Dev Uthani Ekadashi: 4 नवंबर से आरंभ होंगे शुभ काम, जानें इस खास दिन का महत्व

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Nov, 2022 07:53 AM

dev uthani ekadashi

हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का त्यौहार मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार 4 नवंबर 2022 दिन शुक्रवार को है। इसी दिन भगवान श्री

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Dev Uthani Ekadashi 2022 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का त्यौहार मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार 4 नवंबर 2022 दिन शुक्रवार को है। इसी दिन भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर सागर से विश्राम अवस्था से जागकर बैकुंठ लोक में वापस आकर अपने सभी कार्यों का पुनः भार धारण करते हैं। इसी कारण उन्हें सभी कार्यों का भार धारण करने से विवाह, मुंडन सभी प्रकार के संस्कार कार्य इत्यादि सभी महत्वपूर्ण कार्यों का आरंभ हो जाता है।

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Dev Uthani Ekadashi 2022: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। इसका कारण यह है कि उस दिन कई ग्रह अथवा नक्षत्र की स्थिति एवं प्रभाव में परिवर्तन होता है। जिसका मनुष्य की इंद्रियों पर प्रभाव पड़ता है। इस पड़ने वाले प्रभाव में संतुलन बनाए रखने के लिए व्रत का सहारा लिया जाता है क्योंकि व्रत एवं ध्यान ही मनुष्य में संतुलन रहने का गुण विकसित करते हैं।

इसे पाप विनाशिनी एवं मुक्ति देने वाली एकादशी भी कहा गया है। वैदिक पुराणों में लिखा गया है कि इस दिन के आने से पहले तक गंगा स्नान का महत्व होता है। इस दिन उपवास रखने का उन्हें कई तीर्थ दर्शन, 1000 अश्वमेध यज्ञ एवं 100 राजसूय यज्ञ के तुल्य माना गया है। इस दिन का महत्व तो स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को बताया था। उन्होंने कहा था- इस दिन एकासना करने से एक जन्म, रात्रि भोज से दो जन्म एवं पूर्ण व्रत पालन से सात जन्मों के पापों का नाश होता है। इस दिन से कई जन्मों का उद्धार होता है एवं बड़ी से बड़ी मनोकामना पूरी होती है।

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सनातन धर्म में इस दिन का बेहद ही खास महत्व होता है। देवउठनी ग्यारस के दिन ही भगवान विष्णु क्षीर सागर में 4 माह के शयन के बाद जागे थे। सनातन धर्म में इस दौरान 4 माह तक कोई भी धार्मिक कार्य नहीं किया जाता है और देवउठनी ग्यारस के शुभ दिन से ही सभी मांगलिक और धार्मिक कार्य शुरू किए जाते हैं। इस दिन पूरे भारतवर्ष में तुलसी विवाह का भी आयोजन समारोह पूर्वक किया जाता है।

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राक्षस जालंधर की पत्नी वृंदा सर्वगुण संपन्न एवं सद्गुणों वाली पतिव्रता स्त्री थी तथा श्री विष्णु जी की परम भक्त थी। जब राक्षस जालंधर देवताओं से युद्ध के लिए जाते हैं तो वृंदा अपने पति के लिए देव आराधना करती रहती हैं। जब तक कि वे युद्ध से विजयी होकर नहीं लौटते थे। तब श्री हरि विष्णु ने देवताओं के आग्रह पर जालंधर का रूप बनाकर वृंदा के पास पहुंच गए और वृंदा ने आराधना बंद कर दी। तब भगवान शंकर ने जालंधर का वध कर दिया और जालंधर का सिर काटकर वृंदा के पास आ गिरा और श्री हरि विष्णु ने अपने वास्तविक रूप में वृंदा को दर्शन दिए और सती धर्म का पालन करते हुए वृंदा ने स्वयं को भस्म कर लिया और उस भस्म में से एक पौधा उत्पन्न हुआ। जिसे श्री हरि ने तुलसी का नाम दिया तथा पश्चाताप स्वरूप स्वयं शालिग्राम के रूप में तुलसी चरणों में विराजमान रहने का वचन दिया। तुलसी के ओजस्वी विचारों एवं गुणों के कारण तुलसी का यह औषधीय पौधा आज इतना गुणकारी है। तुलसी के सत्कर्मों के कारण भगवान विष्णु ने अगले जन्म में तुलसी से विवाह किया इसलिए देवउठनी ग्यारस के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।

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Sanjay Dara Singh
AstroGem Scientists
LLB., Graduate Gemologist GIA (Gemological Institute of America), Astrology, Numerology and Vastu (SSM).

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