Dharmik katha: ज्ञान की राहें नहीं हैं आसान, क्या आप जाना चाहेंगे इनके पार

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Jun, 2023 10:08 AM

dharmik katha

फकीर रिंझाई एक ऊंची पहाड़ी पर रहते थे। एक बार एक प्रकांड पंडित पहाड़ी चढ़कर उनसे मिलने पहुंचे। जब पंडित ऊपर पहुंचे तब उनकी सांस फूली हुई थी। पहुंचते ही उन्होंने सवाल

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Religious Katha: फकीर रिंझाई एक ऊंची पहाड़ी पर रहते थे। एक बार एक प्रकांड पंडित पहाड़ी चढ़कर उनसे मिलने पहुंचे। जब पंडित ऊपर पहुंचे तब उनकी सांस फूली हुई थी। पहुंचते ही उन्होंने सवाल दागने शुरू कर दिए, ‘‘मैं जानना चाहता हूं कि ईश्वर है या नहीं ? आत्मा है या नहीं ? ध्यान क्या है ? समाधि क्या है ?’’

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रिंझाई ने सारे प्रश्र सुने। वह बोले कि आप अभी-अभी आए हैं, थोड़ा विश्राम कर लीजिए। मैं आपके लिए चाय बनाकर लाता हूं। रिंझाई चाय बनाकर लाए। पंडित के हाथ में प्याली दी और उसमें चाय उंडेलने लगे। प्याली भरने को आई, पर रिंझाई रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

गर्म चाय जब प्याली के बाहर गिरने लगी तब पंडित बोले-रुको-रुको ! प्याली तो पूरी भर गई है। अब और चाय डालोगे भी कहां?

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रिंझाई ने कहा, ‘‘मुझे लगा था कि तुम निपट मूर्ख हो, पर नहीं, थोड़ी अक्ल तो तुम में है। प्याली अगर पूरी भरी हो तो उसमें एक बूंद चाय भी नहीं डाली जा सकती, यह तो तुम जानते हो।’’

अब यह बताओ कि क्या तुम ईश्वर को अपने अंदर समा सकोगे ? तुम्हारे भीतर इतना थोथा ज्ञान भरा है कि समाधि तक पहुंचने की राह भी नहीं बची। बासी ज्ञान कचरा है और कचरा जहां भरा हो वहां समाधि कैसे लगे ? बुद्ध तत्व कहां से आए ? तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर तो मैं दूं, लेकिन क्या तुम उन्हें ले सकोगे ?

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