नोटबंदी के बाद भी कैश सर्कुलेशन पर नहीं पड़ा कोई असर! 2016 के बाद हुआ बंपर इजाफा, हैरान कर देंगे आंकड़े

Edited By Yaspal,Updated: 02 Jan, 2023 04:20 PM

there was no effect on cash circulation even after demonetisation

टबंदी का देश में चलन में मौजूद मुद्रा (सीआईसी) का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है। नोटबंदी की घोषणा आठ नवंबर, 2016 को की गई थी। इसके तहत 500 और 1,000 रुपये के ऊंचे मूल्य के नोट बंद कर दिए गए थे

नई दिल्लीः नोटबंदी का देश में चलन में मौजूद मुद्रा (सीआईसी) का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है। नोटबंदी की घोषणा आठ नवंबर, 2016 को की गई थी। इसके तहत 500 और 1,000 रुपये के ऊंचे मूल्य के नोट बंद कर दिए गए थे। नोटबंदी की घोषणा के बाद आज चलन में मुद्रा करीब 83 प्रतिशत बढ़ गई है। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार सरकार के नोटबंदी के फैसले को उचित ठहराया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को 1,000 रुपये और 500 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की घोषणा की थी। इसके पीछे उनका उद्देश्य देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और काले धन के प्रवाह को रोकना था।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार, मूल्य के संदर्भ में चलन में मुद्रा या नोट चार नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 23 दिसंबर, 2022 को 32.42 लाख करोड़ रुपये हो गए। हालांकि, नोटबंदी के तुरंत बाद सीआईसी छह जनवरी, 2017 को करीब 50 प्रतिशत घटकर लगभग नौ लाख करोड़ रुपये के निचले स्तर तक आ गई थी। चलन में मुद्रा चार नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये थी। पुराने 500 और 1,000 बैंक नोटों को चलन से बाहर करने के बाद यह पिछले छह वर्षों का सबसे निचला स्तर था।

उस समय चलन में कुल नोटों में बंद नोटों का हिस्सा 86 प्रतिशत था। चलन में मुद्रा में छह जनवरी, 2017 की तुलना में तीन गुना या 260 प्रतिशत से ज्यादा का उछाल देखा गया है, जबकि चार नवंबर, 2016 से अब तक इसमें करीब 83 प्रतिशत का उछाल आया है। जैसे-जैसे प्रणाली में नए नोट डाले गए चलन में मुद्रा सप्ताह-दर-सप्ताह बढ़ती हुई वित्त वर्ष के अंत तक अपने चरम यानी 74.3 प्रतिशत तक पहुंच गई।
 
इसके बाद जून, 2017 के अंत में यह नोटबंदी-पूर्व के अपने शीर्ष स्तर के 85 प्रतिशत पर थी। नोटबंदी के कारण सीआईसी में छह जनवरी, 2017 तक लगभग 8,99,700 करोड़ रुपये की गिरावट आई, जिससे बैंकिंग प्रणाली में अतिरिक्त तरलता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। यह नकद आरक्षित अनुपात (आरबीआई के पास जमा का प्रतिशत) में लगभग नौ प्रतिशत की कटौती के बराबर था। इससे रिजर्व बैंक के तरलता प्रबंधन परिचालन के समक्ष चुनौती पैदा हुई।

इससे निपटने के लिए केंद्रीय बैंक ने तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत विशेष रूप से रिवर्स रेपो नीलामी का इस्तेमाल किया। सीआईसी 31 मार्च, 2022 के अंत में 31.33 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 23 दिसंबर, 2022 के अंत में 32.42 लाख करोड़ रुपये हो गई। नोटबंदी के साल को छोड़ दिया जाए, तो चलन में मुद्रा बढ़ी ही है। यह मार्च, 2016 के अंत में 20.18 प्रतिशत घटकर 13.10 लाख करोड़ रुपये पर आ गई। 31 मार्च, 2015 के अंत में सीआईसी 16.42 लाख करोड़ रुपये थी।

नोटबंदी के अगले वर्ष में यह 37.67 प्रतिशत बढ़कर 18.03 लाख करोड़ रुपये हो गई। वहीं मार्च, 2019 के अंत में 17.03 प्रतिशत बढ़कर 21.10 लाख करोड़ रुपये और 2020 के अंत में 14.69 प्रतिशत बढ़कर 24.20 लाख करोड़ रुपये रहा। पिछले दो वर्षों में मूल्य के संदर्भ में सीआईसी की वृद्धि दर 31 मार्च, 2021 के अंत में 16.77 प्रतिशत के साथ 28.26 लाख करोड़ रुपये और 31 मार्च, 2022 के अंत में 9.86 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 31.05 लाख करोड़ रुपये थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत के फैसले में सरकार के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये मूल्यवर्ग के नोटों को चलन से बाहर करने के फैसले को उचित ठहराते हुए कहा है कि इस मामले में निर्णय लेने की प्रक्रिया दोषरहित थी। न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि आर्थिक नीति के संबंध में फैसले लेते समय काफी संयम बरतना होगा और न्यायालय न्यायिक समीक्षा करके कार्यपालिका के फैसले का स्थान नहीं ले सकता है।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत केंद्र को दिए गए अधिकार के बारे में बहुमत के फैसले से असहमति जताई और तर्क दिया कि 500 ​​रुपये और 1,000 रुपये की श्रृंखला के नोटों को कानून के जरिए समाप्त किया जाना था न कि अधिसूचना के जरिए।

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