Ekadashi fasting: इस दिन चावल खाने से भोगना पड़ता है नर्क

Edited By Sarita Thapa,Updated: 17 Jun, 2025 06:00 AM

ekadashi fasting

Ekadashi fasting : हर माह में कुल दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है और यह व्रत खासतौर से भगवान विष्णु को समर्पित है। हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व बताया गया है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Ekadashi fasting : हर माह में कुल दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है और यह व्रत खासतौर से भगवान विष्णु को समर्पित है। हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व बताया गया है। अगर बात करें इसकी विशेषता की तो भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं भागवत गीता में कहां है कि "मैं तिथियां में एकादशी हूं" ऐसे में इस बात से ही एकादशी के पवित्रता का अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे तो एकादशी तिथि का व्रत रखने के लिए कई नियम बताए गए हैं लेकिन इसमें से अगर बहुत जरूरी नियम की बात करें तो वह इस व्रत में पक्के हुए चावल ना खाना। एकादशी तिथि के दिन चावल खाने की मनाही होती है कहते हैं कि ऐसा करने वाले जातक पर व्रत भंग का दोष लगता है, हालांकि अगर शास्त्रों के बात करें तो इस दोष से मुक्ति पाने के लिए कई तरह के उपाय बताएं है। कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति अनजाने में गलती से इस दिन चावल खा लेता है और व्रत भंग के दोष का भागीदार बन जाता है। तो आइए जानते हैं कि यदि कभी ऐसा हो जाए तो इस दौरान क्या करना चाहिए।

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एकादशी के दिन भगवान विष्णु के नाम का व्रत किया जाता है। एकादशी के व्रत की महिमा की बात कर तो कहा जाता है कि इस व्रत को रखने वालों को शुभ फलों की प्राप्ति होती है साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखने वाले जातक को बहुत से नियमों का पालन करना पड़ता है । बात करें इस दिन पर चावल क्यों नहीं खाने चाहिए तो बता दें कि इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।

कथा के अनुसार, प्राचीन काल में महर्षि मेधा ने एक बार यज्ञ में आए कुछ भिक्षुओं का अपमान कर दिया था जिस वजह से माता दुर्गा उनसे नाराज़ हो गई थी। देवी दुर्गा को मनाने के लिए महर्षि मेधा ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया था। जिस स्थान पर ऋषि मेधा ने अपने शरीर का त्याग किया था वहां उनके शरीर के कुछ अंश धरती में समा गए थे। कुछ दिनों बाद उसी स्थान पर जौ और चावल उत्पन्न हुए। कहते हैं उनके इस त्याग और भक्ति को देख माता बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने महर्षि को ये आशीर्वाद दिया कि उनके अंग भविष्य में अन्न के रूप में धरती से उगेंगे। कहते हैं जिस दिन महर्षि मेधा धरती में समाए थे। उस दिन एकादशी की ही तिथि थी, इसलिए एकादशी के दिन चावल का सेवन करना महर्षि के मांस को खून के सेवन करने के समान माना गया है। इसी वजह से एकादशी के दिन चावल खाने की मनाही होती है।

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इसके अलावा कहते हैं की मन की चंचलता को दूर करने के लिए भी एकादशी का व्रत रखा जाता है। ऐसा मानना है कि इस दिन चावल खाने से मन और भी ज्यादा चंचल हो जाता है इसी वजह से इस दिन चावल खाने की मनाही होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार एकादशी के दिन चावल खाने से व्यक्ति को अगले जन्म में रेंगने वाली प्रणाली के रूप में जन्म मिलता है। इसलिए भी एक दिन चावल नहीं खाने चाहिए।

इस दिन गलती से चावल का सेवन कर लें तो क्या करें
अगर एकादशी के दिन भूल से चावल खा लें तो सबसे पहले भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए उनसे क्षमा याचना करें और साथ ही प्रण लें फिर कभी ऐसी गलती नहीं करेंगे। इसके अलावा कहते हैं पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में दर्शन कर लेने से एकादशी के दिन चावल खाने का दोष खत्म हो जाता है। ज़रूरी नहीं की एकादशी के दिन ही दर्शन करने है। जब भी जीवन काल में समय मिले जगन्नाथ मंदिर में जाकर दर्शन कर लेना चाहिए और साथ ही भूल के लिए क्षमा मांग लेनी चाहिए, इससे व्रत भांग का दोष समाप्त हो जाता है।

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