कृष्ण की तरह नृत्य करें: गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Sep, 2023 07:43 AM

krishna janmashtami

कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर चमकने वाले अर्ध चंद्रमा का एक सुंदर अभिप्राय है कि यह वास्तविकता के व्यक्त और अव्यक्त दोनों आयामों, दृश्य भौतिक क्षेत्र और अदृश्य

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Sri Krishna Janmashtami 2023: कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर चमकने वाले अर्ध चंद्रमा का एक सुंदर अभिप्राय है कि यह वास्तविकता के व्यक्त और अव्यक्त दोनों आयामों, दृश्य भौतिक क्षेत्र और अदृश्य आध्यात्मिक क्षेत्र के मध्य सही संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है। जो भगवान कृष्ण के दोनों लोकों के स्वामित्व को दर्शाता है। हम जिस युग में रह रहे हैं, उसके लिए उनकी शिक्षाएं अद्वितीय और अति प्रासंगिक हैं। वे न तो आपको भौतिक गतिविधियों में डूबने देती हैं और न ही आपको पूरी तरह से उदासीनता की ओर ले जाती हैं। जब हम यह उत्सव मनाते हैं तो हम प्रकृति में बिल्कुल विपरीत लेकिन पूरक गुणों को आत्मसात करते हैं और उन्हें प्रकट करते हैं। यह एक ऐसा कौशल है, जो हमें उस कमल की तरह बनाता है जो कीचड़ में उगता तो है फिर भी जिसकी पत्तियां शुद्ध और कीचड़ से अछूती रहती हैं।

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कृष्ण का अर्थ है वह जो सबसे मोहक और आकर्षक हैं अर्थात स्वयं आत्मा। राधे-श्याम, व्यक्ति के अनंत से मिलन का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रत्येक प्राणी की आत्मा ही कृष्ण है। जब हम अपने अपने वास्तविक स्वरूप में बस जाते हैं तो हमारा व्यक्तित्व खिल उठता है, हमारे भीतर कौशल विकसित है और जीवन में प्रचुरता आती है।

कृष्ण को माखन चुराने के लिए जाना जाता है। इस रूपक का क्या अर्थ है ? मक्खन वह है जो आपको किसी प्रक्रिया के अंत में मिलता है। दूध पहले दही बनता है, फिर उसे मथकर मक्खन प्राप्त किया जाता है। इसी तरह, जीवन में कई घटनाओं के माध्यम से मंथन की प्रक्रिया होती है। लेकिन अंत में जब मंथन समाप्त हो जाता है तो हमें मक्खन अर्थात हमारे भीतर की पवित्रता प्राप्त होती है।

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भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाने का पूरा सार, प्रतिकूल और अनुकूल दोनों परिस्थितियों में संतुलन बनाये रहना, प्रसन्न, केंद्रित और आनंदित रहना है। जब जीवन में सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा हो तो आप एक बड़ी मुस्कान रख सकते हैं लेकिन यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आप अपनी मुस्कान बनाए रख सकते हैं, तो आपको समझना चाहिए कि अपने जीवन में कुछ अद्भुत प्राप्त कर लिया है। यह तो हम कृष्ण के दृष्टिकोण से ही सीखते हैं। वे एक पैर धरती पर टिकाकर और दूसरा पैर धरती से ऊपर उठाकर खड़े हैं, जीवन में नृत्य तभी घटित हो सकता है। यदि आपके दोनों पैर भूमि पर टिके हुए हैं तो नृत्य नहीं हो सकता। यदि आपका मन हर समय सांसारिक चिंताओं में डूबा रहता है, तो आप नृत्य कैसे कर सकते हैं ? साक्षी बनें। जब आप बिना लालसा या द्वेष के मन में अशांति को देख पाते हैं, तो आप उससे ऊपर उठ सकते हैं। इसलिए जब आप पछतावे और चिंताओं से परेशान हों, तो यह सोचने के बजाय कि यह कैसे नहीं होना चाहिए था, आपको बस समर्पण करने की आवश्यकता है। तब आप कृष्ण की तरह जीवन के उतार-चढ़ाव में नृत्य करने में सक्षम हों जाएंगे।

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