Edited By Yaspal,Updated: 10 Jan, 2022 11:20 PM
सुप्रीम कोर्ट ने एक दलित व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या करने के मामले में दो आरोपियों को मिली जमानत रद्द कर दी तथा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील दायर नहीं करने पर सोमवार को गुजरात सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि वह पीड़ति के अधिकारों की रक्षा करने...
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने एक दलित व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या करने के मामले में दो आरोपियों को मिली जमानत रद्द कर दी तथा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील दायर नहीं करने पर सोमवार को गुजरात सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि वह पीड़ति के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रही।
न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने 2018 में गुजरात के राजकोट में चोरी के संदेह में एक दलित व्यक्ति को पीट-पीटकर हत्या के मामले में दो आरोपियों की जमानत रद्द कर दी तथा उन्हें एक सप्ताह के भीतर संबंधित जेल प्राधिकरण के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय ने दोनों आरोपियों की रिहाई के आदेश में ‘गंभीर गलती' की है।
पीठ ने अपने फैसले में उच्च अदालत की ओर से आरोपियों को जमानत देने के खिलाफ अपील दायर नहीं करने पर गुजरात सरकार को फटकार लगाई और कहा, राज्य इतने गंभीर मामले में पीड़ति के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहा है। शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने कहा, 'व्यापक अर्थ में देखा जाए तो आपराधिक मामलों में जिसे पीड़ति पक्ष के रूप में माना जाता है, वह है ‘राज्य'। राज्य यहां समुदाय के सामाजिक हितों का संरक्षक है। इसलिए राज्य के खिलाफ कारर्वाई करने वाले व्यक्ति को कानून के कटघरे में लाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाना उसकी जिम्मेवारी है।'
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, 'उच्च न्यायालय ने अपराधों की गंभीरता के साथ-साथ सीसीटीवी और मोबाइल फुटेज, परीक्षण पहचान परेड और उनके गवाहों के बयान सहित एकत्र किए गए सबूतों पर विचार किए बिना ही जमानत आदेश पारित किया।' शीर्ष न्यायालय ने इस बात पर भी गौर किया कि मृतक मुकेशभाई को आरोपियों ने तब बेरहमी से पीटा था, जब वह अपनी पत्नी और चाची के साथ कारखाने के बाहर कबाड़ इकट्ठा कर रहा था।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि राज्य को इस तरह के गंभीर मामले में कानून का शासन बनाए रखने के लिए भी बहुत गंभीर होना चाहिए था। पीठ ने आरोपी तेजस कनुभाई जाला और जयसुखभाई देवराजभाई रादडिया के इस तकर् को खारिज कर दिया कि ढाई साल पहले जमानत मिलने के बाद उन्होंने अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया।