भारत-बांग्लादेश तीस्ता विवाद में चीन की एंट्री, भारत की ‘चिकन नेक’ पर खतरा बढ़ा !

Edited By Updated: 26 Oct, 2025 06:59 PM

why should india worry about china backed teesta plan

तीस्ता नदी विवाद अब केवल जल और कृषि का मामला नहीं रह गया है। चीन की भागीदारी और बांग्लादेश में सड़कों पर जल न्याय आंदोलन ने इसे रणनीतिक और सुरक्षा चुनौती बना दिया है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा और सिलीगुड़ी...

International Desk:  भारत और बांग्लादेश के बीच दशकों पुराना तीस्ता नदी विवाद अब फिर उफान पर है। इस बार विवाद में चीन की भागीदारी ने स्थिति को और पेचीदा बना दिया है। बांग्लादेश के उत्तरी इलाकों में छात्रों और नागरिकों ने ‘वॉटर जस्टिस फॉर तीस्ता’ आंदोलन के तहत सड़कों पर उतरकर चीन समर्थित ‘तीस्ता मास्टर प्लान’ के पक्ष में प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी दावा कर रहे हैं कि यह परियोजना खेती, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के लिए आवश्यक है। हालांकि भारत इस योजना को लेकर सतर्क है क्योंकि परियोजना का क्षेत्र सिलीगुड़ी कॉरिडोर यानी ‘चिकन नेक’ के बेहद करीब है। यह मार्ग भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है और इसकी चौड़ाई मात्र 20-22 किलोमीटर है। इस वजह से भारत को चिंता है कि चीन की उपस्थिति न सिर्फ बांग्लादेश में उसकी पकड़ मजबूत करेगी, बल्कि निगरानी और सैन्य दृष्टि से भी रणनीतिक खतरा पैदा कर सकती है।

 

तीस्ता नदी और भारत-बांग्लादेश विवाद
तीस्ता नदी लगभग 414 किलोमीटर लंबी है। यह सिक्किम से निकलकर पश्चिम बंगाल और फिर बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन में बहती है। दोनों देशों के लिए यह नदी कृषि और जीवन का अहम स्रोत है।1983 में भारत और बांग्लादेश के बीच पानी बांटने का अस्थायी समझौता हुआ, जो लागू नहीं हो सका। 2011 में नया समझौता अंतिम चरण में पहुंचा, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मंजूरी नहीं मिलने के कारण ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद बांग्लादेश आरोप लगाता रहा कि भारत पर्याप्त पानी नहीं छोड़ता, जबकि मानसून में अधिक जल छोड़े जाने से बाढ़ की स्थिति बनती है।

 

चीन की भागीदारी और मास्टर प्लान
मार्च 2025 में बांग्लादेश के चीफ एडवाइजर मुहम्मद यूनुस बीजिंग गए और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। इस दौरान 50 साल की ‘तीस्ता मास्टर प्लान’ पर चर्चा हुई। योजना में शामिल हैं:

  • नदी की खुदाई
  • बांध और एंबैंकमेंट निर्माण
  • बाढ़ नियंत्रण उपाय
  • नए टाउनशिप और बुनियादी ढांचा विकास
  • यह परियोजना चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है। बांग्लादेश ने इस योजना में 2.1 अरब डॉलर का निवेश और ऋण प्रस्तावित किया है।

 

सड़कों पर आंदोलन और राजनीतिक समर्थन
19 अक्टूबर को चिटगांव यूनिवर्सिटी में छात्रों ने मशाल जुलूस निकाला और “वॉटर जस्टिस फॉर तीस्ता” के नारे लगाए। उनका कहना था कि यह परियोजना सूखे और बेरोजगारी से जूझ रहे उत्तरी बांग्लादेश के लिए जीवनरेखा साबित होगी। विपक्षी पार्टी BNP ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया और वादा किया कि सत्ता में आने पर यह परियोजना लागू करेंगे। पाकिस्तान समर्थित कोई संदेह नहीं, लेकिन स्थानीय सरकार का समर्थन चीन के निवेश को बढ़ावा देता है।

 

भारत की रणनीतिक चिंता
भारत ने अभी तक इस पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि चीन ने इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचा बनाना शुरू किया, तो भारत की सुरक्षा और खुफिया निगरानी पर असर पड़ सकता है। भारत पहले ही तिब्बत में बने चीनी हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से सतर्क है, जो ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं। 1996 में हुए गंगा जल समझौते की वैधता 2026 में खत्म हो रही है, जिससे भारत-बांग्लादेश जल बंटवारे पर नए सिरे से वार्ता जरूरी हो गई है।  

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