Birthday of Sir Jagadish Chandra Bose: समय से 60 वर्ष आगे थे जगदीश चंद्र बसु

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Nov, 2022 07:16 AM

birthday of sir jagadish chandra bose

भौतिकी, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान तथा पुरातत्व का गहरा ज्ञान रखने वाले भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु का जन्म 30 नवम्बर, 1858 को बंगाल (अब बंगलादेश) में ढाका जिले के फरीदपुर के मेमन सिंह में एक प्रख्यात बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Birthday Of Scientist Jagdish Chandra Bose: भौतिकी, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान तथा पुरातत्व का गहरा ज्ञान रखने वाले भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु का जन्म 30 नवम्बर, 1858 को बंगाल (अब बंगलादेश) में ढाका जिले के फरीदपुर के मेमन सिंह में एक प्रख्यात बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता भगवान चन्द्र बसु ब्रह्म समाज के नेता थे और फरीदपुर, बर्धमान एवं अन्य जगहों पर उप-मैजिस्ट्रेट रहे जबकि माता का नाम बामा सुन्दरी बोस था। इनका परिवार रारीखाल गांव, बिक्रमपुर से आया था, जो आजकल बंगलादेश के मुन्शीगंज जिले में है। विद्यालय में शिक्षा क बाद उन्होंने कलकत्ता आकर सेंट जेवियर स्कूल में प्रवेश लिया और स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इनकी जीव विज्ञान में बहुत रुचि थी, इसीलिए 22 वर्ष की आयु में चिकित्सा और जीव विज्ञान की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए, मगर वहां पर चिकित्सक (डॉक्टर) बनने का विचार त्याग कर कैम्ब्रिज के क्राइस्ट महाविद्यालय चले गए। 

PunjabKesari Jagdish Chandra Bose:

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

वहां भौतिकी के एक विख्यात प्रोफैसर फादर लाफोण्ट ने बसु को भौतिकशास्त्र के अध्ययन के लिए प्रेरित किया। लेकिन स्वास्थ्य समस्याओं के चलते शिक्षा बीच में ही छोड़ कर यह 1885 में स्वदेश लौट कर प्रैसिडैंसी कॉलेज में भौतिकी के सहायक प्राध्यापक के रूप में पढ़ाने लगे। 1915 तक ये यहीं रहे। यहां पर इन्होंने बहुत से महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग किए।

उस समय अंग्रेजों द्वारा भारतीय शिक्षकों के साथ भी भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता था और उनको अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक-तिहाई वेतन दिया जाता था, जिसका जगदीश चंद्र बसु ने कड़ा विरोध किया और तीन वर्षों तक बिना वेतन के काम करते रहे, परन्तु अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। 

PunjabKesari Jagadish Chandra Bose

आखिर चौथे वर्ष जगदीश चंद्र बसु की जीत हुई और उन्हें पिछले तीन वर्षों का पूरा वेतन एक साथ दिया गया। ये कक्षा में पढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रदर्शनों का उपयोग करते थे, जिस कारण इनके सतेन्द्र नाथ बोस जैसे कुछ छात्र आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री बने।

1885 में बसु ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में उन्होंने दूर से एक घंटी बजाकर बारूद में विस्फोट कराया, जो तरंगों की ताकत का एक नमूना ही था। 1893 में, निकोला टेस्ला ने पहले सार्वजनिक रेडियो का प्रदर्शन किया। एक साल बाद नवम्बर 1894 (या 1895) के एक सार्वजनिक प्रदर्शन दौरान, बसु ने एक मिलीमीटर रेंज माइक्रोवेव तरंग का उपयोग करके दिखाया। 

बायोफिजिक्स के क्षेत्र में उनका सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने दिखाया की पौधों में उत्तेजना का संचार वैद्युतिक (इलैक्ट्रिकल) माध्यम से होता है, न कि कैमिकल माध्यम से। बसु ने सबसे पहले माइक्रोवेव के वनस्पति के टिश्यू पर होने वाले असर का अध्ययन किया। 

PunjabKesari Jagadish Chandra Bose

उन्होंने पौधों पर बदलते हुए मौसम से होने वाले असर का अध्ययन किया। इसके साथ-साथ उन्होंने रासायनिक इन्हिबिटर्स और बदलते हुए तापमान से पौधों पर होने वाले असर का भी अध्ययन किया था। अलग-अलग परिस्थितियों में सैल मैम्ब्रेन बदलाव का विश्लेषण करके वह इस नतीजे पर पहुंचे कि पौधे ‘दर्द महसूस कर सकते हैं, स्नेह अनुभव कर सकते हैं इत्यादि’। 

1917 में ब्रिटिश सरकार ने इन्हें ‘नाइट’ की उपाधि प्रदान की तथा शीघ्र ही भौतिक तथा जीव विज्ञान के लिए वह रॉयल सोसायटी लंदन के फैलो चुन लिए गए। बसु ने युवा वैज्ञानिकों के शोधकार्यों के लिए अच्छी प्रयोगशाला बनाने की सोच से प्रतिष्ठित बोस इंस्टीच्यूट (बोस विज्ञान मंदिर) की स्थापना की। उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है। उन्होंने अपने काम के लिए कभी नोबेल नहीं जीता। इनके स्थान पर 1909 में मारकोनी को नोबेल पुरस्कार दे दिया गया। इन्होंने वनस्पति जीवविद्या में अनेक खोजें की और पौधों की वृद्धि को मापने के लिए क्रेस्कोग्राफ नामक एक यन्त्र का आविष्कार किया। 

बसु पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने रेडियो तरंगें डिटैक्ट करने के लिए सैमीकंडक्टर जंक्शन का इस्तेमाल किया और कई माइक्रोवेव कंपोनैंट्स की खोज की थी। 1897 में बसु ने लंदन के रॉयल इंस्टीच्यूट में अपने मिलीमीटर तरंगों पर किए शोध का ब्यौरा पेश किया। 23 नवम्बर, 1937 को देश के इस महान वैज्ञानिक ने झारखण्ड के गिरिडीह (तब बंगाल) में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 1978 में भौतिक विज्ञान में नोबेल जीतने वाले सर नेविल मोट ने कहा था कि जगदीश चन्द्र बसु अपने समय से 60 वर्ष आगे थे।   

PunjabKesari kundli

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!