैक्ट्री में विस्फोट के बाद कबाड़ गोदाम की दीवार के नीचे दबकर घायल हो गए राकेश ने बताया कि दीवार के मलबा सीधे आग ताप रहे उसके चाचा मुंगेर, रामफल और उसके ऊपर गिरी थी। राकेश ने उस हादसे के बारे में बताया कि मलबे में दोनों जोकि सोने की तैयारी कर रहे थे उसके नीचे पूरी तरह से दब गए, वहीं वह गर्दन तक मलबे के नीचे दब गया था। इस दौरान वह अपने चारो ओर लोहे का गार्डर और सीमेंट के टुकड़े गिरते हुए देख रहा था। मानो हर ओर मौत के सामान गिर रहे हों और वह लाचार हो बस जीवन की दुआ मांग रहा था। गनीमत रही की कोई गार्डर या सीमेंट का बड़ा टुकड़ा उसके सिर पर नहीं गिरा। मौके पर पहुंचे रेस्क्यू टीम ने उसे बाहर निकाला। जब मलबा हटाया गया तो उसका चाचा मुंगेर उस स्थिति में मृत मिले, जिस स्थिति में वह हादसे से पहले बैठे हुए था। 

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10 सालों से चल रही थी फैक्ट्री
प्राथमिक जांच में पता चला है कि यह फैक्ट्री करीब पिछले 10 सालों से उक्त दो मंजिला मकान में चल रही थी। फैक्ट्री चलाने वाले रोहतक निवासी अंकित और उसका चचेरा भाई सुमित गुप्ता ने मकान के मालिक अनिल कुमार त्यागी से किराये पर ले रखा था। इसमें सुबह 9:30 बजे से शाम को 6 बजे तक शिफ्ट चलता था। 6 बजे के बाद चार घंटे का ओवरटाइम होता था, जिसके लिए काम करने वालों को वेतन के अनुसार रुपए ओवर टाइम के रुपए मिलते थे। वीरवार को भी शाम 6 बजे फैक्ट्री में काम करने वाले करीब 22 मजदूर और फैक्ट्री मालिक सुमित अपने घर चले गए थे। वहीं, दूसरा मालिक अंकित गुप्ता और 8 अन्य मजदूर ओवर टाइम करने के लिए रुक गए। इसी दौरान रात करीब 8:40 बजे अचानक यह हादसा हो गया। 

घायल होने के बाद भी सर्वेश ने बचार्ईं 4 जान
बिहार का रहने वाला सर्वेश भी फैक्टरी में काम करता था। वह अशोक विहार इलाके में किराये के मकान पर रहता है। तीन महीने से वह फैक्टरी में नौकरी करता रहा है। सर्वेश ने बताया कि हादसे के वक्त आठ बजकर 35 मिनट पर ओवरटाइम खत्म किया था। उसने पैंट पहनने के बाद शर्ट के दो बटन लगाए थे। तीसरा बटन लगा ही रहा था। एकाएक धमाका हुआ। उसे नहीं पता कि धमाका कैसे हुआ था। जब उसको थोड़ा होश आया। वह दीवार तोड़कर कबाड़ के गोदाम में पड़ा था। उस पर कुछ मलबा पड़ा था। उसके शरीर में काफी ज्यादा चोट लगी हुई थी। उसके सामने ही चार पांच साथी घायल हालत में पड़े थे। उसने अपनी चोट को नहीं देखकर अपने चार साथियों को अन्य लोगों की सहायता से बाहर निकाला। बाद में उसको भी बेहोशी आने लगी थी। जिसके बाद जब उसको होश आया। वह अस्पताल में भर्ती था। 

फैक्ट्री में घरेलू सिलेंडरों का इस्तेमाल 
फैक्ट्री में काम करने वाले आशोक की मानें तो वारदात से पहले बाउंड रॉड बनाने के लिए मशीन चलाई जाती है। मशीन चलाने के लिए एलपीजी सिलेंडर का इस्तेमाल किया जाता था। वारदात से पहले गैस खत्म होने वाली थी। ऐसे में अंकित ने अशोक को सिलेंडर लाने के लिए फैक्ट्री के बाहर बनी चाय की दुकान पर भेजा था। लेकिन अशोक सीढिय़ों पर था। उससे पहले ही हादसा हो गया और वहीं सीढिय़ों पर ही फंसकर मलबे में दब गया।  
 

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