मिल मालिकों को राहत और लोगों को झटका देने की तैयारी में सरकार, महंगी होगी चीनी

Edited By jyoti choudhary,Updated: 11 Aug, 2020 03:43 PM

sugar prices may increase because of this the government will decide

देश में बढ़ती महंगाई थमने का नाम नहीं ले रही है। रोजमर्रा के दिनों में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। अब खबर आ रही है कि सरकार जल्द ही चीनी की कीमतें बढ़ा सकती है।

बिजनेस डेस्कः देश में बढ़ती महंगाई थमने का नाम नहीं ले रही है। रोजमर्रा के दिनों में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। अब खबर आ रही है कि सरकार जल्द ही चीनी की कीमतें बढ़ा सकती है। बताया जा रहा है कि ये सब चीनी मिल मालिकों को राहत देने के लिए किया जा रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीनी मिलों को सरकार से राहत मिलने का लंबा इंतजार जल्द खत्म होने वाला है। गन्ने की एफआरपी यानी Fair and Remunerative Price और चीनी की एमएसपी बढ़ाने का प्रस्ताव कैबिनेट के पास भेजा जा चुका है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार चीनी की एमएसपी यानी मिनिमम सेल्स प्राइस 31 रुपए से बढ़ाकर 33 रुपए प्रति किलोग्राम करने का प्रस्ताव है। जबकि एफआरपी 275 से बढ़ाकर 285 रुपए प्रति क्विंटल करने का प्रस्ताव रखा गया है। बताया जा रहा है कि इसके लिए सीसीईए से भी जल्द मंजूरी प्रदान की जाएगी। अगर एमएसपी बढ़ाया जाता है तो इससे मिल मालिकों को तकरीबन 2,200 करोड़ रुपए का मुनाफा होगा।

सरकार ने जिस तरह के संकेत दिए हैं उससे साफ है कि अगले सीजन में चीनी मिलों के 1 रुपए प्रति किलो फायदा होने का अनुमान है। खबरें तो ऐसी भी मीडिया में आई है कि चानी सेक्टर के लिए सॉफ्ट लोन और एक्सपोर्ट सब्सिडी पर भी जल्द ही सरकार कोई फैसला लेगी।

गन्ना किसानों के 20 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा बकाया
जानकारों के मुताबिक चीनी उत्पादन वर्ष की गणना हर साल 1 अक्टूबर से अगले साल 30 सितंबर के बीच में की जाती है। अगर State Advised Price (SAP) के संदर्भ में गौर करें तो चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया 22 हजार 79 करोड़ रुपए हो गया है। जबकि केंद्र द्वारा घोषित FRP के लिहाज से ये बक़ाया 17 हजार 683 करोड़ रुपए का बनता है।

मंत्रालय का कहना है कि पिछले साल मई महीने तक बक़ाया 28 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। एफआरपी गन्ना खरीद की वो दर है जो केंद्र सरकार निर्धारित करती है जबकि राज्य सरकारें उस दर में अपनी तरफ से जो अतिरिक्त दाम लगा देती हैं, उसे एसएपी कहा जाता है।
 
 

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