Yoga Day : शारीरिक और आत्मिक शक्तियों की कुंजी ‘योग’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Jun, 2025 07:08 AM

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International Day of Yoga: अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रति वर्ष 21 जून को मनाया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितम्बर 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान योग दिवस का प्रस्ताव दिया था। 21 जून, 2015 का दिन पहला अंतर्राष्ट्रीय...

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International Day of Yoga: अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रति वर्ष 21 जून को मनाया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितम्बर 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान योग दिवस का प्रस्ताव दिया था। 21 जून, 2015 का दिन पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस था। इस दिन महान ऋषि-मुनियों की हमारी विरासत को पूरे विश्व में एक नई पहचान मिली जो हमारे लिए गौरव की बात है।

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साल का सबसे बड़ा दिन
21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में निश्चित करने के पीछे यह कारण भी था कि यह उत्तरी गोलार्द्ध में वर्ष का सबसे बड़ा दिन होता है। योग दिवस को आज विश्व में एक नई पहचान मिल चुकी है। विश्व के कई देशों में बड़े उत्साह के साथ योग दिवस का आयोजन किया जाता है। योग मन, शरीर और आत्मा को सक्षम बनाता है। योग से मनुष्य की शारीरिक और आत्मिक शक्तियों का विकास होता है। इससे मनुष्य को आत्मिक शांति की अनुभूति होती है। मनुष्य शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है। कोई भी शारीरिक व्याधि योगी मनुष्य को पीड़ित नहीं करती और मानसिक व्याधि का भी उस पर कोई प्रभाव नहीं होता। योग करने वाले मनुष्य के मन में हमेशा सकारात्मक विचार रहते हैं। यही नहीं, वह कभी भी तनाव और अवसाद से भी ग्रस्त नहीं होता। 

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कुवासनाओं से रक्षा
काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष आदि कुवासनाएं उसके समीप आकर भस्म हो जाती हैं। जिस प्रकार अग्नि में तप कर सोना कुंदन बन जाता है, उसी प्रकार योग की भट्ठी में तप कर मनुष्य के व्यक्तित्व में निखार आता है। उसके चेहरे पर हमेशा ओज और तेज रहता है, मुख हमेशा प्रसन्नवदन रहता है। योगी के जीवन में कभी भी निराशा का संचार नहीं होता।

महर्षि पतंजलि ने ‘योगदर्शन’ में योग के आठ अंग : यम-नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि बताए हैं। क्रमश: एक-एक सीढ़ी चढऩे से ही सिद्धि को प्राप्त किया जा सकता है। योग तथा प्राणायाम का उद्देश्य मनुष्य को स्वस्थ, बलवान एवं चिरायु बनाना ही नहीं है अपितु मनुष्य की मानसिक तथा आत्मिक शक्तियों का विकास करना भी है। हमारे शरीर में 5 कोष तथा 8 चक्र हैं। इन कोषों के भीतर प्रवेश करने से जहां आत्मिक शक्तियों का विकास होता है, वहीं चक्रों को जागृत करने से मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास होता है। 

ये चक्र हैं : मूलाधार गुदा के पास, स्वाधिष्ठान-मूलाधार से चार अंगुल ऊपर, मणिपूरक-नाभि स्थान में, सूर्य- पेट के ऊपर रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर अनाहत-हृदय में विशुद्धि कंठ में, आज्ञा चक्र-भृकुटि में तथा ब्रह्मरंध्र-ललाट के ऊपर है। इन्हीं चक्रों को आधुनिक साइंस वालों ने हार्मोंस कहा है और इन चक्रों के उन्होंने अपनी परिभाषा में निम्र नाम रखे हैं : प्रोस्टेट, ओवेरियन, एडेनेलिन, पैन्क्रियास, थाइराइड, थाइमॉस और पिट्यूटरी ग्लैंड। इन ग्लैंड्स के उन्होंने जो-जो प्रभाव शरीर, मन और आत्मा पर बताए हैं वैसे ही प्रभाव हठयोगियों ने भी चक्रों की जागृति के बताए हैं। इन सभी ज्ञानतंतुओं के केंद्रों अर्थात मूलाधार आदि चक्रों को जागृत करने का मुख्य साधन प्राणायाम ही है।

महर्षि चरक अपने ग्रंथ में सुखी जीवन के लक्षण बताते हुए लिखते हैं, ‘‘जिस मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रोग नहीं सताते , जो विशेषकर यौवनावस्था में सब प्रकार के शारीरिक व मानसिक विकारों से रहित है जिसका बल, वीर्य, यश, पौरुष और पराक्रम सामर्थ्य तथा इच्छा के अनुरूप है।’’ 

‘‘जिसका शरीर नाना प्रकार की विद्याओं, कला कौशल आदि विज्ञान को प्राप्त करने में समर्थ है, जिसकी इंद्रियां स्वस्थ, बलवान और इंद्रियजन्य भोगों को भोगने में समर्थ हैं, जिसके शरीर में किसी प्रकार की निर्बलता नहीं उसका जीवन वास्तव में सुखी जीवन है।’’    

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