आमलकी एकादशी व्रत कथा, एक हजार गाय दान का देती है पुण्य

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Mar, 2020 09:02 AM

amalaki ekadashi vrat katha

ब्रह्माण्ड पुराण में मान्धाता और वशिष्ठ संवाद में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की 'आमलकी एकादशी' का माहात्म्य इस प्रकार वर्णित हुआ है। एक बार मान्धाता जी ने वशिष्ठ जी से प्रार्थना की हे ऋषिवर! यदि

Follow us on Instagram

ब्रह्माण्ड पुराण में मान्धाता और वशिष्ठ संवाद में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की 'आमलकी एकादशी' का माहात्म्य इस प्रकार वर्णित हुआ है। एक बार मान्धाता जी ने वशिष्ठ जी से प्रार्थना की हे ऋषिवर! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, मुझ पर यदि आपकी कृपा है तो आप कृपा करके मुझे ऐसा व्रत बतलाइए जिसका पालन करने से मुझे वास्तविक कल्याण की प्राप्ति हो। इसके उत्तर में वशिष्ठ जी ने प्रसन्नचित होकर कहा, हे राजन्! मैं आपको शास्त्रों के एक गोपनीय, रहस्य पूर्ण तथा बड़े ही कल्याणकारी व्रत की कथा सुनाता हूं, जो कि समस्त प्रकार के मंगल को देने वाली है। हे राजन! इस व्रत का नाम आमलकी एकादशी व्रत है। यह व्रत बड़े से बड़े पापों का नाश करने वाला, एक हजार गाय दान के पुण्य का फल देने वाला एवं मोक्ष प्रदाता है। 

PunjabKesari Amalaki Ekadashi Vrat Katha

पुराने समय के वैदिश नाम के नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र वर्ण के लोग बड़े ही सुखपूर्वक निवास करते थे। वहां के लोग स्वाभाविक रूप से स्वस्थ तथा ह्वष्ट-पुष्ट थे। हे राजन्! उस नगर में कोई भी मनुष्य, पापात्मा अथवा नास्तिक नहीं था। इस नगर में जहां तहां वैदिक कर्म का अनुष्ठान हुआ करता था। वेद ध्वनि से यह नगर गूंजता ही रहता था। उस नगर में चंद्रवंशी राजा राज करते थे। इसी चंद्रवंशीय राजवंश में एक चैत्ररथ नाम के धर्मात्मा एवं सदाचारा राजा ने जन्म लिया। यह राजा बड़ा पराक्रमी, शूरवीर, धनवान, भाग्यवान तथा शास्त्रज्ञ भी था। इस राजा के राज्य में प्रजा को बड़ा ही सुख था। सारा वातावरण ही अनुकूल था। यहां की सारी प्रजा विष्णु भक्ति परायण थी। सभी लोग एकादशी का व्रत करते थे। इस राज्य में कोई भी दरिद्र अथवा कृपण नहीं देखा जाता था। इस प्रकार प्रजा के साथ राजा, अनेकों वर्षों तक सुखपूर्वक राज करते रहे। 

PunjabKesari Amalaki Ekadashi Vrat Katha

एक बार फाल्गुन शुक्लपक्षीय द्वादशी संयुक्ता आमलकी एकादशी आ गई। यह एकादशी महाफल देने वाली है, ऐसा जानकर नगर के बालक, वृद्ध, युवा, स्त्री व पुरुष तथा स्वयं राजा ने भी सपरिवार इस एकादशी व्रत का पूरे नियमों के साथ पालन किया। एकादशी वाले दिन राजा प्रात: काल नदी में स्नान आदि समाप्त कर समस्त प्रजा के साथ उसी नदी के किनारे पर बने भगवान श्री विष्णु के मंदिर में जा पहुंचे। उन्होंने वहां दिव्य गंध सुवासित जलपूर्ण कलश छत्र, वस्त्र, पादुका आदि पंचरत्मों के द्वारा सुसज्जित करके भगवान की स्थापना की। इसके बाद धूप-दीप प्रज्वलित करके आमलकी अर्थात आंवले के साथ भगवान श्रीपरशुराम जी की पूजा की और अंत में प्रार्थना की हे परशुराम! हे रेणुका के सुखवर्धक! हे मुक्ति प्रदाता! आपको नमस्कार है। हे आमलकी! हे ब्रह्मपुत्री! हे धात्री! हे पापनिशानी! आप को नमस्कार। आप मेरी पूजा स्वीकार करें। इस प्रकार राजा ने अपनी प्रजा के व्यक्तियों के साथ भगवान श्रीविष्णु एवं भगवान श्रीपरशुराम जी की पवित्र चरित्र गाथा श्रवण, कीर्तन व स्मरण करते हुए तथा एकादशी की महिमा सुनते हुए रात्रि जागरण भी किया। 

PunjabKesari Amalaki Ekadashi Vrat Katha

उसी शाम एक शिकारी शिकार करता हुआ वहीं आ पहुंचा। जीवों को हत्या करके ही वह दिन व्यतीत करता था। दीपमालाओं से सुसज्जित तथा बहुत से लोगों द्वारा इकट्ठे होकर हरि कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करते देख कर शिकारी सोचने लगा कि यह सब क्या हो रहा है? शिकारी के पिछले जन्म के पुण्य का उदय होने पर ही वहां एकादशी व्रत करते हुए भक्त जनों का उसने दर्शन किया। कलश के ऊपर विराजमान भगवान श्रीदामोदर जी का उसने दर्शन किया तथा वहां बैठकर भगवान श्रीहरि की चरित्र गाथा श्रवण करने लगा। भूखा प्यासा होने पर भी एकाग्र मन से एकादशी व्रत के महात्म्य की कथा तथा भगवान श्रीहरि की महिमा श्रवण करते हुए उसने भी रात्रि जागरण किया। प्रात: होने पर राजा अपनी प्रजा के साथ अपने नगर को चला गया तथा शिकारी भी अपने घर वापस आ गया और समय पर उसने भोजन किया। 

PunjabKesari Amalaki Ekadashi Vrat Katha

कुछ समय बाद जब उस शिकारी की मृत्यु हो गई तो अनायास एकादशी व्रत पालन करने तथा एकादशी तिथि में रात्रि जागरण करने के प्रभाव से उस शिकारी ने दूसरे जन्म में विशाल धन संपदा, सेना, सामंत, हाथी, घोड़े, रथों से पूर्ण जयंती नाम की नगरी के विदूरथ नामक राजा के यहां पुत्र के रूप में जन्म लिया। वह सूर्य के समान पराक्रमी, पृथ्वी के समान क्षमाशील, धर्मनिष्ठ, सत्यनिष्ठ एवं अनेकों सद्गुणों से युक्त होकर भगवान विष्णु की भक्ति करता हुआ तथा एक लाख गांवों का आध्पत्य करता हुआ जीवन बिताने लगा। वह बड़ा दानी भी था। इस जन्म में इसका नाम वसुरथ था। 

PunjabKesari Amalaki Ekadashi Vrat Katha

एक बार वह शिकार करने के लिए वन में गया और मार्ग भटक गया। वन में घूमते-घूमते थका हारा, प्यास से व्याकुल होकर अपनी बाहों का तकिया बनाकर जंगल में सो गया। उसी समय पर्वतों मे रहने वाले मलेच्छ यवन सोए हुए राजा के पास आकर, राजा की हत्या की चेष्टा करने लगे। वे राजा को शत्रु मानकर उनकी हत्या करने पर तुले थे। उन्हें कुछ ऐसा भ्रम हो गया था कि ये वहीं व्यक्ति है जिसने हमारे माता-पिता, पुत्र-पौत्र आदि को मारा था तथा इसी के कारण हम जंगल में खाक छान रहे हैं। किंतु आश्चर्य की बात कि उन लोगों द्वारा फेंके गए अस्त्रशस्त्र राजा को न लगकर उसके इर्द-गिर्द ही गिरते गए। राजा को खरोंच तक नहीं आई। जब उन लोगों के अस्त्र-शस्त्र समाप्त हो गए तो वे सभी भयभीत हो गए तथा एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सके। तब सभी ने देखा कि उसी समय राजा के शरीर से दिव्य गंध युक्त, अनेकों आभूषणों से आभूष्त एक परम सुंदरी देवी प्रकट हुई। वह भीषण भृकुटीयुक्ता, क्रोधितनेत्रा देवी क्रोध से लाल-पीली हो रही थी। उस देवी का यह स्वरूप देखकर सभी यवन इधर-उधर दौड़ने लगे परंतु उस देवी ने हाथ में चक्र लेकर एक क्षण में ही सभी मलेच्छों का वध कर डाला। 

PunjabKesari Amalaki Ekadashi Vrat Katha

जब राजा की नींद खुली तथा उसने यह भयानक हत्याकांड देखा तो वह आश्चर्यचकित हो गया। साथ ही भयभीत भी हो गया। उन भीषण आकार वाले मलेच्छों को मरा देखकर राजा विस्मय के साथ सोचने लगा कि मेरे इन शत्रुओं को मार कर मेरी रक्षा किसने की? यहां मेरा ऐसा कौन हितैषी मित्र है? जो भी हो, मैं उसके इस महान कार्य के लिए उसका बहुत-बहुत धन्यवाद ज्ञापन करता हूं। उसी समय आकाशवाणी हुई कि भगवान केशव को छोड़कर भला शरणागत की रक्षा करने वाला और है ही कौन? अत: शरणागत रक्षक, शरणागत पालक श्रीहरि ने ही तुम्हारी रक्षा की है। राजा उस आकाशवाणी को सुनकर प्रसन्न तो हुआ ही, साथ ही भगवान श्रीहरि के चरणों में अति कृतज्ञ होकर भगवान का भजन करते हुए अपने राज्य में वापस आ गया और निष्टंक राज्य करने लगा। 

वशिष्ट जी कहते हैं," हे राजन्! जो मनुष्य इस आमलकी एकादशी व्रत का पालन करते हैं वह निश्चित ही विष्णुलोक की प्राप्ति कर लेते हैं।"  


       

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!