Dharmik Katha: ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए करनी पड़ती है कड़ी मेहनत

Edited By Jyoti,Updated: 09 Oct, 2021 12:08 PM

dharmik katha in hindi

एक गुरु के दो शिष्य थे। एक पढ़ाई में बहुत तेज था और दूसरा फिसड्डी। पहले शिष्य का हर जगह सम्मान होता था। जबकि दूसरे शिष्य की लोग उपेक्षा करते थे। एक दिन रोष में दूसरा शिष्य

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एक गुरु के दो शिष्य थे। एक पढ़ाई में बहुत तेज था और दूसरा फिसड्डी। पहले शिष्य का हर जगह सम्मान होता था। जबकि दूसरे शिष्य की लोग उपेक्षा करते थे। एक दिन रोष में दूसरा शिष्य गुरु जी से जाकर बोला, ‘‘गुरु जी, मैं उससे पहले से आपके पास विद्याध्ययन कर रहा हूं। फिर भी आपने उसे मुझसे अधिक शिक्षा दी।’’

गुरु जी थोड़ी देर मौन रहने के बाद बोले, ‘‘पहले तुम एक कहानी सुनो। एक यात्री कहीं जा रहा था। रास्ते में उसे प्यास लगी। थोड़ी दूरी पर उसे एक कुआं मिला। कुएं पर बाल्टी तो थी लेकिन रस्सी नहीं थी इसलिए वह आगे बढ़ गया। थोड़ी देर बाद एक दूसरा यात्री उस कुएं के पास आया। कुएं पर  रस्सी न देखकर उसने इधर-उधर देखा। पास में ही बड़ी-बड़ी घास उगी थी। उसने घास उखाड़ कर रस्सी बनाना प्रारंभ किया।

थोड़ी देर में एक लम्बी रस्सी तैयार हो गई जिसकी सहायता से उसने कुएं से पानी निकाला और अपनी प्यास बुझा ली।’’

गुरु जी ने उस शिष्य से पूछा, ‘‘अब तुम बताओ कि प्यास किस यात्री को ज्यादा लगी थी?’’

शिष्य ने तुरन्त उत्तर दिया कि दूसरे यात्री को।

गुरु जी बोले, ‘‘प्यास दूसरे यात्री को ज्यादा लगी थी। यह हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि उसने प्यास बुझाने के लिए परिश्रम किया। उसी प्रकार तुम्हारे सहपाठी में ज्ञान की प्यास है जिसे बुझाने के लिए वह कठिन परिश्रम करता है। जबकि तुम ऐसा नहीं करते।’’ 

शिष्य को अपने प्रश्र का उत्तर मिल चुका था। वह भी कठिन परिश्रम में जुट गया।

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