Motivational Story: गोपाल कृष्ण गोखले से सीखें कर्त्तव्य का सही अर्थ

Edited By Updated: 20 Apr, 2025 09:06 AM

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Motivational Story: पुणे में एक स्वागत कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें आने वाले अतिथियों के निमंत्रण पत्र की जांच करने और उनका अभिवादन करने का जिम्मा एक स्वयंसेवक को सौंपा गया।

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Motivational Story: पुणे में एक स्वागत कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें आने वाले अतिथियों के निमंत्रण पत्र की जांच करने और उनका अभिवादन करने का जिम्मा एक स्वयंसेवक को सौंपा गया। वह मुख्य द्वार पर खड़ा पूरी तन्मयता से अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहा था। हर आने वाले अतिथि का वह विनम्रतापूर्वक अभिवादन करता और उनके निमंत्रण पत्र जांच करने के पश्चात ही भीतर जाने देता।

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उसी समय वहां न्यायाधीश महादेव गोविंद रानाडे पधारे, जो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। जैसे ही वह मुख्य द्वार पर पहुंचे, द्वार पर तैनात स्वयंसेवक ने उनका अभिवादन किया और उनसे निमंत्रण पत्र की मांग की। 

न्यायाधीश महादेव गोविंद रानाडे ने कहा, “मेरे पास तो निमंत्रण पत्र नहीं है।” स्वयंसेवक ने शालीनता से कहा, “क्षमा करें! इस स्थिति में मैं आपको अंदर जाने नहीं दे सकता। अंदर जाने के लिए निमंत्रण पत्र अनिवार्य है।”

न्यायाधीश रानाडे वहीं खड़े हो गए। उन्हें मुख्य द्वार पर खड़ा देखकर स्वागत समिति का अध्यक्ष वहां पहुंचा और स्थिति के बारे में जानकारी ली। स्वयंसेवक ने बताया कि इनके पास कार्यक्रम में सम्मिलित होने का निमंत्रण पत्र नहीं है। इसलिए इन्हें अंदर जाने नहीं दिया जा सकता।

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स्वागत समिति के अध्यक्ष ने कहा, “क्या तुम नहीं जानते कि श्रीमान इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हैं। तुम्हें इन्हें यहां नहीं रोकना चाहिए था।” 

स्वयंसेवक ने उत्तर दिया, “मैं अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहा था। मैंने यहां किसी के साथ भेदभाव नहीं किया, क्योंकि भेदभाव की नीति न मुझे पसंद है और न सही है।” यह स्वयंसेवक थे गोपाल कृष्ण गोखले, जो सदा कर्त्तव्य परायण थे।

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