Ganga Saptami: गंगा सप्तमी पर इस शास्त्रीय विधि से करें पूजा और पढ़ें कथा, बना रहेगा Good Luck

Edited By Updated: 03 May, 2025 12:58 PM

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Ganga Saptami 2025: गंगा सप्तमी का पर्व हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल 3 मई 2025 शनिवार के दिन ये पर्व मनाया जाएगा। इस दिन माता गंगा का जन्म हुआ था। गंगा सप्तमी के दिन गंगा माता की पूरे विधि-विधान से पूजा की...

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Ganga Saptami 2025: गंगा सप्तमी का पर्व हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल 3 मई 2025 शनिवार के दिन ये पर्व मनाया जाएगा। इस दिन माता गंगा का जन्म हुआ था। गंगा सप्तमी के दिन गंगा माता की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। गंगा सप्तमी के अवसर पर देवी गंगा के पूजन, व्रत, उपाय, दान व स्नान से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है, रोगों का निवारण होता है व दुर्भाग्य दूर होता है।

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Ganga Saptami Puja Vidhi गंगा सप्तमी पूजा विधि: मध्यान काल में घर की उत्तर दिशा में लाल कपड़े पर जल का कलश स्थापित करें। ॐ गंगायै नमः का जाप करते हुए जल में थोड़ा सा दूध, रोली, अक्षत शक्कर, इत्र व शहद मिलाएं तथा कलश में अशोक के 7 पत्ते डालकर उस पर नारियल रखकर इसका पंचोपचार पूजन करें। शुद्ध घी का दीप करें, सुगंधित धूप करें, लाल कनेर के फूल चढ़ाएं, रक्त चंदन चढ़ाएं, सेब का फलाहार चढ़ाएं व गुड़ का भोग लगाएं। इस विशेष मंत्र को 108 बार जपें। इसके बाद फल किसी गरीब को बांट दें।

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Ganga Saptami Mantra गंगा सप्तमी मंत्र: गं गंगायै हरवल्लभायै नमः॥

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Ganga Saptami katha गंगा सप्तमी कथा: प्राचीन कथा के अनुसार जब कपिल मुनि के श्राप से सूर्यवंशी राजा सगर के 60 हज़ार पुत्र जल कर भस्म हो गए, तब उनके उद्धार के लिए सगर के वंशज भागीरथ ने घोर तपस्या की। अपनी कठिन तपस्त्या के बल पर उन्होंने गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लाने में कामयाब हुए। गंगा जल का स्पर्श करते ही सगर के 60 हज़ार पुत्रों का उद्धार हुआ।

शास्त्रों ने गंगा को मोक्षदायिनी कहा है। हिंदू धर्म में ऐसा भी माना जाता है की जब तक मृत व्यक्ति की अस्थियां गंगा में प्रवाहित न की जाएं, उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। पुराणों ने गंगा को मन्दाकिनी रूप में स्वर्ग, गंगा के रूप में पृथ्वी व भोगवती रूप में पाताल में प्रवाहित होते हुए वर्णित किया गया है।

विष्णु पुराण में कहा गया है गंगा भगवान श्री हरि विष्णु के बायें पैर के अंगूठे के नख से प्रवाहित होती हैं। कुछ विद्वानों का मत है की भगवान शिव ने ब्रह्मस्वरूपिणी गंगा को इसलिए अपने शीश पर धारण किया क्योंकि वो श्री हरि विष्णु का चरणामृत हैं।

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महादेव ने अपनी जटा से गंगा को सात धाराओं में अलग-अलग किया। जिनमें नलिनी, ह्लदिनी व पावनी पूर्व में, सीता, चक्षुस व सिन्धु पश्चिम में व सातवीं धारा भागीरथी प्रवाहित हुई। पौराणिक आख्यान के अनुसार ये भी कहा जाता है की गंगा हिमालय व मैना की बेटी और भगवान शिव की अद्धागिनि उमा की बहन हैं। गंगा का सम्बन्ध कार्तिकेय के मातृत्व से भी माना जाता है।

श्रीकृष्ण भक्ति शाखा के प्रसिद्ध कवि रसखान कहते हैं- आक धतूरो चबात फिरैं, विष खात फिरैं सिव तोरे भरोसे ।।

अर्थात- भगवान शिव के सिर पर जो शीतलता प्रदान करने वाली गंगा हैं। उन्हीं के भरोसे वे आक-धतूरे चबाते रहते हैं और हलाहल विष का पान भी कर गए।

रसखान ने गंगा को किसी भी समस्या की सबसे उत्तम औषधि बताया है। 

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