Motivational Concept: कैसे पाएं ‘असली’ खुशी

Edited By Updated: 07 Dec, 2022 05:10 PM

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सावित्री काम से लौट रही थी। आज दीपावली थी, इसलिए हर घर में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही काम था। सबके यहां काम निपटाते-निपटाते शाम हो गई। दीपावली के कारण पूरा शहर खुशी और उल्लास में डूबा था मगर जैसे-जैसे वह अपनी झोपड़-पट्टी के पास पहुंच रही...

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सावित्री काम से लौट रही थी। आज दीपावली थी, इसलिए हर घर में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही काम था। सबके यहां काम निपटाते-निपटाते शाम हो गई। दीपावली के कारण पूरा शहर खुशी और उल्लास में डूबा था मगर जैसे-जैसे वह अपनी झोपड़-पट्टी के पास पहुंच रही थी, उसका मन उदास होता जा रहा था।

काम पर आते समय सावित्री के बेटे ने कहा था, ‘‘मां, मैं भी दीपावली पर दूसरे बच्चों की तरह ढेर सारे पटाखे चलाना चाहता हूं। मुझे भी खाने के लिए मिठाई चाहिए।’’

सावित्री ने वायदा किया था कि वह लौटते समय उसके लिए चीजें लेकर आएगी। रोहित के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई थी और वह खेलने में मगन हो गया था। सावित्री के पति का 3 साल पहले निधन हो गया था। तब रोहित 1 साल का था। मासूम रोहित की जिम्मेदारी सावित्री के कंधों पर आ गई थी। उसने कुछ घरों में काम शुरू कर दिया और किसी तरह से गृहस्थी की गाड़ी चल निकली थी। पिछले कुछ दिनों से बुखार आ जाने के कारण काम पर नहीं जा पाई थी। दवाई में सारा पैसा खर्च हो गया था।

सावित्री ने आज दो-तीन घरों में कुछ रुपए मांगे थे जिससे रोहित के लिए पटाखे और मिठाई खरीद सके मगर दीपावली का दिन होने के कारण सबने रुपए देने से मना कर दिया था। सावित्री को समझ नहीं आ रहा था कि वह रोहित से क्या बहाना करेगी। उसे लग रहा था कि मानो उसके पैर एक-एक किं्वटल के हो गए हों। रोहित के बारे में सोच-सोच कर उसका दिल बैठा जा रहा था।

रोहित झोपड़-पट्टी के दरवाजे पर ही बैठा था। सावित्री को देखते ही वह उससे लिपट गया। फिर उसने पूछा, ‘‘मां मेरे पटाखे और मिठाई कहां है?’’

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सावित्री को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या बहाना बनाए?

मां को चुप देख रोहित जोर-जोर से रोने लगा। सावित्री को उस पर बड़ा तरस आ रहा था। उसने रोहित को बाहों में भरकर अपने सीने से लगा लिया और वह खुद भी सुबक-सुबक कर रोने लगी।

इधर मां को इस तरह रोता देख रोहित अवाक रह गया था। उसने हैरानी से मां की ओर देखा। मां की आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे।

रोहित कुछ देर मां को देखता रहा। फिर उसके गले से लिपटते हुए बोला, ‘‘रोओ मत मां, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे न पटाखे चाहिएं और न मिठाई, बस तुम चुप हो जाओ मां। मैं तुम्हें रोता नहीं देख सकता।’’

पूरा शहर झालरों की रोशनी में जगमगा रहा था। सावित्री ने अभी तक बल्ब भी नहीं जलाया था, जिससे उसकी झोपड़-पट्टी में अभी तक अंधेरा पसरा था, मगर नन्हे रोहित की बातें सुनकर उसकी आंखों में खुशी के दीप जगमगा उठे थे।

-सुरेश बाबू मिश्रा, बरेली

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