दिल्ली की सड़क कारियोस मार्ग क्यों है चर्चा में? जिनके नाम का PM मोदी को मिला सर्वोच्च सम्मान, जानिए वजह

Edited By Rahul Rana,Updated: 17 Jun, 2025 05:42 PM

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साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडुलाइड्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारिओस III’ से सम्मानित किया। इस सम्मान के बाद अचानक दिल्ली की एक सड़क आर्कबिशप मकारियोस मार्ग की चर्चा तेज हो गई...

नई दिल्ली : साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडुलाइड्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारिओस III’ से सम्मानित किया। इस सम्मान के बाद अचानक दिल्ली की एक सड़क आर्कबिशप मकारियोस मार्ग की चर्चा तेज हो गई है। यह सड़क लोधी रोड के पास स्थित है और साइप्रस के पहले राष्ट्रपति तथा राष्ट्रपिता मकारियोस तृतीय के सम्मान में इसका नाम रखा गया है।


दिल्ली की सड़क कैसे बनी आर्कबिशप मकारियोस मार्ग?

इतिहास के अनुसार, यह सड़क पहले ‘गोल्फ लिंक्स रोड’ के नाम से जानी जाती थी। लेकिन 1980 के दशक में, विशेष रूप से 1983 में दिल्ली में आयोजित गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) सम्मेलन के बाद कई अंतरराष्ट्रीय नेताओं के सम्मान में दिल्ली की कई सड़कों के नाम बदले गए। मकारियोस तृतीय, जो 1950 से 1977 तक साइप्रस के धार्मिक नेता (आर्कबिशप) और फिर पहले राष्ट्रपति रहे, उन नेताओं में से एक थे जिनका भारत से विशेष जुड़ाव रहा। उनके नेतृत्व में साइप्रस ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ स्वतंत्रता हासिल की और बाद में वे देश के पहले राष्ट्रपति बने। उन्हें साइप्रस का संस्थापक भी माना जाता है।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी मकारियोस के भारत से संबंधों की याद दिलाई और बताया कि 1962 में वे भारत आए थे और उन्होंने दो सप्ताह तक नेहरू सरकार के अतिथि के रूप में समय बिताया था।

अपनी पोस्ट में जयराम रमेश ने लिखा, “जब 1964 में पंडित नेहरू की मृत्यु हुई, तो साइप्रस ने राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित किया। 1980 के दशक की शुरुआत में, दिल्ली के गोल्फ़ लिंक्स क्षेत्र में एक खूबसूरत और व्यस्त सड़क का नाम उनके नाम पर रखा गया था, हालांकि साइनबोर्ड पर उनका नाम दो भागों में विभाजित है।


कौन थे आर्कबिशप मकारियोस III?


आर्कबिशप मकारियोस III का जन्म 13 अगस्त 1913 को हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई, साइप्रस की पहचान बनाई और देश को स्वतंत्रता दिलाई। हालांकि 1974 में तुर्की द्वारा साइप्रस पर किए गए हमले के चलते देश उत्तर और दक्षिण में बंट गया और मकारियोस को कुछ समय के लिए पद छोड़ना पड़ा, लेकिन वे फिर सत्ता में लौटे और इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ गए।


क्या था गुट निरपेक्ष आंदोलन?


गुटनिरपेक्ष आंदोलन की बात करें तो इसकी नींव 1961 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के गमाल अब्दुल नासर और युगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज टीटो ने रखी थी। इस आंदोलन का मकसद था किसी भी वैश्विक महाशक्ति (जैसे अमेरिका या सोवियत संघ) के प्रभाव से दूर रहना और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाना। दिल्ली में जब 1983 का शिखर सम्मेलन हुआ तो फिदेल कास्त्रो जैसे कई बड़े नेता आए और उसी दौरान जोसिप ब्रोज टीटो मार्ग, गमाल अब्देल नासर मार्ग, हो ची मिन्ह मार्ग और मकारियोस मार्ग जैसी सड़कों का नामकरण किया गया।
 

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