Edited By Seema Sharma,Updated: 07 Jan, 2020 01:01 PM
सियाचीन में वर्ष 1984 में ‘ऑपरेशन मेघदूत'' की अगुवाई करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) प्रेम नाथ हून का मंगलवार को निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे। प्रधानमंत्री मोदी ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल पी एन हून...
नई दिल्ली: सियाचीन में वर्ष 1984 में ‘ऑपरेशन मेघदूत' की अगुवाई करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) प्रेम नाथ हून का मंगलवार को निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे। प्रधानमंत्री मोदी ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल पी एन हून (सेवानिवृत) ने देश को मजबूत एवं सुरक्षित बनाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। मोदी ने ट्वीट किया कि लेफ्टिनेंट जनरल पी एन हून (सेवानिवृत) के निधन से काफी दुखी हूं। उन्होंने पूरे समर्पण के साथ भारत की सेवा की और हमारे देश को मजबूत एवं अधिक सुरक्षित बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार एवं मित्रों के साथ है।
ऑपरेशन मेघदूत में भूमिका अहम
लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) हून के नेतृत्व में ही भारत ने दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में हुई पहली लड़ाई में जीत हासिल की थी। पाकिस्तान के कब्जे से कूटनीतिक रूप से बेहद अहम सियाचिन और उसके आसपास के सभी ग्लेशियर्स को निकालकर उन पर तिरंगा लहराया था। ऑपरेशन मेघदूत में उनकी भूमिका के लिए उनको परम विशिष्ट सेवा मेडल से नवाजा गया था। क्या है ऑपरेशन मेघदूत? सियाचिन पर कब्जे के लिए पाकिस्तान ने अपने सैनिकों की एक टुकड़ी को तैयार किया और बर्फ में इस्तेमाल होने वाले साजो-सामान के लिए लंदन स्थित एक फर्म से संपर्क किया। इसे पाकिस्तान का दुर्भाग्य ही कहे कि जिस फर्म से उसने संपर्क किया था, वही फर्म भारत को यही साजो-सामान मुहैया कराती थी। ऐसे में भारत को पाकिस्तान की साजिश की खबर लग गई।
भारतीय सेना ने लेफ्टिनेंट जनरल पीएन हून के नेतृत्व में 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया। भारत ने 13 अप्रैल की तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि इस दिन वैसाखी थी और पाकिस्तानी सेना यह मानकर बैठी थी कि इस दिन भारत में लोग त्योहार में व्यस्त होंगे लेकिन हून ने पड़ोसी मुल्क वो धूल चटाई कि आजतक वो ऑपरेशन मेघदूत नहीं भूल पाया। ऑपरेशन मेघदूत को काफी मुश्किल था क्योंकि भारत की तरफ से सियाचिन की खड़ी चढ़ाई थी। भारतीय सैनिकों ने माइनस 40 से माइनस 60 डिग्री के तापमान में सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र में हुई पहली जंग में जीत हासिल की थी। पाकिस्तान की भारत के हाथों यह सबसे शर्मनाक हारों में से एक है।