Motivational Concept: सदियों बाद भी प्रासंगिक ‘आर्यभट’

Edited By Updated: 23 Oct, 2021 05:23 PM

acharya chanakya

प्राचीन भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों में आर्यभट्ट प्रथम का विशिष्ट स्थान है। विशेषकर खगोलिकी एवं गणित में। प्राचीन काल में ज्योतिष (आकाशीय अध्ययन एवं फलित ज्योतिष) और गणित

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प्राचीन भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों में आर्यभट्ट प्रथम का विशिष्ट स्थान है। विशेषकर खगोलिकी एवं गणित में। प्राचीन काल में ज्योतिष (आकाशीय अध्ययन एवं फलित ज्योतिष) और गणित का अध्ययन साथ-साथ किया जाता था।

आर्यभट इन दोनों ही विषयों में पारंगत थे। ‘आर्यभटीय’ नामक उनकी एक विख्यात पुस्तक (संस्कृत पद्यों में लिखी) उपलब्ध है। माना जाता है कि उनका जन्म 476 ईस्वी सन् में हुआ था और उनका मृत्यु वर्ष सम्भवत: 550 ईस्वी है। वह उच्च अध्ययन हेतु ‘कुसुमपुर’ (आज का पटना शहर) में रहे।

विलक्षण विद्वान
उन्होंने गणित एवं खगोलिकी (ज्योतिष) पर कई पुस्तकें लिखी हैं लेकिन प्रामाणिक रूप से केवल ‘आर्यभटीय’ ही उपलब्ध रही है। यह कई दृष्टियों से विलक्षण पुस्तक है। इसे उन्होंने संस्कृत में लिखा। उन्होंने अपनी ‘अक्षराक’ पद्धति को एक श्लोक में अभिव्यक्ति कर दिया है।

‘आर्यभटीय’ चार भागों में बांटी गई है। इनके नाम हैं : गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलपाद। गीतिकापाद में केवल 13 श्लोक हैं। गणितपाद में कुल 33 श्लोक हैं जिनमें अंक गणित, रेखा गणित और बीज गणित से संबंधित प्रमुख बातों का संक्षेप में समावेश कर दिया है। कालक्रियापाद में केवल 25 श्लोक हैं। गोलपाद में 50 श्लोक हैं।

सामने रखा ज्योतिष का वैज्ञानिक पक्ष
गौरतलब है कि आर्यभट फलित ज्योतिष में बिल्कुल विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने ज्योतिष के केवल वैज्ञानिक पक्ष पर ही विचार प्रस्तुत किए हैं। उनके द्वारा किए गए खगोलिक अभिकलन एवं उनकी विधि का महत्व आज भी कम नहीं हुआ है।

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