Edited By jyoti choudhary,Updated: 19 Dec, 2025 05:04 PM

निजी क्षेत्र के इंडसइंड बैंक ने शुक्रवार को बताया कि सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (SFIO) ने इस सप्ताह बैंक के अधिकारियों से बातचीत की है और जल्द ही अकाउंटिंग से जुड़ी कथित अनियमितताओं पर विस्तृत जानकारी मांगते हुए लिखित पत्र भेजेगा। SFIO,...
बिजनेस डेस्कः निजी क्षेत्र के इंडसइंड बैंक ने शुक्रवार को बताया कि सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (SFIO) ने इस सप्ताह बैंक के अधिकारियों से बातचीत की है और जल्द ही अकाउंटिंग से जुड़ी कथित अनियमितताओं पर विस्तृत जानकारी मांगते हुए लिखित पत्र भेजेगा। SFIO, कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) के तहत काम करने वाली जांच एजेंसी है।
RBI के नियमों के तहत SFIO को दी गई जानकारी
एक नियामकीय फाइलिंग में बैंक ने बताया कि RBI के 15 जुलाई 2024 के मास्टर निर्देशों के अनुसार, ₹1 करोड़ या उससे अधिक की किसी भी धोखाधड़ी की जानकारी RBI के साथ-साथ SFIO को देना अनिवार्य है। इसी के तहत बैंक ने 2 जून 2025 को SFIO को आंतरिक डेरिवेटिव ट्रेड्स की अकाउंटिंग, ‘अन्य परिसंपत्तियों’ और ‘अन्य देनदारियों’ में मौजूद कुछ अप्रमानित बैलेंस और माइक्रोफाइनेंस से जुड़ी ब्याज व शुल्क आय में गड़बड़ियों की जानकारी दी थी।
MCA के आदेश पर शुरू हुई SFIO जांच
इससे पहले आई रिपोर्टों में कहा गया था कि कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) ने इंडसइंड बैंक में अकाउंटिंग से जुड़ी गंभीर अनियमितताओं को देखते हुए SFIO को जांच के आदेश दिए थे। यह फैसला वैधानिक ऑडिट और फॉरेंसिक रिपोर्ट्स के बाद लिया गया, जिनमें जनहित से जुड़े गंभीर मुद्दों की ओर इशारा किया गया था।
यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है, जब मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने धन के डायवर्जन या गबन के सबूत न मिलने पर अपनी प्रारंभिक जांच बंद करने की तैयारी कर ली है।
Q4FY25 में ₹2,329 करोड़ का शुद्ध घाटा
इंडसइंड बैंक ने जनवरी–मार्च 2025 तिमाही में ₹2,329 करोड़ का शुद्ध घाटा दर्ज किया। यह घाटा मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर प्रावधान बढ़ाने और डेरिवेटिव तथा माइक्रोफाइनेंस कारोबार से जुड़ी गलत तरीके से दर्ज की गई आय और राजस्व प्रविष्टियों को वापस लेने के कारण हुआ।
मार्च में हुआ था गड़बड़ियों का खुलासा
मार्च 2025 में बैंक ने बताया था कि एक आंतरिक समीक्षा में उसके डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में गंभीर खामियां सामने आई हैं। इसके बाद बाहरी एजेंसियों से जांच कराई गई, जिसमें पता चला कि FY16 से FY24 के बीच किए गए कई डेरिवेटिव लेनदेन का अकाउंटिंग ट्रीटमेंट तय मानकों के अनुरूप नहीं था।
जांच में यह भी सामने आया कि कई वर्षों तक काल्पनिक (नोशनल) आय को लाभ-हानि खाते में दिखाया गया और उससे जुड़ी राशि को परिसंपत्तियों के रूप में दर्ज किया गया। बैंक ने FY25 में ऐसी ₹1,959.98 करोड़ की संचित नोशनल आय को पूरी तरह लिख-ऑफ कर दिया। इसके अलावा, ‘अन्य परिसंपत्तियों’ और ‘अन्य देनदारियों’ में मौजूद ₹595 करोड़ के अप्रमानित बैलेंस का भी समायोजन किया गया।
माइक्रोफाइनेंस आय में भी गड़बड़ी
माइक्रोफाइनेंस पोर्टफोलियो की समीक्षा में सामने आया कि ₹673.82 करोड़ की ब्याज आय और ₹172.58 करोड़ की शुल्क आय को गलत तरीके से मान्यता दी गई थी। इन प्रविष्टियों को पलटने से Q4FY25 के नतीजों पर ₹422.56 करोड़ का नकारात्मक असर पड़ा।
इसके अलावा, कुछ माइक्रोफाइनेंस लोन को गलत तरीके से स्टैंडर्ड एसेट के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिन पर ब्याज आय दर्ज की जा रही थी। क्लासिफिकेशन ठीक करने के बाद बैंक ने इन लोन पर 95 प्रतिशत का प्रावधान किया, जिसकी कुल राशि ₹1,791 करोड़ रही। इससे 31 मार्च 2025 तक लाभ-हानि खाते पर कुल ₹1,969 करोड़ का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
शीर्ष प्रबंधन ने छोड़ा पद
इस पूरे मामले के बाद बैंक के पूर्व एमडी और सीईओ सुमंत कथपालिया और पूर्व डिप्टी सीईओ अरुण खुराना ने डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में करीब ₹1,960 करोड़ के नुकसान की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया है। मौजूदा प्रबंधन इन अधिकारियों को दिए गए बोनस की रिकवरी (क्लॉबैक) के लिए भी कदम उठा रहा है।