Edited By Prachi Sharma,Updated: 13 May, 2025 12:45 PM

सात वर्ष का एक बालक महर्षि रमण के पास अपनी जिज्ञासा लेकर आया। वह बोला, ‘‘क्या आप मुझे बता सकते हैं कि कर्म-योग क्या है ?’’
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Inspirational Story: सात वर्ष का एक बालक महर्षि रमण के पास अपनी जिज्ञासा लेकर आया।
वह बोला, ‘‘क्या आप मुझे बता सकते हैं कि कर्म-योग क्या है ?’’
महर्षि बोले, ‘‘मैं तुम्हें इस प्रश्न का उत्तर दूंगा। पर अभी तुम मेरे पास शांतिपूर्वक बैठ जाओ।’’

कुछ समय बाद, वहां एक व्यक्ति डोसे लेकर आया। उसने सभी डोसे रमन महर्षि के समक्ष रख दिए। उन्होंने डोसे का एक छोटा-सा टुकड़ा अपने आगे रखा। फिर साथ बैठे उस बालक की पत्तल में एक पूरा डोसा परोस दिया। उसके बाद वहां उपस्थित अन्य अनुयायियों में शेष डोसे बांटने का आदेश दिया।
इसके बाद उन्होंने पास बैठे बालक से कहा कि जब तक में अंगुली उठाकर इशारा नहीं करता, तब तक तुम यह डोसा खाते रहोगे। हां ध्यान रहे कि मेरे इस संकेत से पहले तुम्हारा डोसा खत्म नहीं होना चाहिए। पर जैसे ही में अंगुली उठाकर संकेत दूं, तो पत्तल पर डोसे का एक भाग भी शेष नहीं रहना चाहिए। उसी क्षण डोसा खत्म हो जाना चाहिए।’

महर्षि के वचनों को सुनते ही बालक ने पूरी एकाग्रता से रमन महर्षि पर दृष्टि टिका दी। बालक ने शुरुआत में बडे़-बडे़ निवाले खाए पर बाद में, अधिक डोसा न बचने पर, उसने छोटे-छोटे निवाले खाने शुरू कर दिए। तभी अचानक उसे अपेक्षित संकेत मिला। इशारा मिलते ही बालक ने बचा हुआ डोसा एक ही निवाले में मुख में डाल दिया और निर्देशानुसार पत्तल पर कुछ शेष न रहा।
बच्चे की इस प्रतिक्रिया को देखकर महर्षि बोले, ‘अभी-अभी जो तुमने किया, वही वास्तव में कर्म-योग है। जब तुम डोसा खा रहे थे, तब तुम्हारा ध्यान केवल मुझ पर था। डोसे के निवाले मुख में डालते हुए भी तुम हर क्षण मुझे ही देख रहे थे। ठीक इसी प्रकार संसार के सभी कार्य-व्यवहार करते हुए भी अपने मन-मस्तिष्क को ईश्वर पर केन्द्रित रखना, यही वास्तविक कर्म-योग है।
